24 जनवरी : राष्ट्रीय बालिका दिवस



--परमानंद पाण्डेय
लखनऊ - उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

देश में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का शुभारंभ 2001 से किया गया। सरकार ने इसके लिए 24 जनवरी का दिन चुना क्योंकि यही वह दिन था जब 1966 में इंदिरा गांधी ने भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इस अवसर पर सरकार की ओर से कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। समाज में बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक बनाने के लिए अनेको आयोजन होते हैं।

हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों के अनुपात में बहुत कमी आयी है। पूरे देश में लिंगानुपात 940 : 1000 है। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 06 से 14 वर्ष तक की अधिकतर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी अधिक समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड़ता है।

इसी तरह, सरकारी आंकड़ों में दर्शाया गया है कि 06 से 10 वर्ष की जहां 25 प्रतिशत लड़कियों को व 10 से 13 वर्ष की 50 प्रतिशत से भी अधिक लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है। एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं।

आज की बालिका, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। एशियन खेलों के गोल्ड मैडल जीतना हो या राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान होकर देश सेवा करने का काम हो।

लेकिन इसके उपरान्त आज भी वह अनेक कुरीतियों की शिकार हैं। ये कुरीतियां उसके आगे बढ़ने में बाधाएं उत्पन्न करती हैं। पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज भी हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहां बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है।

भारत में 20 से 24 वर्ष की विवाहित महिलाओं में से 44.05 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी हैं, जिनका विवाह 18 वर्ष के पहले हुआ है। इन 20 से 24 वर्ष की विवाहित महिलाओं में से 22 प्रतिशत महिलाएँ ऐसी हैं, जो 18 वर्ष के पहले मां बनी हैं। इन कम आयु की लड़कियों से 73 प्रतिशत बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत कुपोषण के शिकार हैं।

हम अनेकों अवसरों पर कन्या का पूजन करते हैं लेकिन जब से विधर्मियों ने हमारे देश पर आक्रमण कर लूट-पाट एवं अत्याचार किया तब से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। वरना यहाँ तो देवी दुर्गा को कन्या रूप में पूजने की प्रथा है।

कन्या भ्रूण हत्या एक जटिल समस्या है। वास्तव में इसके लिए सबसे अधिक स्त्रियों की जागरूकता ही है क्योंकि इस संदर्भ में निर्णय तो स्त्री को ही लेना होता है। दूसरा कारण कानून-व्यवस्था के स्तर पर है। भारत में इस समस्या से निबटना मुश्किल तो है, पर यदि स्त्रियां तय कर लें तो नामुमकिन तो नहीं है।

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अत्याधिक चिन्ता का विषय है कि देश में वर्ष 1961 से ही बाल लिंगानुपात तेजी से गिरता रहा है। हम वर्ष 2024 में हैं, लेकिन हम विचारधारा को बदलने में सफल नहीं हुए हैं। भारतीय समाज में सभी वर्गों के लोगों में बहुत से लोग बेटा होने की इच्छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें बेटी हो।

आज भी देश में किन्हीं कुरीतियों के कारण बालिकाओं को कुछ लोग बोझ समझते हैं लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है। लोगों को इसके प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है।

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