बगैर प्रदेश अध्यक्ष को सूचित किए मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचा विधायकों का एक समूह, आलाकमान ने जताई नाराजगी



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
इंडिया इनसाइड न्यूज।

■नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के एक बचकाने कदम ने कांग्रेस पार्टी की एकता और विश्वसनीयता से उठाया पर्दा

पिछले दिनों मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पार्टी आलाकमान के बुलावे पर गुपचुप ढंग से दिल्ली मुलाकात करने पहुंचे। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भले ही पार्टी आलाकमान को यह कहकर संतुष्ट कर दिया हो कि पार्टी में सब कुछ अच्छा चल रहा है और पार्टी के नेता एकजुट हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। अभी तक कांग्रेस नेताओं के आपसी मतभेद और मनभेद की जो खबरें आ रही थी नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के एक बचकाने कदम ने इस पूरे मामले के ऊपर से पर्दा उठा दिया। उमंग सिंगार कांग्रेस के कुछ विधायकों को साथ लेकर दो दिन पहले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मुलाकात करने पहुंचे। बैठक में मोहन यादव से कांग्रेस विधायक से अपने क्षेत्रों में विकास के कार्यों के बजट उपलब्ध कराने का आग्रह किया। बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि नेता प्रतिपक्ष बगैर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को सूचित किए विधायकों से साथ मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे। उमंग सिंगार के इस कदम ने जीतू पटवारी और उनके बीच के तालमेल पर सवाल खड़ा कर दिया है। चर्चा इस बात की भी है कि सिंगार लगातार कांग्रेस विधायकों को पटवारी के खिलाफ उकसाने में जुटे हैं और पिछले दिनों पटवारी की शिकायत भी आलाकमान से करवाने की साजिश भी सिंगार के इशारे पर ही रची गई थी।

• आखिर कहां चली गई कांग्रेस नेताओं की एकता

एक समय था जब कांग्रेस नेता और पार्टी आपसी एकता और समन्वय के लिए पूरे देश ने खास पहचान रखती थी। लेकिन उमंग सिंगार के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद पार्टी नेताओं में अंदर ही अंदर मनभेद पनप रहा है जो मुख्यमंत्री से हुई मुलाकात में साफ दिखाई भी दिया। पार्टी के 67 विधायक होने के बाद भी महज 38 विधायक ही मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे। पार्टी विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सिंगार ने अपने गुट के ही विधायकों को मुख्यमंत्री से मिलने की सूचना दी थी। बाकी अन्य विधायकों को इस बारे में चर्चा भी नहीं की। सिंगार की इस साजिश ने पार्टी की एकता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया था। माना जा सकता है कि जो विधायक उमंग सिंघार के साथ गये हैं वह तो सिंघार के गुट के हो सकते हैं तो बाकी विधायक किस गुट के हैं। यह भी बड़ा सवाल है।

• आखिर ऐसे कैसे प्रदेश में मजबूत होगी कांग्रेस

उमंग सिंगार के इस कदम ने पार्टी की छवि तो धूमिल की ही है साथ ही उन्होंने पार्टी के नियमों का भी उलंघन किया है। चर्चा इस बात की है कि जैसे ही पार्टी नेताओं की मुख्यमंत्री से मुलाकात की जानकारी सार्वजनिक हुई पार्टी आलाकमान खासा नाराज हुआ और उन्होंने तुरंत पटवारी सहित सिंगार के बीच पनप रही गुटबाजी की राजनीति को यही समाप्त करने का आदेश दिया। जाहिर है कि पार्टी के प्रमुख नेताओं द्वारा उठाया गया यह कदम कहीं न कहीं पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। अगर आपसी वैमनस्य का यह दौर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पार्टी मध्यप्रदेश में खत्म हो जाएगी और पार्टी को आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी मुश्किल की बात होगी।

• पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ के समय कभी ऐसा नहीं हुआ

प्रदेश के इतिहास में यह पहला अवसर है जब कोई नेता अपने समर्थकों के साथ बगैर प्रदेश अध्‍यक्ष के बिना मुख्‍यमंत्री से मिला हो। वह चाहे पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ हो या दिग्विजय सिंह हों। इन दोनों के कार्यकाल में इस तरह की अनुशासनहीनता नहीं होती थी। सभी विधायक एकजुट होकर सरकार के पास जाते थे और जो भी बात होती थी वह प्रदेश अध्‍यक्ष के माध्‍यम से ही होती थी। यही पार्टी की लाईन है। नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्‍यक्ष के बीच इस तरह का मनमुटाव पहले कभी भी नहीं देखा गया है। वैसे भी नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का अनुशासनहीनता यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी वह अपने सीनियर नेताओं का मंच से अपमान करते रहे हैं। अपने बड़बोलेपन में वह सारी मर्यादाएं भूल जाते हैं। अब जब वह नेता प्रतिपक्ष हैं तो अपने प्रदेश अध्‍यक्ष को ही तवज्‍जों नहीं दे रहे हैं। सिर्फ इतना ही अन्‍य नेताओं के साथ भी उमंग सिंघार का व्‍यवहार अच्‍छा नहीं है।

• मुख्यमंत्री ने भी नहीं दी तवज्जो

बगैर प्रदेश अध्यक्ष व अधिक संख्या बल के बिना मिलने पहुंचे विधायकों को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी तवज्जों नही दी। मुख्यमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विधायक की समस्याओं को सुना और कहा कि मुझे उम्मीद है कि सकारात्मक विपक्ष प्रदेश के लिए भी बेहतर काम करेगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे में भी विधायकों से चर्चा की है। खासकर पहले हमने अपनी फसलों के सर्वे का फैसला किया। जिसके लिए हमने जिला कलेक्टरों को निर्देशित किया कि अगर फसल खराब हुई है तो उसका निराकरण करें। उमंग सिंगार से मुख्‍यमंत्री ने कोई भी महत्‍वपूर्ण बात नहीं की और न ही उन्‍हें कोई आश्‍वासन दिया।

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