--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■क्या धार्मिक नगरों में शराबबंदी का असली मकसद अवैध शराब से कमाई के लिए उठाया गया कदम है?
■उज्जैन में शराब पर लिया जाता है टैक्स, सरकार और उनके साथियों का है उज्जैन में शराब की कमाई पर पूरा कंट्रोल
■नई शराब नीति लाकर प्रदेश को नशे में धकेलने का पाप कर रहे मुख्यमंत्री
■धार्मिक स्थलों में शराब बंदी, शराब की कालाबाजारी जैसे संगठित अपराध की शुरुआत तो नहीं
■साल भर बाद भी प्रदेश की जनता को नहीं मोह पाए हैं मोहन
शराब बंदी आज के भारत में समाज उत्थान के लिए काफी जरूरी है। नशामुक्त समाज आदर्श राष्ट्र की कल्पना का पहला पड़ाव है। किन्तु देश में शराब सत्ताशीर्ष के लिए सबसे आसान अवैध पैसा कमाने का तरीका है। दरअसल मध्य प्रदेश में जो आंशिक शराब बंदी हुई है वो पैसे कमाने का जरिया नजर आ रहा है। इसका एक उदाहरण आज उज्जैन है, जहां पर सत्ता का परम आशीर्वाद लिए एक परिवार शराब से प्रतिदिन 15-20 लाख की कमाई कर रहा है, प्रत्येक बोतल से 40-50 रुपये इस परिवार के पास ज़ाते हैं, वैसे भी शराब से संबंधित व्यापार से इनका पुराना नाता है। ऐसे में प्रदेश में 19 धर्म क्षेत्र सत्ता शीर्ष के लिए प्रतिदिन करोड़ों की आसान कमाई नजर आ रही है। प्रदेश को नशामुक्त बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के 19 धार्मिक स्थलों पर पूर्ण शराब बंदी का फैसला किया है। शराब बंदी का यह फैसला लेकर मोहन यादव ने पूरे देश में खूब वाहवाही लूट तो ली है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि शराब बंदी का यह फैसला सिर्फ 19 स्थानों पर ही क्यों लिया। क्या सिर्फ इन्हीं 19 स्थानों में लोग शराब पीते हैं बाकी जिलों में शराब का उपयोग करने वाले लोगों, उनके परिवारों की चिंता कौन करेगा। उन लोगों के परिवार के लोगों की चिंता के बारे में मुख्यमंत्री यादव ने क्यों नहीं सोचा। मुख्यमंत्री का यह रवैया इस बात की ओर इशारा करता है कि मुख्यमंत्री यादव की शराबबंदी को लेकर कुछ और मंशा है। जबकि गुजरात में देखा जाए तो मोदी सरकार के समय से ही सही योजनाबद्ध ढंग से शराब बंदी का फैसला लेकर इसे बेहतर ढंग से लागू किया गया।
• क्या काल भैरव की परंपरा तोड़ेंगे मुख्यमंत्री?
मध्यप्रदेश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल उज्जैन के काल भैरव मंदिर में भगवान शिव को प्रसाद के रूप में शराब भेंट करने की परंपरा है। ऐसे में क्या मुख्यमंत्री यादव काल भैरव की इस सनातनी परंपरा के साथ छेड़छाड़ कर शराब भेंट करने का दुस्साहस कर पाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार मुख्यमंत्री यादव का शराब बंदी का फैसला महज एक जुमला है जो उन्होंने प्रदेश की जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि मुख्यमंत्री यादव अब इस दिशा में क्या कदम उठाते हैं।
• आबकारी नीति में बदलाव की तैयारी
मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने राजस्व में बढ़ोत्तरी के लिए आबकारी नीति में कई बड़े बदलाव किए हैं। अब सरकार ने कच्ची शराब के शौकीनों के लिए हल्के नशे वाली शराब लांच करने का फैसला किया है। यह शराब आम शराब के मुकाबले सस्ती होगी। वहीं प्रदेश के 38 जिले ऐसे होंगे, जहां पूरे शहर में शराब बिकेगी। इन जिलों में पहले की तरह शराब की बिक्री होगी। वहीं 17 जिलों यानि धार्मिक नगरों में शराब की बिक्री नहीं हो सकेगी। इसके चलते इन नगरों से 47 शराब की दुकानों को 01 अप्रैल से बंद किया जाएगा। इससे सरकार को 450 करोड़ के राजस्व का नुकसान होगा।
• शराब की नई वैरायटी, खोलो और पी जाओ
दूसरे राज्य सरकार उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान की तर्ज पर प्रदेश में अंडर प्रूफ शराब बेचने की तैयारी कर रही है। इसकी खासियत यह होगी कि यह बाजार में मौजूद शराब से सस्ती होगी। हालांकि यह हल्के नशे वाली शराब होगी। यह उन शौकीनों के लिए होगी, जो कच्ची शराब पीने के आदि होते हैं। जबकि यह सेहत के लिए हानिकारक होती है। वहीं राज्य सरकार ने नई वैरायटी के साथ नए बार खोलने का भी फैसला किया है। इसे बिना पानी मिलाए उपयोग किया जा सकेगा। यह रेडी टू ड्रिंक होगा। यह बीयर से अलग होगी। बार में रेडी टू ड्रिंक और बीयर दोनों उपलब्ध होंगी। इस तरह की शराब नीति से और लोग भी शराब की आदि हो जायेंगे। युवावर्ग इस नीति के मोह में आकर शराब पीने लगेंगे।
• बार लाइसेंस फीस में कमी का फैसला
सरकार द्वारा नए खोले जा रहे नए बार में उद्यमियों को राहत देने के लिए सरकार ने बार के लाइसेंस फीस को कम रखने का फैसला किया है। हालांकि यह वह बार होंगे, जहां कम एल्कोहल वाली शराब यानी रेडी टू ड्रिंक और बियर ही उपलब्ध होगी। सरकार को उम्मीद है कि इससे नए बीयर बार में उद्यमियों को कम लाइसेंस फीस के रूप में राहत मिलेगी। वहीं उपभोक्ताओं को भी सस्ती बीयर रेडी टू ड्रिंक मिलेगी। सरकार की कोशिश है कि इससे लोग भी कम नशीले पदार्थ की तरफ आकर्षित होंगे। सवाल यह है मोहन सरकार सच में प्रदेश को नशामुक्त बनाने के लिए कार्य कर रही है या यह सिर्फ एक खानापूर्ति और रईस परिवारों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित करना है। इससे शराब उद्यमी को फायदा पहुंचाकर सरकारी खजाने में घाटा होगा।
• शराब से मौतों में मध्यप्रदेश पहले स्थान पर
वैसे भी शराब से होने वाली मौतों में मध्यप्रदेश पहले स्थान पर है। इसके साथ ही शराब से होने वाली अप्रिय घटनाओं में बढ़ोत्री हो रही है। इसके बाद भी मोहन सरकार शराब को लेकर नई नीति लेकर आते हैं तो निश्चित रूप से प्रदेश में आपराधिक घटनाओं में इजाफा होगा। जिसके लिए मुख्यमंत्री खुद जिम्मेदार होंगे। मध्यप्रदेश में शराब कितनी घातक है इसका सबसे बड़ा प्रमाण है राज्य में पिछले छह सालों में हुई मृत्यु। बावजूद इसके प्रदेश में 07 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और एक लाख से अधिक छेड़छाड़, मारपीट आदि से जुड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। बावजूद इसके अगर यह सब देखने के बाद भी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश में नई शराब नीति लाने की योजना बना रहे हैं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य प्रदेश और प्रदेश की जनता के लिए कुछ नहीं होगा।
• मध्यप्रदेश को नहीं मोह पाए हैं मोहन
मोहन यादव को मुख्यमंत्री बने एक साल से ऊपर हो गया पर इस दौरान प्रदेश गर्त में ही जाता रहा। प्रदेश की खस्ताहाल हालत के जिम्मेदार मोहन यादव अपनी चाल, चरित्र और चेहरे से प्रदेश का मन नहीं मोह पाए हैं। झूठे वादे और घोषणाएँ की पोल इन्वेस्टर्स समिट में वैसे ही खुल गई, जहां 50 दिनों तक उद्योगों को पर्यावरण संबंधी अनुमति नहीं मिल पायी वहीं जिलेवार समिट में वहीं कंपनी और इनवेस्टर्स बार-बार देखे गए। अब जब कमाई के सीमित स्त्रोत बचे हैं तो व्यापारिक सोच रखने वाले सत्ता शीर्ष अब शराब से होने वाली कमाई को साधन बनाने के फ़िराक़ में है। उज्जैन में शराब का खेल तो पिछले 6 महीने से चल रहा है, जिसकी जानकारी चाहे तो प्रधानमंत्री भी ले सकते हैं। आंशिक शराब बंदी से निश्चित तौर पर राजस्व को तगड़ा झटका लगेगा। साथ ही शराब तो जनता के पास पहुंचेगी पर पैसा सरकारी खजाने में ना जाकर एक परिवार के पास जरूर जाएगा।