मनई न होय होय भूमिहारा



--आशुतोष सिंह
वाराणसी-उत्तर प्रदेश
इंडिया इनसाइड न्यूज।

देश के प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध काशी से चुनाव लड़ रहे अजय राय कभी भाजपा की जान हुआ करते थे। गंगा सप्तमी के दिन जब मोदी जी माँ गंगा का आशीर्वाद ले कर नामांकन कर रहे थे जो टीवी पर छाए हुए थे, उसी समय उनके विरोधी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी गंगा स्नान कर रहे थे, जो कि वाराणसी लोकसभा सीट पर मोदी जी के प्रतिद्वंद्वी है। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उन्हें कही स्थान नहीं दिया और प्रधान सेवक के ईद-गिर्द ही मंडराते रहा। यह गलत है या सही... या इन मीडिया वालों की मजबूरी कि अपने टी.आर.पी. के लिए उसे ही दिखाते हैं जिससे इनका फायदा हो या जो जनता देखना चाहती है...

लेकिन मै जरा लगभग तीन दशक पीछे जाना चाहता हूँ, 1996 में, इसलिए कि अजय राय को मैं मात्र पहचानता ही नहीं जानता भी हूँ, यही अजय राय कभी भाजपा के थे। यह 1995-96 में भाजपा नेता स्व• कल्याण सिंह ने यहीं वाराणसी के लहुराबीर पर पहली बार एक युवा नेता अजय राय को भाजपा में शामिल कराया था। इसका मैं गवाह हूँ, तब हम लोग उनके साथ चलते थे। कल्याण सिंह की प्रिंट मीडिया में तब कुछ निन्दा भी हुई थी लेकिन दूरदर्शी नेता स्वर्गीय कल्याण सिंह ने इस हीरे को जौहरी के रूप में पहचान लिया था और अगले विधानसभा चुनाव में इन्हें वाराणसी के एक विधानसभा सीट (कोलसला) से विधायक का टिकट दे दिया। तब के कोलसला विधायक ऊदल हुआ करते थे जो कम्युनिस्ट पार्टी से लगातार 6 बार से विधायक थे। उस अजेय दुर्ग को अजय राय जैसे युवा नेता ने भेदते हुए ऊदल को पराजित कर भाजपा का परचम लहराया था। उस सीट को जीतकर भाजपा की झोली में डाल दिया था। तब से लगातार कोलसला से विधायक रहे। विधायकों में इनकी लोकप्रियता चरम पर थी। कितनी बार डॉ अवधेश सिंह (वर्तमान में भाजपा विधायक), सोनेलाल पटेल (अपनादल, संस्थापक व अध्यक्ष) सबको पराजित किया। कृष्णानंद राय की गाजीपुर में हत्या हुई तब विधायक रहते हुए इन्ही के कार्यकाल में वाराणसी कचहरी के पास बरगद के पेड़ के नीचे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व (राजनाथ सिंह सहित प्रदेश के लगभग सभी भाजपा नेता) अनशन पर बैठ गए। हत्यारा वही था जो अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय का भी हत्यारा था। इन्होंने अनशन पर किसी चीज का अभाव नहीं होने दिया। कर्ताधर्ता अजय राय ही थे, जो जी-जान से अनशन को सफल बनाया। बाद में लगभग 10 या 11 दिनों में अटल जी ने अनशन खत्म कराया। उस अनशन का श्रेय मुख्यरूप से स्थानीय नेता अजय राय को जाता है।

अब बात आती है 2009 के लोकसभा चुनाव की। तब का शीर्ष नेतृत्व यह कहा था कि अजय राय आप तैयारी करें, इस बार भाजपा आपको वाराणसी लोकसभा से प्रत्याशी बनाएगी। इन्होंने करीब 4 साल पहले से ही तैयारी करनी शुरू कर दी। लेकिन पार्टी ने अंतिम समय मुरली मनोहर जोशी को प्रत्याशी बना दिया। मंशा देखिए कि उन्हें (मुरली मनोहर जोशी) वाराणसी की सीट सुरक्षित लगी, यह तो भाजपा की सीट है मैं आराम से जीत जाऊँगा। प्रयागराज (इलाहाबाद) छोड़ वाराणसी से प्रत्याशी घोषित हुए। तब भी अजय राय ने शीर्ष नेतृत्व से पड़ोस की चंदौली सीट की माँग की और मिलती तो मैं 100% यकीन से कह सकता हूँ कि अजय राय सीट जीत कर भाजपा की झोली में डाल देते। कमलापति त्रिपाठी के बाद यही सवर्ण नेता होते जो चंदौली से लड़ते लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने यह बात भी नहीं मानी और एक मौसमी नेता (तब के शराब व्यवसाय से जुड़े शख्स जवाहर जयसवाल जो पार्टी का सदस्य भी नहीं था) रातोरात पार्टी में शामिल होता है और उनको टिकट मिल जाता है जिसकी छवि बनारस में अच्छी थी ही नहीं। क्या कारण थे? उस विषय की गहराई का छिद्रान्वेषण नहीं करूँगा क्योंकि जो मैं जानता हूँ वह बनारस के प्रबुद्ध वर्ग भी जानते है। यहीं से अजय राय का मन बिलख उठा। कारण जो योद्धा होता है अन्याय का प्रतिकार अवश्य करता है।

तब समाजवादी पार्टी के टिकट पर अजय राय लोकसभा का चुनाव वाराणसी से जोशी जी के खिलाफ लड़े। अच्छी त्रिकोणी लड़ाई में अजय राय पराजित हुए। बाद में इन्होंने समाजवादी पार्टी को छोड़ दिया और निर्दलीय ही कोलसला से विधायक का बाई इलेक्शन का चुनाव लड़े और निर्दलीय जीते। भाजपा के शुभचिंतक लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि भाजपा नेतृत्व इनकी घर वापसी करा लेगा। यह मान भी जाते, क्योंकि मैं इन्हें पहचानता ही नहीं जानता भी हूँ। मेरा दो पीढ़ी का इनसे सम्बंध है और आज भी है। यह मेरे पड़ोसी है, मेरे हम उम्र है, दुख-सुख में हम लोगों के साथी है। बस फर्क मात्र इतना है कि यह नेता हैं और मैं नहीं। लेकिन भाजपा किस गुमान में थी पता नहीं, इस अवसर को कांग्रेस ने हाथोंहाथ पकड़ा, कांग्रेस वाले जानते थे कि यह भूमिहार (ब्राह्मण) नेता स्वर्गीय राजनारायण जी की मिट्टी का बना है। कांग्रेस वाले जानते हैं कि इंदिरा गांधी की (रायबरेली सीट) को पराजय का सामना करना पड़ा था जब स्वर्गीय राजनारायण जी ने (इमरजेंसी के बाद के चुनाव में) आयरन लेडी को हराया था। वो जानते हैं यह दिग्गज़, जुझारू नेता (अजय राय) काम का है, यह ब्रह्मास्त्र कभी काम आयेगा। और इनको 2014 में मोदी जी के खिलाफ लड़ाया और आज भी लड़ रहे हैं। एक महारथी (कर्ण) की तरह 2024 में भी चुनाव लड़ रहे है। यकीनन उस समय भाजपा में अमित शाह जैसा पारखी नेतृत्व (चाणक्य) नहीं था नहीं तो किसी भी कीमत पर अपने भाजपा कार्यकर्ता को मना लेते। आदरणीय अटल जी ने कहा था... पार्टी नये कार्यकर्ताओं को जोड़े लेकिन यह अवश्य ख्याल करे कि उनका पुराना कार्यकर्ता (जो अभाव के दौर के है) उनकी उपेक्षा न हो, वो चना चबैना वाले कार्यकर्ता है। जब पार्टी सत्ता में नहीं थी उस दौर के कार्यकर्त्ताओं को अवश्य जोड़ कर रखें लेकिन आज भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ता अन्य दलों से आयातित है। शायद वो पूर्व सघ प्रमुख देवरस जी के कथन पर चल रहे कि पहले जमीन कब्जा करो, भले ही कटीली पौधे को ही लगाना पड़े, जब जमीन कब्जा हो जाएगी, तो कटीले पेड़ो को काट आम, अमूरद के बगीचे लगेंगे। लेकिन हम जैसे बचपन से ही संघ से जुड़े व्यक्ति को दुख होता है कि भाजपा ने युवा नेता (अजय राय) को खो दिया। अब तो चुनाव का वक्त है यह चितन का विषय नही लेकिन मोदी जी के खिलाफ कोई भूमिहार नेता (अजय राय) ही लड़ सकता है। जब राजनीति एक युवा वर्ग के लिए व्यवसाय हो गया है, सेवा भाव विलुप्त है तो बिना जय पराजय की चिन्ता छोड़ अजय राय नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं।

कल कुछ सज्जन शाम को चोराहे पर मिले बोले कि अजय राय जी गलत कर रहे हैं, हार जायेंगे। मोदी जी को क्या हरा पाएंगे तो हम बोले कि इंदिरा जी भी रायबरेली से अजेय समझी जाती थी, उनको राजनारायण जी ने 1977 में हराया था कि नहीं, कही मोदी जी के ग्रह गोचर विपरीत हो गये और अजय राय जी हरा दिए तो...

आज मेरे दादाजी की कही हुई कुछ पंक्ति याद आ गई जो वे भूमिहार ब्राह्मण के स्वभाव के बारे में कहते थे... "तारा कहे सुना ये तरई, राह छोड़ जात दु मनई, तो तरई कहे सुना ये तारा, मनई न होय होय भूमिहारा..."

यह मेरे व्यक्तिगत अनुभव थे। किसी के मन को चोट पहुंचाने का मेरा स्वभाव नहीं।

ताजा समाचार

National Report



Image Gallery
राष्ट्रीय विशेष
  India Inside News