--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।
27 साल तक सत्ता से बाहर रहने के बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) को बुरी तरह पछाड़ कर शानदार वापसी के बाद भाजपा के अंदर राष्ट्रीय राजधानी के भावी मुख्यमंत्री के चयन को लेकर मंथन तेज हो गई है। 70 सदस्यीय विधान सभा में अपने बूते 48 सीटें हासिल कर भजपा ने अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी के शासन का अंत कर दिया है। आप को केवल 22 सीटें मिलीं। शराब घोटाला, 33 करोड़ रुपये की लागत से सजाया गया मुख्यमंत्री निवास “शीश महल” और भ्रष्टाचार के अलावा सत्ता विरोधी रुझान का सामंना कर रही आप पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके पूर्व डिप्टी मनीष सिसोदिया सहित इसके शीर्ष नेता चुनाव हार गए। मुख्यमंत्री आतिशी ने कालकाजी निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की है।
कांग्रेस ने राजधानी में पिछले दो चुनावों में हार का अपना रिकॉर्ड बरकरार रखा है। 5 फरवरी को एक चरण में हुए चुनाव में 60.54% मतदान हुआ था। आप ने लगभग 44% वोट हासिल किए और भाजपा से सम्मानजनक रूप से पीछे रही, जिसे लगभग 46% वोट मिले। दूसरी ओर, कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन 2020 में उसका वोट शेयर 4.26% से बढ़कर इस बार लगभग 6.40% हो गया। 2025 में दिल्ली जीत के साथ 19 राज्यों में भाजपा या गठबंधन की सरकार हो गई।
दिल्ली के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर जिन कुछ नामों की चर्चा है उनमें पहला नाम परवेश वर्मा का है। वर्मा ने मुश्किलों में घिरे केजरीवाल पर 4,000 से ज़्यादा वोटों से आसान जीत दर्ज की। वर्मा दो बार लोकसभा सांसद रहे हैं। वह दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साबहब सिंह वर्मा के पुत्र हैं। पिछले चार मुख्यमंत्रियों में से तीन ने नई दिल्ली सीट जीती थी। केजरीवाल ने 2013, 2015 और 2020 में इसे जीता था और उनकी पूर्ववर्ती कांग्रेस की शीला दीक्षित ने 2008 के चुनाव में इसे जीता था। लेकिन शॉर्टलिस्ट में वर्मा का नाम ही नहीं है। हालांकि भाजपा के एक शीर्ष नेता ने अनुसार इस पद के लिए श्री वर्मा सहित पाँच उम्मीदवार हैं। पार्टी जाति सहित विभिन्न कारकों को संतुलित करेगी।
• परवेश वर्मा : श्री वर्मा को मुख्यमंत्री बनाने से जाट समुदाय को एक कड़ा संदेश जाएगा, जिससे नई दिल्ली के नए विधायक आते हैं। जाट वोटों ने पिछले साल हरियाणा चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में मदद की, साथ ही राजस्थान को कांग्रेस से छीन लिया और उत्तर प्रदेश पर अपनी पकड़ मजबूत की। परवेश वर्मा ने अपनी जीत की पुष्टि के तुरंत बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की जिन्हें भाजपा की उल्लेखनीय दिल्ली जीत का श्रेय दिया जाता है - यह उनके पक्ष में एक और संकेत है।
• सतीश उपाध्याय : दूसरा विकल्प सतीश उपाध्याय हैं, जिन्होंने आप नेता सोमनाथ भारती को मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र से लगातार चौथी बार जीत दर्ज करने से रोका। श्री उपाध्याय को दिल्ली भाजपा का ब्राह्मण चेहरा माना जाता है। वे पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख थे और उनके लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने नई दिल्ली नगर निगम के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया, जिसका अर्थ है कि उनके पास राष्ट्रीय राजधानी से सीधे संबंधित प्रशासनिक अनुभव है, जो शायद श्री वर्मा के पास नहीं है। श्री उपाध्याय के पक्ष में एक और बात यह है कि वे भाजपा के भीतर कई अन्य वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी करीबी हैं, जो भाजपा का वैचारिक गुरु है।
• आशीष सूद : भाजपा के पंजाबी चेहरे श्री सूद जनकपुरी विधानसभा क्षेत्र से नए विधायक हैं, जो 2015 तक भाजपा का (अभेद्य) गढ़ था, जब आप के राजेश ऋषि ने दो बार जीत दर्ज की थी। श्री सूद के पिछले प्रशासनिक अनुभव में दिल्ली पार्षद और पार्टी की दिल्ली इकाई के महासचिव के रूप में कार्य करना शामिल है। वे गोवा में पार्टी की इकाई के प्रभारी भी हैं (जहाँ 2027 में अगला चुनाव होगा) और जम्मू-कश्मीर के सह-प्रभारी हैं। सूद के पक्ष में अन्य बिंदु भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनके घनिष्ठ संबंध और दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल हैं।
• विजेन्द्र गुप्ता : इस सूची में चौथा और पाँचवाँ नाम विजेन्द्र गुप्ता का है। वह वैश्य समुदाय से आते हैं। जिनमें से विजेन्द्र गुप्ता संभवतः दो विकल्पों में से अधिक पसंदीदा है। श्री गुप्ता दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष थे और उन्हें पार्टी के वैश्य चेहरे के रूप में देखा जाता है। वे अब रोहिणी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक बन चुके हैं और दो बार विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
'मोदी लहर' और महिलाओं, मध्यम वर्ग और पूर्वांचली समुदाय के वोटों से उत्साहित भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के दिल्ली पर एक दशक से चले आ रहे कब्जे को खत्म कर दिया। आप, जिसने 2015 और 2020 के चुनावों में भारी जीत दर्ज की थी, पिछले बार दिल्ली की 70 सीटों में से 67 और 62 सीटें जीती थीं, इस बार उसे करारी हार का सामना करना पड़ा।