क्या शिवराज सिंह चौहान की गलती का खामियाजा भुगतने को तैयार है भाजपा?



--विजया पाठक (एडिटर -जगत विजन),
भोपाल - मध्य प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● पार्टी और सरकार में शिवराज की हिटलरशाही

● अपने समकक्ष नेताओं को पीछे धकेल खुद आगे बढ़े शिवराज

● कहीं नाराज कार्यकर्ताओं और नेताओं की बगावत के धुंए में उड़ न जाये भाजपा और शिवराज

इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा की टक्कर किसी सियासी दल से नहीं बल्कि खुद भाजपा नेताओं से है। यह वे नेता हैं जो वर्षों से पार्टी में बतौर कार्यकर्ता काम कर रहे हैं लेकिन हर बार उपेक्षा के शिकार हुए हैं। खास बात यह है कि इस बार यह सभी कार्यकर्ता मुखर हो गये हैं और अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत पर उतारू हो गये हैं। भाजपा में उठ रहे बगावत के इस धुएं से भोपाल से लेकर दिल्ली तक के शीर्षस्थ नेता सकते में हैं और सब इस बात को लेकर लगातार मान-मनोब्बल करने में जुटे हैं कि मतदान के कुछ दिन पहले इस तरह की बगावत पार्टी की विश्वसनीयता और सीटों के गणित के आंकलन को डगमगा सकती है। इसका प्रमुख कारण है मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हिटलरशाही। शिवराज की पार्टी और सरकार दोनों में हिटलरशाही हावी है। वह अपने निर्णय थोपते चले आ रहे हैं। चाहे उन निर्णयों में किसी का समर्थन हो या न हो उससे शिवराज को कोई फर्क नहीं पड़ता है। यही कारण है कि इस बार के चुनाव में शिवराज को पार्टी के बाहर और पार्टी के अंदर कोई पसंद नहीं कर रहा है। शायद यह बात शिवराज खुद समझ रहे हैं।

• इसलिये हो रही बगावत

भाजपा को नियमों की पार्टी कहा जाता है। जहां नियम ही सर्वोपरि हैं। लेकिन इस बार के चुनाव में जिस तरह से पार्टी के कार्यकर्ताओं में असंतोष दिखाई पड़ रहा है, वह भाजपा के लिये शुभ संकेत नहीं है। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा नेताओं में जो असंतोष की बयार अभी देखने को मिल रही है वह आज की नहीं है। कार्यकर्ताओं में यह बीज 18 सालों से फल-फूल रहा था, जो अब नासूर बन गया है। सूत्रों की मानें तो कार्यकर्ताओं में यह नाराजगी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर है। क्योंकि शिवराज सिंह चौहान ने 18 वर्ष के कार्यकाल में कभी भी अपने से आगे किसी दूसरे राजनेता या कार्यकर्ता को नहीं बढ़ने दिया। अगर किसी ने बढ़ने की कोशिश भी कि तो उन्होंने उसके पर कतरकर उसे किनारे लगा दिया।

• अपनों को ही निपटाने के लिए क्या शिवराज कराते है तंत्र साधना

अभी हाल ही में शिवराज सिंह ने तंत्र-मंत्र को लेकर बहुत बयानबाजी की। पर एक हकीकत और भी है, शिवराज सिंह चौहान मां धूमावती के उपासक है। मां धूमावती तांत्रिक देवी है और इनका मंदिर दतिया स्थित पीतांबरा शक्ति पीठ में है। शिवराज सिंह मां धूमावती की तंत्र साधना के साधक है और मां धूमावती को दुश्मन हन्नता भी कहा जाता है। इनकी साधना का उपयोग शिवराज सिंह ने अपनी पार्टी में मुख्‍यमंत्री के समकक्ष उभरते हुये नेताओं पर ही किया। सन 2005 से बात करे पहले उमा भारती, गौरीशंकर शेजवार, राघवजी, कैलाश विजयवर्गीय, लक्ष्मीकांत शर्मा और हाल में इस सूची में नरोत्तम मिश्रा शामिल हुए है। मध्यप्रदेश में हालत यह है की यहां जो भी नेता मुख्यमंत्री के समकक्ष उभरता है, उसका राजनीतिक पतन करवा दिया जाता है। अब इसे शिवराज सिंह की देवी *साधना* का कमाल कहे या शिवराज सिंह की चालाकी का, पर मध्यप्रदेश में भाजपा को पिछले 18 सालों में किसी अन्य नेता को राज्य स्तर पर आगे नहीं बढ़ने दिया गया।

• कई उदाहरण देखने में आते हैं

प्रदेश की राजनीति का इतिहास अगर हम उठाकर देखें तो हम यह पाते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में कई कद्दावर नेताओं को आगे बढ़ने से रोका है। इसकी शुरुआत होती है लक्ष्मीकांत शर्मा से। लक्ष्मीकांत शर्मा के पीछे तो शिवराज इतने पड़े कि आज भी उनकी मृत्‍यु संदेहास्‍पद है। क्‍योंकि वह व्‍यापमं घोटाले के प्रमुख गवाह थे। उसके बाद राघवजी, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रभात झा, उमा भारती, गोपाल भार्गव सहित ऐसे कई वरिष्ठ नेता और मंत्री रहे हैं जिन्हें प्रदेश की जनता से भारी समर्थन मिला और लोगों ने उन्होंने अपना नेतृत्वकर्ता के रूप में देखने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन यह बात शिवराज सिंह चौहान को बिल्कुल भी नहीं जंची और उन्होंने एक के एक बाद सभी नेताओं को ठिकाने लगाने की योजना पर काम किया।

• अपनी योजना पर सफल हुए चौहान

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन सभी प्रमुख नेताओं को प्रदेश से बाहर निकालने की योजना पर बड़ी ही खुबसूरती से काम किया और आरोप-प्रत्यारोपों के बीच घिरे इन नेताओं को प्रदेश की सत्ता से बाहर निकाल दिया तो किसी को प्रदेश से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। यही नहीं नरोत्‍तम मिश्रा को प्रदेश में गृह मंत्रालय जैसा प्रमुख पोर्टफोलियों दिया गया वे डमी कैंडिडेट बनकर रह गये। पूरे निर्णय मुख्यमंत्री निवास से शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर लिये जाते रहे। नरोत्‍तम मिश्रा के पास इतना भी पॉवर नहीं कि वह किसी थानेदार तक का ट्रांसफर तक कर सकें। यही कारण है कि प्रदेश में क्राइम रेट दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया और मध्यप्रदेश नेशनल क्राइम ब्यूरो की सूची में पहले पायदान पर रहा। यही हाल जनसंपर्क विभाग का है। विभाग के सारे निर्णय शिवराज के पुत्र और विभाग प्रमुख मनीष सिंह ले रहे हैं। आज हालात ये हैं कि विभाग से बड़े-बड़े मीडिया संस्‍थानों को बड़े-बड़े विज्ञापन दिये जा रहे हैं और छोटे-छोटे मीडिया संस्‍थानों के बिल तक रोके जा रहे हैं।

• हिटलर की भूमिका में दिखे शिवराज

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 18 वर्षों के कार्यकाल की तुलना करें तो देखने में आता है कि शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली किसी हिटलर से कम नहीं है। उन्होंने इतने वर्षों तक हिटलर बनकर काम किया और प्रदेश को मटियामेट करने में प्रमुख भूमिका निभाई। खास बात यह है कि भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को इस बात की तनिक भी खबर नहीं लगने दी कि वे बतौर हिटलर के रूप में प्रदेश में काम कर रहे हैं। यही नहीं प्रदेश को उन्‍होंने एक बहुत बड़ा कर्जदार बना दिया है। चुनावी लाभ लेने के चक्‍कर में उन्‍होंने जो कर्जा लिया है उससे उभरने में प्रदेश को वर्षों लग जायेंगे।

• इन क्षेत्रों में है बगावत है उफान पर

पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी के लिए बड़ी समस्या विंध्य क्षेत्र से उभर रही है, जहां पार्टी ने 2018 के चुनावों में कांग्रेस को बहुमत से वंचित करते हुए 80 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की, खासकर 39 पार्टी उम्मीदवारों की दूसरी सूची सार्वजनिक होने के बाद। विंध्य क्षेत्र, जिसमें 30 विधानसभा सीटें हैं, ब्राह्मण प्रभुत्व के साथ कड़वी जाति की राजनीति के लिए जाना जाता है। इनमें से 24 सीटें पिछली बार भाजपा ने जीती थीं और छह कांग्रेस के खाते में गईं थीं। पार्टी नेतृत्व के पास सीधी सीट पर केदारनाथ शुक्ला को टिकट देने से इनकार करने का ठोस आधार था, क्योंकि उनके स्थानीय प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला पर एक आदिवासी पर कुख्यात पेशाब करने का आरोप था, जिसकी देश भर में बड़े पैमाने पर आलोचना हुई थी। यहां शिवराज सिंह चौहान की ब्राम्‍हण विरोधी सोच भी सामने आती है। केदारनाथ शुक्‍ल एक ब्राम्‍हण नेता हैं। अपने क्षेत्र में वह बहुत पॉवरफुल हैं। उनकी उपेक्षा पार्टी को नुकसान पहुंचायेगी।

• ग्वालियर-चंबल में भी बगावती सुर

लोधी और यादव समेत ऊंची जातियां और ओबीसी बुंदेलखण्ड की राजनीति में हावी हैं और इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में, जो जाति की राजनीति के वर्चस्व के लिए जाना जाता है, सत्तारूढ़ पार्टी को टिकट वितरण को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भिंड क्षेत्र की गोहद सीट पर पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य की उम्मीदवारी पार्टी के एक वर्ग को रास नहीं आ रही है। पूर्व विधायक रणवीर रावत पहले ही इस पर नाराजगी जता चुके हैं।

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