'मीडिया विमर्श' के जरिए ओड़िया मीडिया पर विहंगम दृष्टि



--डॉ ध्रुव कुमार,
पटना - बिहार, इंडिया इनसाइड न्यूज।

जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक के रूप में 16 वर्षों से प्रकाशित "मीडिया विमर्श" मीडिया चिंतन और विमर्श के दिशा में अत्यंत गतिशील पत्रिका है। इसका नवीनतम अंक ओड़िया मीडिया विशेषांक के रूप में सामने आया है जिसका संपादन डॉ. सी. जय शंकर बाबू किया है। पूर्व में मीडिया विमर्श उर्दू पत्रकारिता, गुजराती पत्रकारिता, तेलुगु मीडिया, मलयालम मीडिया, तमिल मीडिया और कन्नड़ मीडिया विशेषांक प्रकाशित कर चुका है। इसी कड़ी में भाषायी पत्रकारिता पर केंद्रित यह नवीनतम अंक हैं जो ओड़िया मीडिया के विभिन्न आयामों से न सिर्फ परिचय कराता है बल्कि दस्तावेजी प्रमाणों के साथ ओड़िया मीडिया पर गहन चिंतन- मनन को भी प्रेरित करता है।

ओड़िया भारत की प्राचीन भाषाओं में एक है और यह भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता पाने वाली छठी भारतीय भाषा है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से यह भारतीय आर्य भाषा परिवार की भाषा मानी जाती है जो उड़ीसा के अलावा बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। मागधी- प्राकृत से विकसित ओड़िया भाषा में बौद्ध और जैन साहित्य भी पाए जाते है और बौद्ध कवियों द्वारा "चर्या साहित्य" के प्रणयन की बात कही जाती है।

ओड़िशा प्रांत को 1803 में अंग्रेजों ने हस्तगत कर लिया था। यह प्रदेश 1912 में बंगाल से अलग हुआ और फिर 1936 में बिहार से अलग होकर भाषा आधारित पहले अलग राज्य के रूप सामने आया। ओड़िया पत्रकारिता की शुरुआत पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर की ऐतिहासिक गतिविधियों के वार्षिक विवरण के रूप में 12वीं सदी में "मदाला पांजी" से माना जाता है। 1769 में कुजीबारा मठ के महंत साधु चरण दास के द्वारा "कुजीबारा पत्र" ताड़ पत्रों के माध्यम से की गई पत्रकारिता के विशिष्ट उदाहरण है। 1836 में ईसाई मिशनरियों द्वारा कटक में मुद्रण मशीनों की स्थापना के बाद 1849 में पहली मुद्रित पत्रिका "ज्ञानरुणा" प्रकाशित हुई। इसके बाद 1856 में प्रबोध चंद्रिका और 1861 में अरुणोदय का प्रकाशन हुआ।

"ज्ञानरुणा" अल्पजीवी पत्रिका थी। "उत्कल" सरकारी गजट का प्रकाशन 1851 में आरंभ हुआ। उड़ीसा की पत्रकारिता के प्राचीन नौ सदियों के इतिहास में आधुनिक काल की पत्रकारिता का लगभग 175 वर्षों का इतिहास भी शामिल है।

इस अंक में प्रो. शांतनु कुमार सर और डॉ सुजीत कुमार पुरश्रेष्ठ ने उड़िया पत्रकारिता के इतिहास पर शोधपरक लेख हैं जबकि साहित्यिक पत्रकारिता को समेटा है एस. वैष्णवी ने। ओड़िया पत्रकारिता में महिलाओं की भूमिका को डॉ. ज्योति प्रकाश मोहपात्रा और डॉ. प्रसन्न कुमार बराल ने अपने आलेखों में चित्रित किया है। ओड़िआ सिनेमा के इतिहास पर राजीव कुमार बैज, अमन ऋषि साहू और श्वेता सेठी ने कलम चलाई है। जबकि मीडिया रिव्यू और डिजिटल पक्ष पर रपट डॉ मृणाल चटर्जी, रश्मि रंजन मोहपात्रा ने लिखे हैं। ओड़िया टेलीविजन पत्रकारिता और टेलीविजन प्रसारण के इतिहास की भरपूर जानकारी कोमल ओझा के लेख में से मिलती है। वहीं लोकनाट्य परम्परा पर वंदिता मोहपात्रा ने अपने लेख के जरिए महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई है।

डॉ. मनोरमा महापात्रा, गोप बंधुदास, प्रदीप महापात्रा और प्रो. नंदिनी साहू के साक्षात्कार से ओड़िया पत्रकारिता को समझने में काफी आसानी होती है। डॉ. देबीलाल मिश्रा का मीडिया और समाज के रिश्ते पर शोध आलेख भी महत्त्वपूर्ण है। विवेक द्विवेदी की एक कहानी कर्णभार्या भी पठनीय है।

मीडिया विमर्श (जनवरी से जून, 2023 ) ओड़िया मीडिया विशेषांक
सलाहकार संपादक : संजय द्विवेदी संपादक : श्रीकांत सिंह
अतिथि संपादक : डॉ सी. जय शंकर बाबू
प्रकाशक : यश पब्लिकेशन, दिल्ली
सहयोग राशि : ₹ 200

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