रफी साहब के गुजरने के बाद परिवार को उनकी अहमियत मालूम हुई - शाहिद



रंजीत लुधियानवी,
कोलकाता, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

हिंदी के अलावा पंजाबी, बंगाली समेत देश की लगभग तमाम भाषाओं में सदाबहार गीत गाकर एक मुकाम कायम करने वाले मोहम्मद रफी के परिवार वालों को उनके इस दुनिया में रहते हुए अहमियत मालूम नहीं थी, लेकिन उनके गुजरने के बाद पता चला कि किन ऊंचाऊयों को कायम करने वाले इंसान ही नहीं गायक भी थे। असद भोपाली की कलम से निकला और मोहम्मद रफी के लफ्जों से निकला फिल्म ‘एक नारी दो रुप (1973)’ का यह गीत ‘दिल का सून साज तराना ढूंढेगा, मुझको मेरे बाद जमाना ढ़ेंढ़ेगा' पर पर्दे पर जब खलनायक से नायक बन रहे शत्रुध्न सिन्हा ने होंठ हिलाए थे, तब लोगों ने नहीं समझा था कि 46 साल बाद भी लोगों को यह गाना याद रहेगा। रफी साहिब के इकलौता जीवित गायक बेटे मोहम्मद शाहिद रफी ने एक खास मुलाकात में यह बताया।

उन्होंने कहा कि जब वे जिंदा थे हमारे लिए एक सामान्य पिता थे। देश-दुनिया में उन्हें मिली शोहरत के बारे में घरवालों को एहसास नहीं था। लेकिन उनके देहांत में उमड़ी हजारों लोगों की भीड़ से लेकर उनके गुजर जाने के 39 साल बाद भी रफी लोगों के दिलों में कायम हैं।

महानगर में पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक संगीतमय कार्यक्रम पेश करने के लिए शाहिद मंगलवार को कोलकाता पहुंचे हैं। यहां वे एक संगीत प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित करना चाहते हैं। एक सवाल के जवाब में कि उन्होंने कहा कि रफी साहिब के नाम का इतना असर है कि लोग आज भी मेरे पांव छूने चले आते हैं। मना करने पर कहते हैं कि आप एक दरवेश रफी साहिब के बेटे हैं, ऐसा करने से मत रोंके। क्या एक और रफी तैयार करना चाहते हैं, इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि इतने सालों मेंं जब उनकी तरह का दूसरा कोई गायक पैदा नहीं हो सका तो ऐसी गुस्ताखी हम कैसे कर सकते हैं। इतना जरुर है कि हम चाहते हैं कि यहां से एक अच्छा गायक निकले तो अपना नाम रोशन करें।

क्या आपके परिवार में दूसरे रफी नहीं निकल सकता? इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि हमारे परिवार के सारे सदस्य इंगलैंड में रहते हैं और वहां के माहौल में रच-बस गए हैं। संगीत से उनका वास्ता नहीं है। रफी साहिब के वंशज हैं, इसका उन्हें गर्व है। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत सरकार की ओर से उन्हें भारत रत्न पुरस्कार प्रदान नहीं करना चाहिए। शाहिद ने कहा कि रफी वास्तव में भारत रत्न हैं, दुनिया में हम कहीं भी जाते हैं लोग उन्हें भारत रत्न के तौर पर याद करते और उनके गीत सुनने की गुजारिश करते हैं। रफी पुरस्कार से बहुत उपर चले गए थे। हालांकि इस तरह के पुरस्कार तो उन्हें बहुत पहले मिल जाने चाहिए थे, लेकिन दुनिया के करोड़ों लोगों का यह प्यार क्या किसी पुरस्कार से कम है कि उनके दुनिया छोड़ कर जाने के 39 साल बाद भी लोग रफी के दीवाने हैं।

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