छोटे-सोरेन तो छोटे मियां ! बड़े सोरेन शुभान अल्लाह !!



--के. विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

झारखण्ड में हेमंत सोरेन का पतन भाजपा को अधिलाभांश (बोनस) में हासिल हो रहा है। रांची में ‘‘ऑपरेशन लोटस‘‘ (कमल) की जरूरत नहीं पड़ी। नौबत ही नहीं आयी। पड़ोस में साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर पटना में पिछले पखवाडे़ भाजपा को जनता दल ने दरवाजा दिखाया था, सियासी कलाबाजी में कीर्तिमान नीतीश कुमार ने गुलाटी मारकर दर्ज किया। आज उस हानि की आंशिक भरपायी हो गयी। मगर कहानी यथार्थवादी प्रतीत तो होती है। हेमंत सोरेन-48 वर्ष के भरे यौवन में ही भ्रष्टाचार के सिरमौर बन बैठे। निखालिस सोरेनवाली कुटुंबवादी परिपाटी में कदाचार के दोषी पाये गये। यथार्थ से लबरेज। मुख्यमंत्री के पद पर रहते हेमंत खनिज मंत्री भी रहे। उन्होंने स्वयं अनगढ़ा पत्थर खदान को खोदने का लाइसेंस अपने ही नाम पर आवंटित कर दिया। यह अत्यधिक नूतन तरीका है। दायें हाथ बायें हाथ को दे।

यूं तो राज्यपाल रमेश बैंस बड़े अनुभवी हैं। रायपुर से लोकसभाई और द्रोपदी मुर्मू (अधुना राष्ट्रपति) के बाद झारखण्ड के राज्यपाल बने। वे बड़े संभले तथा सावधान शासक है। निर्वाचन आयोग ने हेमंत सोरेन की विधायकी निरस्त करने का आदेश दिया है। मगर राज्यपाल ने तात्कालिक कदम उठाने के बजाये राज्य विधि विभाग की सलाह मांगी है। तुरंत बर्खास्त नहीं किया। बारह साल पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्षा सोनिया थीं। वह लाभ का पद माना गया। सोनिया ने लोकसभा से त्यागपत्र दिया। रायबरेली से उपचुनाव लड़ीं थीं। हेमंत भी शायद ऐसा ही कर सकते हैं। यदि ऐसा न किया तो? उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा। यूं वे तो पद छोड़कर छह माह के अंदर उपचुनाव लड़ सकते हैं। वे त्यागपत्र देकर तत्काल दोबारा शपथ ले सकते हैं। फिलहाल अभी गंभीर राजनीतिक संकट तो जन्म ही गया है।

हेमंत सोरेन-48 वर्ष के हैं, लम्बी पारी खेलनी है। मगर कालिमा तो लग गयी। उन्हें विरासत में भी पिता शिबू सोरेन से भ्रष्टाचार ही मिला है। शिबू सोरेन पीवी नरसिम्हा राव की काबीना में कोयला मंत्री थे, खनन लाइसेंस के भ्रष्ट आवंटन का उन पर आरोप लगा। प्रधानमंत्री ने सोरेन को बर्खास्त कर दिया। कुछ ही समय बाद नरसिम्हा राव को अपने अल्पमतवाली सरकार बचाने हेतु सांसदों का समर्थन जुटाना पड़ा। शिबू सोरेन की अकूत राशि उत्कोच में मिली। इस आदिवासी सांसद ने अपने विवेक के मुताबिक यह काला धन बैंक में जमा कर दिया। पकड़े गयें। जेल की सजा हुयी। पिता-पुत्र ही नहीं, घर की बहू सीता बसंत सोरेन भी चुनाव में उलटा पलटी हेतु गिरफ्तार हुयी थीं। यह उड़ीसा की नेता सीता मुर्मू (शादी के बाद सोरेन) देवर के हटने पर मुख्यमंत्री की दावेदार हो सकती हैं। बहुमत की चिंता नहीं क्योंकि सोरेन-नीत गठबंधन के 49 विधायक हैं, 81 सदस्यीय विधानसभा में।

इस बीच हेमंत सरकार बचाने में सजायाफ्ता लालू यादव खराब स्वास्थ्य के बावजूद बड़े सक्रिय हो गये हैं। उन्हें याद है कि अंगूठा छाप, ठेठ गंवई, काला अक्षर भैंस बराबर वाली मुख्यमंत्री वर्षों तक रही, राबड़ी देवी यादव को अविभाजित बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में शिबू सोरेन के विधायकों की ही कारीगरी रही। तब के इस समर्थन के ऐवज में लालू ने सोरेन को पृथक झारखण्ड राज्य निर्माण मांग के लिये समर्थन दिया था।

क्या विडंबना है कि इन विभाजित राज्यों में दो समान नेतागण साथ-साथ सरकार में है। राजसत्ता मानों बपौती हो गयी। हेमंत सोरेन अपराध के मामले में अपने पिता से काफी पीछे ही है। शिबू सोरेन को निजी सहायक शाशीनाथ झा की हत्या के जुर्म में सजा हुयी थी। फिलवक्त हेमंत सोरेन कब तक खैर मनायेंगे? उनका पतन होना तय है। तब भाजपा विधासभा को भंग कर निर्वाचन की मांग कर सकती है। नया जनादेश पाने पर जोर दे सकती है। गेंद फिर जनता के पाले में होगी।

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