--के• विक्रम राव
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
हर स्वतंत्रताप्रेमी भारतीय मेरी तरह गदगद, आत्मविभोर हो गया होगा जब उसने खबर पढ़ी होगी कि ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स ने (21 अक्टूबर 2024) ऑस्ट्रेलियायी संसद में भाषण देना समाप्त ही किया था कि जनजाति की एक महिला सीनेटर ने तो चिल्लाना शुरू कर दिया, "आप मेरे राजा नहीं हैं (यू आर नॉट माइ किंग)।" ऑस्ट्रेलिया की निर्दलीय सीनेटर लिडिया थोर्प ने राजा चार्ल्स और महारानी कैमिला पर चिल्लाते हुए कहा : "हमें हमारी जमीन वापस दो। हमसे जो चुराया है, उसे वापस करो।" भारत को राबर्ट क्लाइव ने ब्रिटिश साम्राज्य के लिए कब्जियाया था। ठीक वैसे ही जेम्स कुक ने 1770 में आस्ट्रेलिया को ब्रिटिश राज का उपनिवेश बनाया था। आदिवासियों को बेदखल कर डाला था।
परसों किंग चार्ल्स और रानी कैमिल पार्कर प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज समेत देश के नेताओं से मिलने ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा गए थे। किंग चार्ल्स ने संसद भवन के ग्रेट हॉल में ऑस्ट्रेलियाई सांसदों और सीनेटरों को संबोधित किया। जैसे ही किंग चार्ल्स ने अपना भाषण समाप्त किया, समारोह में अतिथि के रूप में मौजूद विक्टोरिया प्रदेश की एक सीनेटर लिडिया थोर्प गलियारे से आगे बढ़ीं और राजा के ऊपर चिल्लाना शुरू कर दिया।
राजशाही की विरोधी थोर्प ने राजा का विरोध करते हुए कहा : "यह आपकी जमीन नहीं है। आप मेरे राजा नहीं हैं।" जब वहां सुरक्षा अधिकारी थोर्प को हाल से बाहर ले जाने लगे तो उन्होंने चिल्लाते हुए कहा : "आपने हमारे लोगों का नरसंहार किया। हमें हमारी जमीन वापस दो। आपने हमसे जो चुराया है, वह हमें दे दो। हमारी हड्डियां, हमारी खोपड़ियां, हमारे बच्चे, हमारे लोग।" बादशाह की इस पूर्व उपनिवेश की यह प्रथम यात्रा थी। पत्नी कैमेला भी साथ थीं।
इतिहास बताता है कि इंग्लैंड में अपराधियों को सजा काटने ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप पर भेज देते हैं। जैसे भारत में अंडमान द्वीप (कालापानी)। ऑस्ट्रेलिया एक राष्ट्रमंडल देश है। वहां का राष्ट्रप्रमुख ब्रिटेन का राजा होता है। इस विषय पर लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या वह राष्ट्रमंडल से अलग होकर एक गणराज्य बने? अब इस मामले में लोगों की राय बन रही है। लोग धरना प्रदर्शन और अभियान भी चलाते रहते हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री अल्बेनीज़ की पार्टी इस मुद्दे का समर्थन करती रही है। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह एक जनमत करवाएंगे कि ऑस्ट्रेलिया में राजशाही रहनी चाहिए या गणतंत्र। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद वह इस बात से मुकर गए हैं।
भारत में भी 1947 में ब्रिटिश कॉमनवेल्थ (राष्ट्रमंडल) से नाता तोड़ने के लिए सोशलिस्टों और कम्युनिस्टों ने आवाज बुलंद की थी। पर कैम्ब्रिज-शिक्षित वकील जवाहरलाल नेहरू ने इसका पुरजोर विरोध किया और आजतक भारत इस दासता के प्रतीक, अंग्रेजी संस्था का सदस्य बना हुआ है।
हालांकि महारानी एलिजाबेथ और युवराज चार्ल्स जब जब भारत आए तो उनके सामने ऐसे ही विरोध-प्रदर्शन होते रहे। जितना अत्याचार तीन सदियों के ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय उपनिवेश पर किया है, वह अक्षम्य है। चार्ल्स और उनके मां-बाप अमृतसर आए थे। जलियांवाला बाग भी गए थे। पर एक शब्द भी खेद का व्यक्त नहीं किया। उस राक्षसीय कृत्य पर शोक भी नहीं! इसी तरह के असंख्य अत्याचार हुए थे, सभी भुला दिए गए।
नेहरू अक्सर अमेरिकी इतिहासकार विल दूरांत की प्रशंसा करते थे। दूरांत ने ग्यारह खंड में लिखी किताब : “सभ्यता का इतिहास में" भारतीय उपनिवेश पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद को “समस्त इतिहास की निकृष्टतम उपलब्धि” बताया। उन्होंने लिखा कि एक ब्रिटिश व्यापारी संस्था (ईस्ट इंडिया कंपनी) ने 173 वर्षों तक भारत को निर्ममता से लूटा। कोहिनूर हीरे का तो खास उल्लेख है। मगर चार्ल्स के राजतिलक पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू लंदन पहुंचीं थीं : बिना किसी शर्त अथवा मांग के।
मलिकाये बर्तानिया एलिजाबेथ द्वितीय के निधन (8 सितम्बर 2022) पर साम्राज्य के पूर्व उपनिवेश-समूह (अफ्रीकी, एशियायी, कैरिबियन, दक्षिण अमेरिकी) जो अब सब मुक्त राष्ट्र हैं, की प्रजा में उनके प्रति जनसंवेदना का अभाव ही दिखा था। सदियों से इन देशों पर नृशंस और अमानुषिक जुल्म होता रहा। कीनिया की विधिवेत्ता श्रीमती एलिस मूगो ने स्पष्ट कहा भी: ‘‘ महारानी के अवसान पर मैं शोकाकुल नहीं हूं। न होउंगी।‘‘ जोमो केन्याटा (कीन्यीयाई गांधी) के माऊ माऊ विद्रोह के दौरान एलिजाबेथ के राजकाल (1953-60) में ब्रिटिश सैनिकों के दमन से कीनिया के जंगलों में हजारों बच्चों और महिलाओं का कत्लेआम हुआ था। वह जघन्य था। किकियू जाति के बागियों को संगीनों से गोरे सैनिकों ने भोंक-भोंक कर मारा। एलिस मूगो ने पूछा था: ‘‘क्या हम इस नरसंहार को बिसरा सकते हैं ?"
भारत में स्वाधीनता सेनानी दशकों से मांग करते रहे कि जलियांबाग वाले सामूहिक हत्याकाण्ड पर ब्रिटेन खेद व्यक्त करें, यदि ईमानदारी से माफी नहीं मांगती है तो। इस दुर्मर्ष प्रकरण पर सच्चाई जानकर भारतीयों को खुद पर गर्व और गौरव करने वाले से ज्यादा दिल अवश्य जलेगा। वे सम्यता के सर पर प्रहार करते रहे हैं। जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सैन्य जनरल रेजिनाल्ड डायर द्वारा गोलीबारी पाशविक थी, राक्षसी थी। मगर कैसा कहा, क्या किया मलिका एलिजाबेथ तथा उनके प्रिय पति प्रिंस फिलिप्स ने? उनको तब स्मरण भी कराया गया था कि बैसाखी (13 अप्रैल 1919) में अमृतसर के उद्यान में 1500 लोग गोलियों से भून दिये गये थे, 1200 लोग घायल हुये। उनमें सैकड़ों बच्चे भी थे।
जनरल डायर ने हन्टर जांच समिति को बताया था कि: ‘‘और अधिक को नहीं मार पाया था क्योंकि मेरे पास गोलियां खत्म हो गयीं थीं।‘‘ जब हंटर जांच समिति की यहीं घमंडभरी उक्ति की रपट कराची के दैनिक ‘‘सिंध आब्जर्वर‘‘ के सम्पादकीय डेस्क पर पहुंची तो तेलुगुभाषी एडिटर के. पुन्नय्या के अनुज न्यूज एडिटर के. रामा राव ने पढ़ा। उन्होंने अपनी आत्मकथा: ‘‘दि पेन एज माई स्वोर्ड‘‘ (प्रकाशक: भारतीय विद्या भवन) में लिखा ‘‘तब मेरा खून खौल उठा। वीभत्स तो यह था कि इस नरभक्षी जनरल के लंदन लौटने पर उसके ब्रिटिश स्वजनों ने उन्हें बीस हजार रूपये (आज के दो करोड़) का पर्स भेंट दिया।‘‘