--विजया पाठक,
(एडिटर - जगत विजन),
मध्य प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, चिंतक, कर्मवीर डॉ• गोपाल नारायण आवटे जी हमारे बीच नही रहे। हमेशा मुस्कराने वाला चेहरा सदा के लिये खामोश हो गया। सोहागपुर जैसे छोटे से कस्बे से राष्ट्रीय परिदृश्य पर छा गये डॉ• साहब आप स्मृतियों में हमेशा रहेंगे। सोहागपुर में दलित संघ के माध्यम से अनेकों सामाजिक प्रकल्पों को मूर्त रूप देने वाले जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता प्रख्यात साहित्यकार एवं चिकित्सक डॉ• गोपाल नारायण आवटे के निधन की सूचना से मैं काफी स्तब्ध हूँ। कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हूँ। जाने वाला कभी वापिस नहीं आता वह एक याद के रूप में सदा हमारे साथ रहता है। डॉ• साहब के सामाजिक कार्य और उनका उत्कृष्ठ लेखन हमें सदैव प्रेरणा देता रहेगा। वे हमारे मित्र, स्नेही और मार्गदर्शक थे। उनका ना होना बहुत बड़ा खालीपन छोड़ गया। मैंने और आवटे जी ने कई आंदोलनों में साथ काम किया है। वह हमेशा मेरी ताकत बनकर साथ रहे। मुझे आज भी उनके साथ बिताए पल याद हैं। वह मुझे दीदी बुलाया करते थे और मैं उन्हें हमेशा गोपाल ही संबोधित करती थी।
गोपालजी ने दलितों/पारधियों के उत्थान और उनके सहयोग के लिए काफी काम किया है। देश प्रदेश स्तर से लेकर विदेशों तक में उन्होंने दलितों/पारधियों के लिए कार्य किया है। जनांदोलनों के जरिए उन्होंने इन समाजों के कल्याण में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वहीं दलित वर्ग के लोग उन्हें मसीहा के रूप में देखा करते थे।
सोहागपुर जाएं और उनसे भेंट ना हो ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं जब भी छत्तीसगढ़ प्रवास से वापिस भोपाल लौटती तो सोहागपुर जरूर रूकती थी। एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि सरकार ने सोहागपुर के आसपास बैगा समाज के 15-20 परिवार वालों को बसाया है। ये लोग पीने के पानी के लिए काफी परेशान रहते हैं। यहां तक पीने के पानी के लिए नाले का पानी भरकर लाते हैं। डॉ• साहब (आवटे जी) ने मुझसे कहां कि यह समस्या गंभीर है। कुछ करना होगा। डॉ• साहब की बात से मैं भी सहमत हुई। हमने बैगा समाज के लोगों को साथ लेकर आंदोलन किया, ताकि सरकार इन लोगों की समस्या को लेकर गंभीरता से सोचे। आखिरकार हमारा प्रयास सफल रहा। कुछ दिनों में इन लोगों के लिए सरकार द्वारा हैण्डपंप लगवाया गया और शासकीय राशन की दुकान खोली गई और बालबाड़ी भी खोली गई। ऐसे ही डॉ• साहब हमारे साथ दिल्ली तक आंदोलनों में गए हैं। अब सोहागपुर जाते ही डॉ• साहब की कमी अखरेगी। उनसे जब-जब मिलना हुआ कुछ ना कुछ नया सीखने को मिला। यही उनकी खूबी थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी शर्त पर एक मिशनरी की भावना से जिया। कुछ नया सोचने की, नया लिखने की और नया करने की चाह ने उन्हें हमेशा सक्रिय बनाये रखा। डॉ• आवटे जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। लेखन की विभिन्न विधाओं और कला के विभिन्न रूपों के माध्यम से उनकी सृजन यात्रा चल ही रही थी कि मौत ने हमेशा-हमेशा के लिए विराम लगा दिया। सन 1995 में भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा डॉ• भीमराव अम्बेडकर राष्ट्रीय सम्मान, सैयद मीर अली सम्मान, म.प्र. राष्ट्र भाषा प्रचार समिति द्वारा महामहिम राज्यपाल शफी अहमद कुरैशी के करकमलों से। इसी तरह गोपालजी को राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय लगभग 15 पुरूस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है। गत माह की "हंस" पत्रिका में उनकी जावरा की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी प्रकाशित हुई थी। दीप पर्व पर यह क्षति असहनीय है। ईश्वर उन्हें परमपद प्रदान करें। ऐसे कर्मवीर पुरूष को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।