--राजीव रंजन नाग
अमृतसर - पंजाब, इंडिया इनसाइड न्यूज।
● अमृतसर में उम्मीदवार तय करने में भाजपा को करनी पड़ रही चुनौती का सामना
भगवा भारतीय जनता पार्टी को हाई प्रोफाइल अमृतसर लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं के कड़े रुख का सामना करना पड़ रहा है, जहां आम तौर पर लोग 'सेलिब्रिटीज' या 'बाहरी लोगों' से परेशान दिख रहे हैं। आम धारणा यह है कि पैरा-ट्रूप्ड लोग स्थानीय आबादी के साथ मुश्किल से ही संबंध बना पाते हैं, जिससे समुदाय में नाराजगी पनपती है। हाल के सालों में अमृतसर ने ऐसे ही अनेक अनुभव किए हैं।
इस बीच, पार्टी विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है और इस प्रकार उस सीट पर एक उपयुक्त उम्मीदवार तलाशनें की पुरजोर कोशिश कर रही है। इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कभी क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू करते थे। पूर्व में दिवंगत अरुण जेटली और वर्तमान केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी सहित कई दिग्गजों को मैदान में उतारने के बाद भी भाजपा लगातार तीन चुनाव हार चुकी है। इस बार भाजपा ऐसे किसी प्रयोग से परहेज करना चाहती है।
पार्टी को पड़ोसी गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र में भी मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा सांसद बॉलीवुड स्टार सनी देओल ने संसद में अपने कार्यकाल के पिछले पांच वर्षों में शायद ही कभी इस क्षेत्र का दौरा किया हो। स्थानीय नेतृत्व और पार्टी कैडर इस बात से नाराज हैं कि ये मशहूर हस्तियां और 'बाहरी लोग' शायद ही अपने निर्वाचन क्षेत्रों का ध्यान रखते हैं। वे केवल चुनाव के समय ही झलक दिखाते हैं।
“देखिए, मतदाताओं को लंबे समय तक नजरअंदाज करने की ऐसी हरकतें पार्टी के समर्थन आधार और संभावनाओं को खत्म कर देती हैं। हमें लोगों की नाराजगी का सामना करना होगा।' लोग सवाल पूछते हैं कि नेता कहां हैं? हमारे पास ऐसे सवालों का क्या जवाब है”, अमृतसर में भाजपा के एक स्थानीय नेता ने कहा, लोग इन ‘बाहरी लोगों’ की विश्वसनीयता को लेकर आपत्ति जताते हैं।
सिद्धू हास्य चैनलों में व्यस्त रहे और निर्वाचन क्षेत्र की अनदेखी की। बाद में भगवा पार्टी को अलविदा कहकर कांग्रेस पार्टी के प्रति वफादार हो गए। स्थानीय लोग सिद्धू को गंभारत से नहीं लेते है। अब कई उम्मीदवार पार्टी टिकट के लिए ताकत झोंक रहे हैं। पार्टी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं क्योंकि वह कई विकल्पों पर विचार कर रही है। स्थानीय लोगों का मानना है कि पार्टी का उम्मीदवार कोई स्थानीय चेहरा ही होना चाहिए।
पूर्व अमेरिकी राजदूत तरनजीत सिंह संधू अमृतसर में डेरा डाले हुए हैं, हालांकि वह भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन वह पार्टी के कई शीर्ष नेताओं के साथ अपनी निकटता का दावा कर रहे हैं। लेकिन बाहरी होने के कारण उन्हें मतदाताओं की नापसंदगी का सामना करना पड़ सकता है। एक और सिख चेहरा और लंबे समय से पार्टी के वफादार रहे राजिंदर मोहन सिंह छीना टिकट की दौड़ में सबसे आगे उभर रहे हैं। वह एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं क्योंकि वह जाट सिख हैं, जो निर्वाचन क्षेत्र में प्रमुख मतदाता वर्ग है। पूर्व राज्यसभा सांसद शवेत मलिक और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ भी पार्टी टिकट की दौड़ में हैं।
चूंकि पार्टी पिछले संसदीय चुनावों में पहले ही हार चुकी है, इसलिए वह सभी संभावनाओं पर विचार कर रही है। पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। एक सीनियर भाजपा नेता ने कहा- धारणा यह है कि पार्टी को स्थानीय चेहरे पर भरोसा करना चाहिए जैसा कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों के साथ होता रहा है, जिन्होंने अतीत में भाजपा के विपरीत स्थानीय उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर चुनावी लाभ उठाया है। लोग ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं जो सुलभ और पहुंच योग्य हो।
1966 में जब हिमाचल और हरियाणा को अलग करके पंजाब राज्य का पुनर्गठन किया गया, तो अकाली नेता बिक्रम मजीठिया के दादा सुरजीत सिंह मजीठिया कांग्रेस के टिकट से जीते और नेहरू सरकार में मंत्री बने। इस सीट का प्रतिनिधित्व दुर्गा दास भाटिया ने किया और फिर उनके छोटे भाई आरएल भाटिया ने पांच बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया।
1977 में जनता पार्टी के बलदेव प्रकाश ने अकालियों की मदद से यह सीट जीती थी। कांग्रेस के आरएल भाटिया ने 1980 में सीट जीती और 1984 में जीत दोहराई लेकिन 1989 में उन्हें जनता पार्टी के कृपाल सिंह से हार का सामना करना पड़ा। ये सभी शीर्ष नेता स्थानीय आवाज थे और अमृतसर की राजनीति में प्रमुख आवाज के रूप में उभरे।
कांग्रेस के आरएल भाटिया ने 1991 में इस सीट पर फिर से कब्जा कर लिया और 1996 में फिर से जीत हासिल की लेकिन 1998 में वह फिर से भाजपा के दया सिंह सोढ़ी से हार गए। उन्होंने 1999 में फिर से सीट जीती लेकिन 2004 और फिर 2009 में नवजोत सिंह सिद्धू से हार गए। 2014 में कैप्टन अमरिंदर ने अरुण जेटली को हराकर जीत हासिल की थी।