--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक बार फिर सुनवाई हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ का निर्माण धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह मुसलमानों द्वारा अपनी संपत्ति ईश्वर को समर्पित करने का मामला है। उन्होंने इस साल कानून बने वक्फ संशोधन अधिनियम में निर्धारित वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के खिलाफ तर्क दिया।
वक्फ बाय यूजर को लेकर सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं। यही वक्फ बाय यूजर है। बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी। 1923 से लेकर 1954 तक अलग अलग प्रावधान हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यही रहे। कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि कोई विवाद है। इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए श्री सिब्बल ने तर्क दिया कि नए कानून के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना ऐसी है कि मुसलमान अल्पसंख्यक बन सकते हैं। 22 सदस्यीय निकाय में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री पदेन सदस्य हैं। इसके दस सदस्यों को मुसलमानों में से चुना जाना चाहिए। अन्य में न्यायविद, राष्ट्रीय स्तर के व्यक्ति और एक नौकरशाह शामिल हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि निकाय का नियंत्रण मुसलमानों से छीन लिया गया है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया। सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती। मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, वक्फ संस्थाएं दान से चलती हैं। कपिल सिब्बल ने कहा कि कलेक्टर जांच करेंगे। जांच की कोई समय सीमा नहीं है। जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी।
हिंदू और सिख संस्थानों की ओर इशारा करते हुए श्री सिब्बल ने कहा, "हर धार्मिक बंदोबस्त, एक भी व्यक्ति मुसलमान या गैर-हिंदू नहीं है।" मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने फिर पूछा, "बोधगया के बारे में क्या? सभी हिंदू हैं।" श्री सिब्बल ने कहा, "मुझे पता था कि आप यह पूछेंगे", और उन्होंने बताया कि पूजा स्थल हिंदुओं और बौद्धों के लिए एक जैसे हो सकते हैं। "ये मस्जिद हैं। यह धर्मनिरपेक्ष नहीं है। वक्फ का निर्माण अपने आप में धर्मनिरपेक्ष नहीं है। यह भगवान को समर्पित एक मुस्लिम संपत्ति है," श्री सिब्बल ने कहा।
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि नया कानून यह सुनिश्चित करने का एक नुस्खा है कि आवेदक "हमेशा" वक्फ पंजीकरण के लिए कार्यालय का चक्कर लगाता रहे। "यह सिर्फ़ आतंक फैलाने के लिए है... हर धर्म में धर्मदान होता है। कौन सा धार्मिक धर्मदान आपसे यह साबित करने के लिए कहता है कि आप पिछले 5 सालों से इसका पालन कर रहे हैं? कौन उनसे धर्म का सबूत मांगता है?" श्री सिंघवी ने कहा कि जैसे ही नए कानून के तहत कोई विवाद उठाया जाता है, संपत्ति का वक्फ का दर्जा खत्म हो जाता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने पूछा कि नए कानून के तहत मानदंड को पूरा करने के लिए किसी को प्रैक्टिसिंग मुस्लिम के रूप में कैसे पहचाना जाएगा। "क्या कोई मुझसे पूछ सकता है, क्या आप दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं... और फिर कोई मुझसे पूछेगा कि क्या मैं शराब पीता हूं... क्या इस तरह से इसका फैसला किया जाएगा?" मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित कानून में संवैधानिकता की धारणा होती है और जब तक कोई स्पष्ट मामला नहीं बनता, तब तक अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।
वक्फ संशोधन अधिनियम, जिसे संसद ने पारित किया और पिछले महीने कानून बन गया, ने देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया क्योंकि मुस्लिम निकायों ने दावा किया कि यह अल्पसंख्यकों पर हमला है और सरकार पर वक्फ भूमि पर नज़र रखने का आरोप लगाया। सरकार जोर देकर कहती है कि संशोधनों का उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कामकाज को अधिक कुशल, समावेशी और पारदर्शी बनाना है।