जनसंख्या नियंत्रण कानून समय की आवश्यकता



--प्रदीप फुटेला
देहरादून - उत्तराखंड, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■जनसंख्या वृद्धि की समस्या: हर बच्चे के जन्म के साथ सड़क, स्कूल और अन्य बुनियादी सुविधाओं की मांग बढ़ती है

■बच्चे का जन्म केवल माता-पिता का व्यक्तिगत मामला नहीं

प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एव पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशांत ने कहा है कि बढ़ती जनसंख्या भारत के लिए केवल एक आर्थिक या सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संकट का हिस्सा है। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह इस समस्या को समझे और समाधान के लिए अपनी भूमिका निभाए।

भारत में जनसंख्या वृद्धि एक गंभीर समस्या बन चुकी है। आज भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, जिसकी जनसंख्या लगभग 1.44 अरब है। यह विश्व की कुल जनसंया का 17.76% है। इस बेतहाशा बढ़ती जनसंया ने देश के संसाधनों, पर्यावरण और सामाजिक ढांचे पर गहरा प्रभाव डाला है। यदि जनसंख्या नियंत्रण के लिए समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। भारत में जनसंख्या वृद्धि का सीधा प्रभाव देश के प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ रहा है। खाद्य उत्पादन, पानी, बिजली और ईंधन जैसे संसाधन सीमित हैं और इनकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। उदाहरण के लिए औसत भारतीय परिवार की बिजली खपत पिछले 20 वर्षों में दस गुना बढ़ गई है।

उन्होंने कहा कि हर नवजात शिशु अपने साथ संसाधनों की भारी मांग लेकर आता है, जैसे कि भोजन, पानी, आवास, शिक्षा और परिवहन। पृथ्वी पर संसाधन सीमित हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि हर व्यक्ति अमरीका के औसत नागरिक जितने संसाधनों का उपभोग करने लगे, तो हमें 17 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। वर्तमान स्थिति में भी पृथ्वी के संसाधन इतने लोगों के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हर नए बच्चे के साथ जंगल कट रहे हैं, जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं और नदियां सूख रही हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ रही है।

आचार्य प्रशांत ने कहा कि जब लोगों की संख्या अधिक होती है, तो रोजगार के अवसर उतने तेजी से नहीं बढ़ पाते। इससे युवा वर्ग में असंतोष बढ़ता है। भारत में औसत उम्र घट रही है, यानी देश की जनसंख्या में अधिकतर युवा हैं। ये युवा रोजगार और संसाधनों की कमी के कारण आर्थिक और सामाजिक दबाव महसूस कर रहे हैं। भारत में छिपी हुई बेरोजगारी (हिडन अनइंप्लॉयमेंट) भी बड़ी समस्या है। कई लोग रोजगार करने में असमर्थ हैं या रोजगार को गंभीरता से नहीं लेते। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन का जनसंख्या वृद्धि से गहरा संबंध है। बढ़ती जनसंया के कारण कोयले, तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। ये संसाधन न केवल सीमित हैं, बल्कि इनके जलने से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसें भी बढ़ती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्या गहराती है। जनसंख्या वृद्धि के चलते जंगलों की कटाई हो रही है ताकि खेती के लिए जमीन बनाई जा सके। जब जंगल कटते हैं, तो इसके साथ जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं। जनसंया वृद्धि को अक्सर व्यक्तिगत निर्णय समझा जाता है, लेकिन इसका प्रभाव समाज, देश और पूरी दुनिया पर पड़ता है। हर बच्चे के जन्म के साथ सड़क, स्कूल और अन्य बुनियादी सुविधाओं की मांग बढ़ती है। यह कहना गलत होगा कि बच्चे का जन्म केवल माता-पिता का व्यक्तिगत मामला है। सरकार को चाहिए कि वह जनसंख्या नियंत्रण के लिए सत कानून बनाए। यह कानून पारदर्शी और स्पष्ट उद्देश्यों के साथ लागू होना चाहिए। जनसंख्या वृद्धि के सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में लोगों को शिक्षित करना जरूरी है। धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर बढ़ती जनसंख्या को ‘ईश्वर की देन’ मानने की प्रवृत्ति को रोकना होगा। बढ़ती जनसंख्या भारत के लिए केवल एक आर्थिक या सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संकट का हिस्सा है।

यदि इस पर तुरंत नियंत्रण नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव न केवल भारत पर, बल्कि पूरी पृथ्वी पर दिखाई देगा। यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह इस समस्या को समझे और समाधान के लिए अपनी भूमिका निभाए। जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कानून, जागरूकता अभियान और सामाजिक समर्थन समय की आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि का असर केवल इंसानों पर नहीं, बल्कि पर्यावरण, जीव-जंतुओं और पृथ्वी के हर संसाधन पर पड़ता है। इसलिए, एक स्थायी भविष्य के लिए जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देना अनिवार्य है।

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