10 सालों में 1000 करोड़ का घोटाला



--विजया पाठक
एडिटर, जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● प्रदेश के एकमात्र तकनीकी विश्वविद्यालय आरजीपीवी के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्‍ता की शह पर 10 सालों में 1000 करोड़ का घोटाला

● सरकार, राजभवन, विश्वविद्यालय और भाजपा नेताओं के गठजोड़ ने आरजीपीवी को किया बर्बाद

● प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद मध्यप्रदेश में उजागर हुआ सबसे बड़ा घोटाला

राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को सरकार, विश्वविद्यालय और राजभवन के गठजोड़ ने पिछले 10 सालों में प्रदेश के एकमात्र तकनीकी विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया है। कोई 10 वर्ष पहले टेक्‍नीकल एजुकेशन विभाग के एक अधिकारी प्रो. सुनील कुमार गुप्‍ता को कुलपति नियुक्त किया गया था, जो कि एक राजनीतिक पोस्टिंग थी। उसके बाद सरकार-विश्वविद्यालय-राजभवन की मिलीभगत में ऐसा भ्रष्ट तंत्र तैयार किया गया जिसके बाद यह विश्वविद्यालय सिर्फ बर्बाद ही होता चला गया। आज हालात यह है कि पिछले 10 वर्षों में विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए कोई प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं हुई है। इतने समय में केवल एक पीआरओ नियुक्त हुआ है। विश्वविद्यालय की हालत यह है कि इसके यूआईटी भोपाल में अध्यापकों की कुल क्षमता का केवल 25-30% स्टाफ है। वहीं इसके यूआईटी शिवपुरी और झाबुआ की हालत तो और भी खराब है। वहां निदेशक और इक्के-दुक्के अध्यापकों को छोड़कर सारे अध्यापक संविदा पर हैं।

विश्व प्रसिद्ध विज्ञापन निर्माता कंपनी के मालिक डॉ. पीयूष पांडे ने मध्यप्रदेश के संदर्भ में कुछ वर्षों पहले एक लाइन लिखी थी.... एमपी अजब है, सबसे गजब है...। डॉ. पीयूष पांडे की लिखी यह लाइन तब से लेकर अब तक काफी चर्चित है। एक बार फिर यह लाइन मध्यप्रदेश के उपहास का कारण बन गई है, जिसके दोषी हैं मध्यप्रदेश के एकमात्र शासकीय तकनीकी विश्वविद्यालय राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति, रजिस्ट्रार, एग्जाम कंट्रोलर सहित वित्त विभाग से जुड़े वे बड़े अफसर जिन्होंने मिलकर विश्वविद्यालय में 250 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले को अंजाम दिया है। वहीं कुल दस सालों में अन्य घोटालों को जोड़ दिया जाए तो इस संस्थान में 1000 करोड़ से ऊपर के घोटाले हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई शिक्षा नीति- 2020 के लागू होने के बाद मध्यप्रदेश में किसी शासकीय तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। इस घोटाले पर पर्दा डालने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन सहित राजभवन सहित प्रदेश सरकार के भाजपा नेताओं ने काफी कोशिशें की लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हुए। आलम यह हुआ कि आज राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा गढ़ बनकर उभरा है। इससे पहले भी कुलपति और उनके गुर्गों के काले कारनामों के खिलाफ जांच समिति ने अनुशंसा की थी पर हर बार सरकार और राजभवन से सुनील कुमार को अभयदान दे दिया गया। सुनील कुमार ने तो यहां तक कह दिया था कि "सरकार उनके खिलाफ कोई कारवाही नहीं कर सकती है, उनका रिक्रूटमेंट राजभवन द्वारा किया गया है", ऐसा दुस्साहस वही व्यक्ति कर सकता हैं जिसके पीछे कोई बड़ा व्यक्ति हो।

• 1000 करोड़ रुपये से अधिक का हो सकता है घोटाला

एक महीने पहले सामने आये घोटाले पर सरकार के अधिकारियों ने कार्यवाही की तत्परता दिखाने का पूरा प्रयास किया और लगभग एक महीने बाद दोषियों पर राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता, पूर्व रजिस्ट्रार राजपूत, ऋषिकेश वर्मा, सुरेश कुशवाह, मयंक कुमार दलित संघ सुहागपुर एवं अन्य 05 लोगों पर एफआईआऱ दर्ज की गई है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की है। बड़ा सवाल यह है कि क्या एक कुलपति बगैर राजनैतिक संरक्षण के इतने बड़ा घोटाला कर सकता है? आखिर और कौन-कौन लोग इस घोटाले में शामिल हो सकते हैं, उन सभी के नाम भी सामने आना चाहिए। इस बात का भी आंकलन लगाया जा रहा है कि यह घोटाला सिर्फ 250 करोड़ का नहीं है। अगर सही ढंग से इसकी जांच की जाए तो पिछले 10 वर्षों में कुलपति महोदय सुनील कुमार गुप्ता ने 1000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले को अंजाम दिया है।

• मुख्यमंत्री डॉ. यादव के आदेश पर हुई एफआईआर, पर सरकार द्वारा दोषियों को खूब बचाया गया

राजीव गांधी विश्वविद्यालय में हुआ यह भ्रष्टाचार का मामला मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल में उजागर हुआ पहला और बड़ा घोटाला है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करने के आदेश जारी कर दिये हैं। हालांकि सूत्रों के अनुसार इस पूरे घोटाले में सिर्फ कुलपति और रजिस्ट्रार नहीं बल्कि अन्य कई बड़े राजनेता, राजभवन के अधिकारी व सरकार में बैठे नेताओं के शामिल होने की आशंका है। एफआईआर के अनुसार एक निजी बैंक की पिपरिया शाखा में आरजीपीवी के 100 करोड़ रुपये की एफडी बनवाकर जमा की गई है। जिस आरबीएल (निजी बैंक) के शाखा में रुपये जमा किए गए हैं, वह बैंक की बहुत छोटी शाखा है। लेकिन आरजीपीवी के कुलपति और तत्कालीन रजिस्ट्रार ने बैंक के फर्जी स्टेटमेंट तैयार करवाकर बैंक को फायदा पहुंचाने के लिए विवि की राशि के 25-25 करोड़ की चार एफडी बनवाकर पिपरिया शाखा में जमा कराई। इसके साथ ही एक एनजीओ को भी अनियमितता बरतते हुए करीब नौ करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।

• तकनीकी विभाग ने गठित की थी समिति, जिसकी प्रारम्भिक जांच में साबित हुआ है बड़ा घोटाला

तकनीकी शिक्षा विभाग ने शिकायत के बाद तीन सदस्यीय समिति जांच के लिए गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट दी। इसमें यूनिवर्सिटी के 250 करोड़ रुपये आपराधिक षड्यंत्र कर निजी खातों में ट्रांसफर करने की पुष्टि हुई है। इसके बाद सरकार ने यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलसचिव डॉ. आरएस राजपूत समेत संबंधित शाखा के तत्कालीन अधिकारी/कर्मचारियों को भी निलंबित करने का फैसला लिया।

• उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं डॉ. मोहन यादव

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अंतिम कार्यकाल में डॉ. मोहन यादव उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। इससे पहले उच्च शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी जयभान सिंह पवैया के हाथ में थी। सूत्रों के अनुसार इस तरह के घोटालों में पूर्व उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्रियों की संलप्तित्ता की जानकारी सामने आई है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री यादव ने बगैर अधिक नामों के खुलासा होने के पूर्व ही आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर गड़ी कार्यवाही करने के आदेश दिये हैं।

• आउटसोर्स और संविदा नियुक्ति से संचालित है विश्वविद्यालय

जानकारी के अनुसार कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता ने पिछले 10 वर्षों में विश्वविद्यालय को पूरी तरह से खोखला कर दिया है। उन्होंने न सिर्फ विश्वविद्यालय में वित्तीय अनिमित्ताओं को अंजाम दिया है। बल्कि कई युवाओं को रोजगार से दूर रखने में भी उनकी बड़ी भूमिका है। उन्होंने पिछले 10 वर्षों में एक भी प्रमुख पदों पर नियुक्तियां नहीं होने दी। यहीं नहीं आरजीपीवी के अन्य शैक्षणिक केन्द्रों पर भी यही हाल रहा है और वे संविदा और आउटसोर्स कर्मियों से ही काम चला रहे हैं।

• पहले भी 170 करोड़ के घोटाले को अंजाम दे चुके हैं कुलपति गुप्ता

यह पहला अवसर नहीं है जब राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता ने भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है। इससे पहले भी कुलपति महोदय लगभग 170 करोड़ रुपये के घोटाले में घेरे जा चुके थे। कुलपति पर निर्माण कार्यों समेत अन्य कामों में हुए करीब 170 करोड़ रुपए के घोटाले में संदेह के घेरे में आ गए हैं। तकनीकी शिक्षा विभाग ने कुलपति प्रो. गुप्‍ता की भूमिका को संदेहास्पद मानते हुए राजभवन को पत्र लिखा है। इसमें विभाग ने अपने स्तर पर जांच कमेटी बनाने की मांग की थी। पत्र में लिखा हुआ था कि कुलपति प्रो. गुप्‍ता के पहले कार्यकाल में साल 2019-20 में आरजीपीवी में विभिन्न निर्माण कार्य हुए थे। इसके अलावा गेस्ट फैकल्टीज को कोर्ट में केस विचाराधीन होने के बीच ज्यादा भुगतान कर दिया गया था। निर्माण कार्यों समेत खरीदी में फर्जीवाड़े के आरोप लगाते हुए शिकायत राज्य शासन तक पहुंची थी। शासन ने इस मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन उज्जैन के शासकीय इंजीनियर कॉलेज के प्रो. एसके जैन की अध्यक्षता में किया था। प्रो. जैन ने शिकायतों को सही पाते हुए जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी थी।

• कुलपति ने कार्रवाई की बजाय जांच ही ठंडे बस्ते में डाली

कुलपति प्रो. गुप्‍ता ने कार्रवाई के लिए अपने स्तर पर एक कमेटी का गठन कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस पर सरकार ने नाराजगी जताते हुए फिर से पत्र लिखकर कार्रवाई के लिए कहा। लेकिन सरकार के बार-बार पत्र लिखने के बावजूद जब कुलपति ने कोई कार्रवाई नहीं की तो अब विभाग ने राजभवन को पत्र लिखा है। इस पत्र में विभाग ने लिखा है कि कुलपति की भूमिका भी इस मामले में संदेह के घेरे में है। इस वजह से विभाग को अपने स्तर पर हाईलेवल कमेटी बनाकर कार्रवाई की अनुमति दी जाए। लेकिन राजभवन के अधिकारियों की सुस्ती ने इस पूरे मामले पर पर्दा डाल दिया।

• यूआईटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर शासन के अन्य विभाग में जाकर लेते हैं लेक्चर और उठाते हैं आर्थिक लाभ

यूआइटी भोपाल में अध्यापन का कार्य देखने वाले प्रोफेसर यहां के विद्यार्थियों की पढ़ाई और रिसर्च में ध्यान न देकर अन्य जगह जाकर आर्थिक लाभ लेते हैं। स्कूल आफ एनर्जी एंड एनवायरनमेंट मैनेजमेंट की एचओडी सविता व्यास के विभाग में भी गंभीर आर्थिक आरोप लगे हैं। हालत यह है कि सविता व्यास अपने संस्थान में अध्यापन एवं रिसर्च के काम को छोड़कर शासन के अन्य संस्थान जैसे ईपको संस्थान में बोर्ड मेंबर हैं एवं वहां जाकर क्लासेज भी लेती है जिसका आर्थिक लाभ भीं इन्हें मिलता है। खैर, यह विषय भी गंभीर जांच का है, जिसके बाद विश्वविद्यालय के कितने घोटाले की परते निकलेंगी। निश्चित तौर पर ऐसे संस्थान की गंदगी साफ करने के लिए मैं अंत तक लडूंगी।

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