क्या 2028 में कांग्रेस की आखिरी उम्मीद केवल कमलनाथ हैं?



--विजया पाठक
संपादक - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■आखिरकार क्यों कमलनाथ के खिलाफ कांग्रेस से भाजपा में जाने की प्लांट की जाती हैं खबर, किसको है कमलनाथ से खतरा?

■महाराष्ट में कांग्रेस को जिता सकते थे कमलनाथ

■बंटी साहू और भाजपा ने 07 महीने में छिंदवाड़ा के डेवलपमेंट मॉडल पर लगाया बट्टा, नहीं हो रहा अब छिंदवाड़ा का विकास

■क्या कांग्रेस के विदर्भ में हार के पीछे जीतू, भूपेश और उनके चेलों की है प्रमुख भूमिका?

अभी हाल में ही हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद एक निष्कर्ष यह सामने आया है कि पार्टी को आज एक तजुर्बेकार नेता की जरूरत है जो अपने अनुभव और संगठन दक्षता से पार्टी को स्थिर कर सके। बड़ा सवाल यह है कि जब भी कांग्रेस आलाकमान कमलनाथ को कुछ नई जिम्मेदारी देने की योजना पर काम करता है, तो मीडिया में आखिर कौन साजिशकर्ता कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने का भ्रम फैलाते हैं और यह किसके द्वारा फैलाया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से कम से कम 6-7 बार ऐसी खबरें आई होगी जिसमें कमलनाथ या उनके परिवार का भाजपा में शामिल होने की बात कही गई थी। लोकसभा चुनावों के पहले तो इसको फैलाकर छिंदवाड़ा की जनता को भी भ्रम में डालने की कोशिश की गई थी। कमलनाथ में राजनीति एक बड़े उद्देश्य से आए हैं जिसका कुर्सी और पद कोई वास्ता नहीं है। जिन्हें स्वयं इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा माना, कोई 45 वर्षों से देश और कांग्रेस पार्टी की सेवा कमलनाथ ने निस्वार्थ तरीके से एक बेटे के समान की है, ऐसे नेता के खिलाफ आखिर ऐसी साजिश क्यों रची जा रही है। शायद इसका एक कारण यह तो नहीं कमलनाथ को कोई प्रमुख जिम्मेदारी मिल जाए तो पार्टी कांग्रेस को कमलनाथ उभार सकें। कमलनाथ ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उन्हें कोई पद का मोह नहीं है, इसकी बानगी विजयपुर चुनाव में देखने को मिली जहां टीम कमलनाथ ने मोर्चा संभाल कर कांग्रेस पार्टी को विजय दिलवा दी। अब देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस आलाकमान इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए क्या कदम उठाता है।

• कमलनाथ की छिंदवाड़ा डेवलेपमेंट मॉडल पर भाजपा और उनके सांसद ने लगाया बट्टा

पिछले दिनों मध्यप्रदेश ने अपनी स्थापना के 69 वर्ष पूरे किये। देखा जाये तो स्वतंत्रता के लगभग 75 वर्ष से अधिक के काल में मध्यप्रदेश अन्य राज्यों की तुलना में आज भी पिछड़े राज्यों में शामिल है। इसका सबसे बड़ा कारण है यहां की राजनीति और उससे जुड़े लोग। जब भी जिस पार्टी को भी प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने का अवसर मिला उसने सिर्फ अपने हितलाभ से जुड़े फैसले लिये और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मप्र भाजपा के पिछले दो दशक। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल से लेकर अब तक जो भी योजनाएं बनी उनमें कहीं न कहीं केंद्र में राजनैतिक दल, राजनीति से जुड़े लोग या फिर प्रभावी समूह रहे हैं। यही कारण है कि आज भी मध्यप्रदेश विकसित राज्यों की सूची में नंबर वन नहीं बन पाया है। वहीं, इसी राज्य का एक जिला है छिंदवाड़ा। वर्षों तक विकास की योजना से कोसों दूर रहा। छिंदवाड़ा जिले का कायाकल्प लगभग चार दशक पहले आरंभ हुआ। उसका कारण यह भी था कि छिंदवाड़ा और वहां की जनता को पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ के रूप में एक ऐसा नेता मिला जिसने समाज सेवा को ही अपना धर्म समझा और राजनीति करने के बजाय उन्होंने जिले की तकदीर और तस्वीर बदलने की दिशा में कार्य किया।

• अथक परिश्रम और समर्पण का प्रतीक हैं कमलनाथ

आज जब हम छिंदवाड़ा जिले की ओर बढ़ते हैं तो एक अद्भुत और अकल्पनीय नजारा देखने को मिलता है। पुराने लोगों से चर्चा करने में मालूम चलता है कि वे खुद आश्चर्य में है कि किस तरह से एक राजनेता ने अपने अथक परिश्रम और मेहनत से एक बीमारु और पिछड़े जिले को देश का मॉडल जिला बनाकर रख दिया। सड़क, बिजली, पानी, रोजगार, स्वरोजगार, चिकित्सा, शिक्षा, अधोसंरचना, पर्यटन हर क्षेत्र में क्रमवार ढंग से कमलनाथ ने कार्य किया और पिछले चार दशकों में देश के आगे छिंदवाड़ा नाम का एक आदर्श मॉडल खड़ा कर दिया। यह मॉडल केवल नाम का नहीं है बल्कि इसने अपनी कार्यशैली से देश में अपनी विशिष्ट पहचान भी स्थापित की है।

• धीर-गंभीर नेता के परिश्रम से बना मॉडल

कमलनाथ बेहद धीर-गंभीर और संजीदा राजनेताओं में से एक है। उनका उद्देश्य केवल राजनीति करना नहीं बल्कि समाज सेवा उनका पहला धर्म है। उन्होंने समाज सेवा के पांच दशकों में जनता के दिलों पर अपनी एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो आज तक लोगों के मन मस्तिष्क में बनी हुई है। अपने कार्य पर फोकस, भविष्य की योजनाओं का बेहतर ढंग से क्रियान्वयन, बेतरतीब बातों पर बयानबाजी से बचना यह उनकी विशिष्टता है। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो कमलनाथ वे नेता हैं जिन्होंने गांधी परिवार के हर व्यक्ति के साथ पूरे समर्पण भाव के साथ कार्य किया। फिर चाहे वह इंदिरा गांधी हो, राजीव गांधी हो, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह हो या फिर राहुल गांधी। आज भी जब कांग्रेस किसी परेशानी में होती तो निश्चित तौर पर कमलनाथ को याद किया जाता है और उनसे सलाह मशवरा होता है इसका प्रत्यक्ष उदाहऱण है पिछले दिनों कमलनाथ और राहुल गांधी की बंद कमरे में हुई बैठक। इन वर्षों के दौरान, छिंदवाड़ा एक शांत और साधारण शहर से व्यापक सड़क और रेल नेटवर्क और एक मॉडल रेलवे स्टेशन के साथ उद्योगों के केंद्र में बदल गया।

• कौशल विकास केंद्रों की स्थापना

कमलनाथ ने व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए फुटवियर डिजाइन और विकास संस्थान (एफडीडीआई), परिधान प्रशिक्षण और डिजाइन केंद्र (एटीडीसी) और आईएल एंड एफएस कौशल विकास निगम जैसे विभिन्न कौशल विकास केंद्रों की स्थापना में भी मदद की। छिंदवाड़ा में सोनी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के प्रभारी के अनुसार ये केंद्र युवाओं को कैंपस प्लेसमेंट की तैयारी में मदद करने के लिए टीसीएस, एचसीएल और इंफोसिस जैसे आईटी दिग्गजों के साथ भी सहयोग करते हैं। उद्योग निकाय भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के स्थानीय कार्यालय में एक प्रशिक्षण केंद्र का प्रबंधन करने वाले शिवगोपाल के अनुसार, इन पहलों से न केवल 36.82 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) वाले छिंदवाड़ा को, बल्कि आसपास के आदिवासी जिलों बालाघाट, सिवनी, मंडला और डिंडोरी को भी मदद मिली। उन्होंने कहा, कई आदिवासी छात्र कौशल विकास प्रशिक्षण के लिए छिंदवाड़ा आते हैं।

• जिला बनाने में की मदद

2019 के आम चुनाव में भाजपा ने मध्य प्रदेश में राज्य की 29 संसदीय सीटों में से 28 पर जीत हासिल की। हालांकि, छिंदवाड़ा कांग्रेस के साथ मजबूती से बना रहा, कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने भाजपा के आदिवासी चेहरे नाथनशाह कावरेती के खिलाफ 37,536 वोटों के अंतर से सीट जीती। 2019 के उपचुनाव में भी कमलनाथ ने भाजपा के विवेक साहू को 24,612 वोटों से हराकर छिंदवाड़ा विधानसभा सीट जीती। 2024 में भितरघात और भ्रम से बंटी साहू और भाजपा ने भले ही छिंदवाड़ा सीट जीत ली हो पर उसके बाद छिंदवाड़ा के प्रोग्रेसिव डेवलेपमेंट पर बट्टा बिठा दिया। जहां सांसद बंटी साहू छिंदवाड़ा के विकास के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं, वहीं भाजपा ने भी जिले से अपना मुंह मोड़ लिया है।

• विदर्भ में कमलनाथ को मिलती जिम्‍मेदारी तो परिणाम कुछ और होते

हाल ही हुए महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्‍यादा नुकसान विदर्भ क्षेत्र से हुआ। कांग्रेस आलाकमान ने यहां के लिए छत्‍तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और मप्र के प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष जीतू पटवारी जैसे अनुभवहीन नेताओं को जिम्‍मेदारी दी थी। लेकिन इनके कारण इस क्षेत्र में कांग्रेस का बंटाढार हो गया। यदि इस क्षेत्र में कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता और मप्र के पूर्व सीएम कमलनाथ को जिम्‍मेदारी मिलती तो आज परिणाम कुछ और होते। क्‍योंकि विदर्भ क्षेत्र औदयोगिक क्षेत्र है और हम जानते हैं कि कमलनाथ का उदयोगपतियों से और वहां की जनता से कैसा जुड़ाव रहा है। एक राजनेता के अलावा कमलनाथ उदयोगपति भी हैं और उदयोगों से जुड़े लोगों से उनकी सहानुभूति हमेशा रही है। कमलनाथ का वहां सक्रिय होना निश्चित ही पार्टी के हित में होता।

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