योगीजी बनाम अखिलेश! गैस संयंत्र और इत्र कारखाना!!



--के. विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

फुलेल निचोड़ना अथवा गोइठा पाथना। इस मुद्दे पर शास्त्रार्थ था यूपी विधानसभा में मंगलवार (31 मई 2022) राज्यपाल के अभिभाषण वाले धन्यवाद प्रस्ताव पर। चर्चा में प्रतिभागी थे संन्यासी-मुख्यमंत्री और गोपालक-वंशज (नेता विपक्ष)। अखिलेश यादव को रोष था। उनके चुनाव क्षेत्र कन्नौज में वे इत्र कारखाना चाहते हैं। मगर योगी आदित्यनाथ ने गोबर गैस संयंत्र बनवा दिया। समाजवादी पुरोधा की मांग थी इत्र का उत्पादन हो। इसका नुस्खा फारस के कारीगरों ने दिया था। इसकी उपभोक्ता रहीं मलिकाये हुस्न नूरजहां मुगलानी। लोहियावादी यादव को 90 लाख प्रति किलो के दामवाले इस महंगे श्रृंगार साधन से खिंचाव रहा। जबकि गोबर गैस संयंत्र से सामान्य जन का हित होता है। बस यही दोनों जननायकों के दृष्टिकोणों की बुनियादी विषमता। इस 48-वर्षीय बीसवें (समाजवादी) मुख्यमंत्री और उनसे मात्र एक वर्ष बड़े इक्कीसवें (भाजपाई) मुख्यमंत्री में। आमजन की आवश्यकता पर इन दोनों की अपनी-अपनी दष्टि थी। मगर इस बहस से गोबर और इत्र पर परस्पर नजरिये का अंदाज तो सबको हो गया। आमजन का आत्मीय कौन हैं? संन्यासी शासक जानते है कि इत्र धनाढ्यों की वासनाप्रियता है, विलासिता भी। उनके द्वारा सुझाया बायोगैस संयंत्र किसानों के देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि प्रधान देश में पशुधन का महत्वपूर्ण स्थान है। पशुओं से ही बड़ी मात्रा गोबर प्राप्त होता है। यदुवंशी को भी इसका एहसास है।

गोबर का उपयोग कर, ईंधन, खाद व रोशनी प्राप्त की जा सकती है। अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि गोबर को कंडे के रूप में उपयोग में लेने से हमें केवल राख मिलती है जो किसी काम की नहीं है। परंतु गोबर को बायोगैस संयंत्र में लेने से ईंधन, रोशनी, यांत्रिक ऊर्जा के साथ–साथ मुफ्त में बायोखाद (देशी खाद) मिलती है। यह खेतों को नया जीवन देगा। हमारे खलिहानों को भरेगा।

यह सब समझकर, जानकर भी अखिलेश यादव भिन्न हैं। आधुनिक हैं! गेरुआ परिधान से दूर, बहुत दूर। यूं भी भगवा तो उत्सर्ग का पर्याय होता है। आस्ट्रेलिया में गोरो से दीक्षित अखिलेश राजा भर्तहरी के भांजे बंग नरेश गोपीचन्द (नाथ संप्रदायी) जैसे तो है नहीं कि राजपाट तजकर जंगल चले जायें। अभी तो उनके समक्ष लोकसभा का उपचुनाव भी है!

फिर भी कृष्णवंशी जनवादी अखिलेश को लोकोपयोगी चौपाया गाय का पक्षधर तो जन्मत: होना ही चाहिये। भारत के संविधान की धारा 48 के तहत यह कर्तव्य है। इंसान की बुद्धि, बल, पोषण एवं स्वास्थ्य का आधार बनी गाय जिसके दूध से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, गोबर से उर्वराशक्ति एवं गोमूत्र से रोगों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है। गोबर का खाद से उपजाया अन्न, बैलों की मदद से जुताई एवं आवागमन के साधन विकसित होते है। गोबर और गोमूत्र न केवल कृषि के विकास का स्रोत है, बल्कि उसी के बल पर अन्य कृषि उत्पादन भी होते हैं। गोविशेषज्ञ माद्रीपुत्र सहदेव पाण्डव की यही खोज है।

कन्नौज में गोबर गैस प्लांट लगने से जनलाभ होगा। जो द्रव गोबर में रहता है वह कीटाणुनाशक होता है। गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। उसमें खनिज की भी मात्रा कम नहीं होती। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं। तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी किंचित मात्रा में रहते हैं। अस्तु, गोबर खाद के रुप में, अधिकांश खनिजों के कारण, मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है। पौधों की मुख्य आवश्यकता नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटासियम की भी होती हैं।

अखिलेश को स्मरण होगा कि धरती के पांच आयामों (जल, जंगल, जमीन, जन तथा जानवर) बहुधा प्रदूषित वातावरण में कमजोर होते जा रहे हैं। उन्हें सुधारने के उपाय हैं : गोबर, जड़ी-सेवनी औषधि और जैविक खेती। गौ विज्ञान अनुसंधान केन्द्र इस क्षेत्र में कई सफल प्रयोग कर चुका है। अत: गोबर गैस प्लांट के साथ यदि गोमूत्र संग्रहण भी हो तो रोगों का उपचार, बेरोजगार युवकों को प्रशिक्षण और आवक, तथा धरती को उर्वरा बनाने में मदद मिलेगी।

इस बारे में अधिक सुगम रीति से समझने हेतु, यहां समाजवादी वोट बैंक वाले अल्पसंख्यकों द्वारा हुयी खोज को भी सबूत के तौर पर उल्लेख हो। मसलन सौंदर्य निष्णात शाहनाज हुसैन तो गाय में रुप निखारने के साधन को देखती हैं। उनकी राय में तो गोबर से निर्मित उत्पाद से प्रसाधन द्वारा चेहरे को लावण्यमय बनाने में सहायता मिली है। वे तो मानती है कि गोबर तथा गोमूत्र का प्राचीन भारत में रुप निखारने में उपयोग होता रहा।

अखिल भारतीय मांस निर्यातक संघ के प्रवक्ता फैजान अलवी ने (14 मार्च 2021 :दैनिक हिन्दुस्तान) में लिखा था कि उन्होंने दीपावली पर उत्तर प्रदेश में देखा कि गाय के गोबर से लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्तियों का निर्माण युवाओं के लिये रोजगार के साधन के रुप में विकसित हुआ है। गोबर के दीपक, अगरबत्ती, धूपबत्ती व मच्छर भगाने की क्वाइल बनायी जा रही हैं। वहीं गाय के गोबर की खाद भी बड़े पैमाने पर घरों में बागवानी के लिये खरीदी जा रही है।

फैजान अलवी ने गोकाष्ठ पर अधिक उपयोगी बात कही : ''जनपद आगरा की जिला जेल में बंद कैदी जेल के अंदर ही गाय के गोबर से बनी लकड़ी यानि गोकाष्ठ बना रहे हैं। इस गोकाष्ठ का उपयोग दाह संस्कार में किया जाता है। जहां एक ओर लकड़ी में 15 फीसदी तक नमी होती है, वहीं गोष्ठ में मात्र डेढ़ से दो फीसदी ही नमी रहती है। लकड़ी जलाने में 5 से 15 किलो देसी घी या फिर रार का उपयोग होता है, जबकि गोकाष्ठ जलाने में एक किलो देसी घी ही पर्याप्त होगा। लकड़ी के धुएं से कार्बन डाईआक्साईड गैस निकलती है जो पर्यावरण के लिये घातक है, नतीजन गोकाष्ठ जलाने से 40 फीसदी के लगभग आक्सीजन निकलती है, जो पर्यावरण के लिए वरदान साबित होगी। एक अंत्येष्टि में लगभग पौने तीन से साढ़े चार क्विंटल लकड़ी लगती है। लकड़ियों की कीमत करीब तीन से साढ़े चार हजार रुपये तक होती है, वहीं गोकाष्ठ की कीमत अधिकतम चार रुपये किलो तक ही होगी।''

कांग्रेस-शासित छत्तीसगढ़ राज्य में गोबर का उपयोग सर्जनात्मक तरीके से हो रहा है। इसे तो सोनिया-कांग्रेस के सहयोगी यूपी समाजवादी पार्टी को स्वीकारना चाहिये। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का पशुपालन विभाग गोबर खरीदता है। इसे महिला स्वयंसेवी संस्थायें कम्पोस्ट में बनाकर मार्केटिंग करेंगी। गोबर गैस प्लांट, उपले, कण्डे, दीपावली के दिये बनाकर वे बेचती हैं। पड़ोसी चीन में आजकल गोबर का नवाचार वाला उपक्रम चालू हैं। इससे डेढ करोड़ परिवार गोबर गैस पैदा कर रहे हैं।

यहां अंत में गतसदी के गुलाम भारत की एक रपट का जिक्र कर दूं अखिल-भारतीय हिन्दुसभा ने मद्रास में आयोजित (10 अप्रैल 1921) सम्मेलन में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा ईसाईयों, पारसी तथा मुसलमानों का आभार ज्ञापन किया था कि गोवध बंदी का समर्थन कर इन लोगों ने न केवल सनातन धर्म वरन भारतवर्ष की सम्यक हिफाजत भी की है, (दैनिक हिन्दू, मद्रास, 22 अप्रैल 1921 के अंक से)। क्या सुन रहे है विधानसभा के सत्ता और प्रतिपक्ष के नेता द्वय?

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