लाइब्रेरी में पढ़ाई ही नहीं होती! क्लिंटन का इश्क जन्मा था!!



--के• विक्रम राव
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

पुस्तकालय केवल पढ़ने ही लोग नहीं जाते। अगर अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन की वार्षिक रपट देखें तो पता चलता है कि करीब 43 प्रतिशत लोग पढ़ने नहीं आते। कई लोग यहां मित्र बनाने आते हैं।

एक मशहूर वाकया है अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी का जिसकी स्थापना 1701 में की गई थी। आज इसे याद करते हैं। केवल छात्रों, शोधकर्ताओं और विद्वानों के लिए ही नहीं, वरन रोमांस और प्रणय लीला के लिए भी। अमेरिका के बयालीसवें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का सहपाठी हिलेरी से यहीं प्रेम हुआ था। फिर वे दंपति बने। बात 1971 की है। दोनों येल विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करते थे। लाइब्रेरी में हिलेरी को छुप-छुप कर बिल घूरते रहते थे। किताबों की ओट से। एक बार खीजकर हिलेरी ने टोका कि : “क्या चाहते हैं?” परिचय हुआ, आत्मीयत बढ़ी, शादी हो गई। अर्थात किताबों के बहाने बात बढ़ी थी।

हालांकि स्कॉटलैंड के 18वीं सदी के लेखक टामस कार्लाइल ने उम्दा किताबों के संग्रहालय को ही लाइब्रेरी बताया था। मगर छठी सदी में दूसरे खलीफा उमर इब्न खतब की राय भिन्न थी। जब इस्लामी फौज के सेनापति ने विश्व के महान पुस्तकालय को मिस्र के एलेक्जेंड्रिया पर हमले के बाद कब्जा कर लिया था तो उसने खलीफा से पूछा कि उन लाखों प्राचीन पुस्तकों का क्या किया जाए? खलीफा उमर का जवाब निहायत सरल था : “यदि वे पुस्तकें कुरान शरीफ से असहमत हैं तो जला दो। यदि सहमत हैं तो अनावश्यक हैं, जला दो।” इस्लामी सैनिकों ने सारी लाइब्रेरी जला दी। मानव ज्ञान सैकड़ों साल पिछड़ गया। ठीक वैसा ही डकैत बख्तियार खिलजी ने महान नालंदा विश्वविद्यालय के साथ किया। बौद्ध और हिंदू शोध पुस्तकें भस्म हो गई थी।

आधुनिक सार्वजनिक पुस्तकालयों का विकास वास्तव में प्रजातंत्र की बड़ी देन है। शिक्षा का प्रसारण एवं जनसामान्य को सुशिक्षित करना प्रत्येक राष्ट्र का कर्तव्य है। जो लोग स्कूलों या कालेजों में नहीं पढ़ते अथवा जिनकी पढ़ने की अभिलाषा है और पुस्तकें नहीं खरीद सकते तथा अपनी रुचि का साहित्य पढ़ना चाहते हैं, ऐसे वर्गों की रुचि को ध्यान में रखकर जनसाधारण की पुस्तकों की माँग सार्वजनिक पुस्तकालय ही पूरी कर सकते हैं। यूनैसको जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान किया है। प्रत्येक प्रगतिशील देश में जन पुस्तकालय निरंतर प्रगति कर रहे हैं और साक्षरता का प्रसार कर रहे हैं। वास्तव में लोक पुस्तकालय जनता के विश्वविद्यालय हैं, जो बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के उपयोग के लिए खुले रहते है।

अनुसंधान पुस्तकालय उस संस्था को कहते हैं जो ऐसे लोगों की सहायता एवं मार्गदर्शन करती है जो ज्ञान की खोज में है। जैसे कृषि से संबंधित किसी विषय पर अनुसंधानात्मक लेख लिखने के लिए कृषि विश्वविद्यालय या कृषिकार्यों से संबंधित किसी संस्था का ही पुस्तकालय अधिक उपयोगी सिद्ध होगा।

भारत के कुछ प्रमुख पुस्तकालयों में हैं दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी। यूनेस्को और भारत सरकार के संयुक्त प्रयास से स्थापित दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी का उद्घाटन जवाहरलाल नेहरू ने 27 अक्टूबर 1951 को किया। इस पुस्तकालय ने अभूतपूर्व उन्नति की है। इसमें ग्रंथों की संख्या लगभग चार लाख है। नगर के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ खोल दी गई है। इसके अतिरिक्त प्रारंभ से ही चलता-फिरता पुस्तकालय भी इसने शुरू किया।

राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता की स्थापना जे. एच. स्टाकलर के प्रयत्न से 1836 ई. में हुई। इसे अनेक उदार व्यक्तियों से एवं तत्कालीन फोर्ट विलियम लिट थे। कालेज से अनेक ग्रंथ उपलब्ध हुए। प्रारंभ में पुस्तकालय एक निजी मकान में था, परंतु 1841 ई. में फोर्ट विलियम कालेज में इसे रखा गया। सन्‌ 1844 ई. में इसका स्थानांतरण मेटकाफ भवन में कर दिया गया। सन्‌ 1890 ई. में कलकत्ता नगरपालिका ने इस पुस्तकालय का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। बाद में तत्कालीन बंगाल सरकार ने इसे वित्तीय सहायता दी। इंपीरियल लाइब्रेरी की स्थापना 1891 ई. में की गई। लार्ड कर्जन के प्रयत्न से कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी तथा इंपीरियल लाइब्रेरी को 1902 में मिला दिया गया। उदार व्यक्तियों ने इसे बहुमूल्य ग्रंथों का निजी संग्रह भेंट स्वरूप दिया।

अपने पुस्तकालय लखनऊ विश्वविद्यालय के टैगोर लाइब्रेरी का भी उल्लेख मैं करना चाहूंगा। जो कुछ मैंने जाना, सीख और पढ़ा इसी स्थल में। इसका विकास क्रमिक हुआ है।

अब टैगोर लाइब्रेरी में एक सदी से चली आ रही रीति को खत्मकर अब उसकी जगह बारकोड स्कैन कर किताबें दी जायेंगी। इस पाइलट प्रोजेक्ट की शुरुआत इस सत्र से कर दी गई है। विश्वविद्यालय में कुल पांच लाख किताबें हैं, जिसमें लगभग साढ़े तीन लाख टैगोर लाइब्रेरी में है, बाकी डिपार्टमेंटल लाइब्रेरियों में हैं। छात्रों की सहूलियत के लिए किताबें डिजिटल करने की व्यवस्था भी शुरू की गई है। इससे लाइब्रेरी की किताबों का भी डेटाबेस एक क्लिक पर उपलब्ध रहेगा।

टैगोर लाइब्रेरी की विकास यात्रा में 1974 में एक महत्वपूर्ण सोपान आया जब पुस्तकालय विज्ञान भी अध्ययन कोर्स के सिलेबस में सम्मिलित किया गया। इस विभाग के संस्थापक-अध्यक्ष थे स्व. प्रो. सी. जी. विश्वनाथन जिन्होंने 18 पुस्तकें लिखी। उसमें प्रमुख है कैटलागिंग पर। इसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। प्रो. विश्वनाथन आंध्र विश्वविद्यालय (विशाखापट्टनम) में भी आचार्य रहे। वहीं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन तब कुलपति थे। दोनों परस्पर संबंधी भी थे। जब राधाकृष्णन काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति बने तो प्रो. विश्वनाथन भी वहीं के लाइब्रेरी विभाग में आ गए थे। उसके पूर्व लखनऊ के मशहूर अमीरद्दौला लाइब्रेरी में 1939 में वे रहे थे। प्रो. विश्वनाथन के नाम से लखनऊ विश्वविद्यालय में लाइब्रेरी विज्ञान की परीक्षा में श्रेष्ठ छात्र के लिए वार्षिक स्वर्ण पदक भी रखा गया है। उनकी पुत्री डॉ. के. सुधा राव (रिटायर्ड रेल चिकित्सा मुख्य निदेशक) मेरी पत्नी हैं।

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