दशकों तक देश पर राज करने वाली राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का भविष्य संकट में



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■मध्यप्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व बचाये रखने में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की हो सकती है बड़ी भूमिका

■पार्टी आलाकमान को पहल कर मध्यप्रदेश में बड़े फेरबदल करने पर करना होगा विचार

■दिल्ली जैसे प्रदेश में 70 में से एक सीट भी नहीं हासिल कर सकी कांग्रेस

देश की आजादी के बाद से लगभग 06 दशक तक भारत पर शासन करने वाली प्रमुख राजनैतिक पार्टी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का भविष्य आज संकट में नजर आ रहा है। पिछले एक दशक में नजर डालें तो पार्टी ने न सिर्फ अपने प्रमुख और दिग्गज नेताओं को खोया है, बल्कि देश के प्रमुख राज्यों से उसे सत्ता से भी हाथ धोना पड़ा है। आज स्थिति यह बन गई है कि कांग्रेस पार्टी की सरकार देश के इक्का-दुक्का राज्यों में है। वह भी उन राज्यों में है जिनका योगदान केन्द्र सरकार बनाने में नाम मात्र होता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर यही दशा और दिशा रही तो आगामी समय में कांग्रेस का क्या होगा, कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा की साजिश का शिकार होते हुए देश की सबसे पुरानी पार्टी अपनी पहचान खो दे। उसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि जिस दिल्ली में लंबे समय तक शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने शासन किया आज उसी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ में एक भी सीटें नहीं लग पाई। यानि कांग्रेस पूरी तरह से दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गई है। यह कांग्रेस और उसके पार्टी शीर्षस्थ के लिये बड़ा चिंता का विषय है कि दिल्ली जैसे राज्य में अगर पार्टी की एक सभी सीट न आये तो भला देश की जनता उनसे क्या अपेक्षा करे।

• लगभग अप्रांसिगक हो गया है विपक्ष

राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस पार्टी अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है और अब उसे लगातार अभूतपूर्व चुनावी हार का सामना करना पड़ रहा है। एक समय अजेय रही और स्वतंत्र भारत पर करीब पांच दशकों तक शासन करने वाली राजनीतिक दिग्गज कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी को आम चुनावों में भारी जीत हासिल करने से रोकने में विफल रही। यहां तक कि स्थानीय क्षेत्रों में मजबूत पकड़ का दावा करने वाली क्षेत्रीय विपक्षी पार्टियों को भी अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, जिससे कम से कम अभी के लिए विपक्ष लगभग अप्रासंगिक हो गया है।

• मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने किया था एकजुट

वहीं, अगर मध्यप्रदेश की बात करें तो वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जबरदस्त नेतृत्व करते हुए चुनावी मैदान में फतह प्राप्त की। लेकिन सिंधिया जैसे नेता की वजह से कमलनाथ को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। लेकिन कमलनाथ की कर्मठता और सक्रियता फिर भी कम नहीं हुई और वे लगातार राज्य में सक्रिय रहे और उन्होंने वर्ष 2023 के चुनाव में पूरी सक्रियता के साथ करते हुए पार्टी को भाजपा के बराबर लाकर खड़ा कर दिया। लेकिन जब कांग्रेस अंतर्कलह के कारण चुनाव हारी तो शीर्षस्थ ने कमलनाथ पर भरोसा न करके बड़ा धोखा पाया जिसका परिणाम है कि अभी तक प्रदेश में जितने भी उपचुनाव हुए उसमें न तो कांग्रेस जीत प्राप्त हुई और न ही कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में सही ढंग से सक्रिय हो पा रही।

• कमजोर विपक्ष के कारण भाजपाई हावी

वहीं, अगर प्रदेश में विपक्ष की भूमिका पर प्रकाश डालें तो इसमें कोई दो मत नहीं कि वर्तमान कांग्रेस पार्टी की लीडरशिप बेहद कमजोर है। यही कारण है कि विधानसभा हो या फिर सरकार को घेरने की बात विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस हर बार पीछे रही। यही नहीं विपक्षी दल के होने के नाते पार्टी ने ऐसे कई प्रमुख मुद्दों पर सरकार को घेरना तक उचित नहीं समझा जिनसे मोहन यादव की सरकार को झटका पहुंच सकता था। फिर बात चाहे नर्सिंग घोटाले की हो, या फिर आरटीओ पुलिस आरक्षक सौरभ शर्मा के पास प्राप्त हुई बेनामी संपत्ति का। महिलाओं से लेकर युवाओं के बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है लेकिन विपक्षी नेता पूरी तरह से उदासीन हैं और हाथ पर हाथ रखकर बैठे हुए हैं। ऐसे में पार्टी आलाकमान को अगर भविष्य मप्र में कांग्रेस का बचाकर रखना है तो एक बार फिर नये सिरे से इस दिशा में प्रयास करना होगा, वरना भगवान भरोसे चल रही कांग्रेस का अस्तित्व आगामी विधानसभा चुनाव तक पूरी तरह से समाप्त होता दिख रहा है।

• फिर से जताना होगा पुराने नेताओं पर भरोसा

कांग्रेस पार्टी आलाकमान को वर्तमान स्थिति को देखते हुए एक बार पुनः मंथन करने की आवश्यकता है। पार्टी शीर्ष दल को अपने पुराने नेताओं पर एक बार फिर भरोसा दिखने की आवश्यकता है। चाहे बात मध्यप्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह की हो या फिर राजस्थान में अशोक गहलोत की। पार्टी को इन सभी पुराने नेताओं को एक मंच पर लाकर एकजुट करना होगा और आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में और दम तथा भरोसे के साथ मैदान पर उतरना होगा तभी पार्टी राज्यों और केंद्र में सरकार लाने में सफल होगी।

• लोकसभा चुनाव में उम्मीद जगी लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा

जब मार्च में आम चुनाव की घोषणा की गई, तो उम्मीद की किरण जगी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन वापस पा सकती है और उसे अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ सरकार बनाने का एक छोटा सा मौका मिलेगा। यह संभावना 2018 के अंत में हुए राज्य चुनावों में पार्टी की चुनावी सफलताओं के कारण उभरी, जिसमें भाजपा को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस पार्टी ने सरकारें बनाईं। मोदी को चुनौती देने के लिए एकजुट विपक्ष बनाने के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रीय विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने के परिदृश्य के साथ यह संभावना तेज हो गई। लेकिन मतदान का समय नजदीक आने के साथ ही नेतृत्व स्तर पर मतभेदों के कारण विपक्ष बंटा हुआ होने के कारण यह संभावना जल्द ही खत्म हो गई।

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