मन को रखे हमेशा स्वस्थ : आचार्य प्रशान्त



ग्रेटर नोएडा-उत्तर प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।

कोरोना संकट के समय अशांति और तनाव से भरे लोगों के मन पर जिन आध्यात्मिक विचारकों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है उनमें से एक हैं आचार्य प्रशांत। लाइफ एजुकेशन सिखाने वाले आचार्य प्रशांत अध्यात्मिक विचारक हैं वह अब तक दर्शन व अध्यात्म पर 60 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। आचार्य प्रशांत वर्तमान कोरोना वायरस के बारे में कहते हैं कि यह संकट हमारी भोग बादिता का नतीजा है। ऐसी अंधी भोग वादिता जो हमसे कहती है कि हम शरीर मात्र हैं और जीवन का उद्देश्य है खाना-पीना, मौज करना, सुुुख मनाना, भोग करना। मूल रूप से तो भोग बाादिता के त्याग से ही इस संकट का मुकाबला किया जा सकता है। हमें इस आपदा से भी कुछ न कुछ सीखना होगा।

■ इस समय पॉजिटिव कैसे रहा जाए?

इस समय घर में अकेले रहने का जो दौर है, उसका सदुपयोग करें, आप क्वारंटाइन भी हो जाएं फिर भी उस समय का सदुपयोग करें। सुंदर साहित्य पढ़ें, अपने डर से मुक्त होने का संकल्प करें। अगर आपका शरीर संक्रमित हो जाए, तो भी मन को संक्रमित न होने दें।

■ निराशा से भरे मन को किस तरह ध्यान अध्यात्म की तरफ मोड़ा जा सकता है ?

मन द्वैत में जीता है आशा और निराशा दोनों ही द्वैत के सिरे हैं। अगर मन निराश है तो उसे अपनी इसी अवस्था का ईमानदारी से अवलोकन करना होगा, उसे स्वयं से यह पूछना होगा कि क्या यह निराशा होती अगर उसने पहले अंधी आशाएं नहीं पाली होती। उसे निराशा से उठ रही पीड़ा से भागने से नहीं बल्कि उसमें गहरा डूबने से शांति मिलेगी।

■ अभी दिन भर में कितनी देर तक मैडिटेशन किया जाए?

मेडिटेशन यानी ध्यान सतत होना चाहिए अगर ध्यान समय या स्थान से सीमित कर दिया गया तो समय खत्म होते ही और स्थान बदलते ही वह टूट भी जाएगा। ध्यान को सांस की तरह होना होगा, लगातार बिना किसी अवरोध के जब मन लगातार, अपने ध्येय पर केंद्रित होता है, उसी अवस्था को ध्यान कहते हैं।

■ वर्तमान समय में पौराणिक कथाओं के माध्यम से किस तरह तनाव का प्रबंधन किया जाय?

तनाव दो तरफा खिंचाव का परिणाम होता है। मन को एक तरफ माया खींचती है, दूसरी ओर सत्य तनाव से मुक्ति का एक ही उपाय है मन को जहां शांति मिले, उसे उसी ओर जाने दिया जाए मन तनावमुक्त केवल सत्य को समर्पित होकर ही हो सकता है। सभी पुराणों एवं पौराणिक कथाओं का आधार है वेदांत। मन को उपनिषदों एवं अन्य ग्रंथों की ओर अग्रसर होना चाहिए, वहीं उसे हर विकार से मुक्ति मिलेगी।

■ धर्म और विज्ञान किस तरह एक दूसरे से संबंधित हैं?

विज्ञान पूरी तरीके से धार्मिक है क्योंकि धर्म है सत्य को जानना और विज्ञान भी सत्य को ही जानना चाहता है। विज्ञान एक छोटी सी चूक कर देता है जिसके कारण उसे अध्यात्म से एक कदम पहले ही रुक जाना पड़ता है। विज्ञान सत्य को बाहरी वस्तु में ढूंढता है। वह सत्य को ढूंढने वाले वैज्ञानिक के मन को, उसकी चेतना को, शोध के दायरे से बाहर रखता है। इस भेद को हटा दें तो धर्म और विज्ञान का आपस में गहरा संबंध है।

■ किस तरह झूठ की दीवार गिरा कर जीवन को आध्यात्म की तरफ मोड़ा जा सकता है?

झूठ को साफ-साफ जान लेना ही आध्यात्म की ओर पहला कदम है जब हम अपने जीवन के झूठों को साफ-साफ देख कर उनमें समय और ऊर्जा का निवेश रोक देते हैं तब जीवन में सत्य का उदय होने लगता है।

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