--- राज खन्ना, सुलतानपुर, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
डेढ़ साल के अंतराल पर मलिकपुर गांव कमोवेश पहले जैसा है। कपड़े से ढंकी एक प्रतिमा जरूर उसमें जुड़ गई है। लोगों की दिनचर्या पुराने ढर्रे पर आ चली है। पर राम शब्द यादव के मामले में यह मुमकिन नहीं हो सका है। धरती के सबसे बड़े भार पुत्र शोक को समेटे हुए वह उन यादों को अपने रहते अगली पीढ़ियों के लिए संजो देना चाहते हैं। आठ अगस्त 2016 को कुपवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ में राम शब्द यादव का अविवाहित युवा पुत्र महेंद्र यादव शहीद हो गया था। वह बीएसएफ में उपनिरीक्षक था।
शहादत के बाद उसके अंतिम संस्कार में भारी भीड़ उमड़ी थी। सरकार-प्रशासन सबके वादे-घोषणाएं थीं। भीड़ की नम आंखें, तनी मुट्ठियां और जब तक सूरज- चांद रहेगा के जोशीले नारे थे। सरकार-प्रशासन कहां याद रख पाते हैं! देश के लिए कुर्बान हो जाने वाले शहीद महेंद्र के पिता राम शब्द ने बेटे की समाधि के लिए दो गज जमीन मांगी थी।
तत्कालीन डीएम ने वादा किया था। वह वादा आज तक पूरा नहीं हुआ।
तब के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शहीद के परिवार को बीस लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी थी। प्रशासन ने शहीद परिवार को यह चेक थानेदार के जरिए भेजा था। पिता राम शब्द कहते हैं कि जब बेटा ही नहीं रहा तो पैसा क्या होगा? शहीद बेटे की यादों में वह जीते हैं और वही उनकी सबसे कीमती पूंजी है। ख्वाईश उनकी यही बची है कि महेंद्र का बलिदान लोगों को याद रहे। खासकर युवा पीढ़ी उससे प्रेरणा ले। इसी उम्मीद में उन्होंने मुख्यमंत्री से मिली पूरी रकम शहीद महेंद्र की प्रतिमा और स्मारक स्थल के निर्माण में खर्च कर दी।
चार महीने गुजर चुके हैं, शहीद की प्रतिमा स्थापित हुए। पिता और परिवार को शहीद की अंत्येष्टि के वक्त उमड़े आम-ख़ास की संवेदनाओं- जोश की याद थी। लगा था वह गम-जोश बरकरार होगा। तकरीबन डेढ़ साल का वक्त बीतते सब भुलाया जा चुका है। प्रतिमा अनावरण के लिए गृहमंत्री, बीएसएफ के महानिदेशक सहित अन्य नामचीन हस्तियों से गुजारिश के जबाब में राम शब्द को निराशा हासिल हुई। स्थानीय सांसद वरुण गांधी ने प्रतिमा अनावरण का वादा किया है। पर कब ? फोन पर तारीख जानने की कोशिश में राम शब्द यादव को जवाब वरुण के सचिव की बार-बार फोन न करने की नसीहत मिलती है। महेंद्र के छोटे भाई की नौकरी और विभागीय मदद के वादे भी जहां के तहां हैं। उपेक्षा-उदासीनता से शहीद परिवार बेहद आहत है। बला की ठंड बीच पिता की उदास आंखों से आंसू ढलकते हैं। बिन कहे सवाल करती आंखे? देश के लिए कुर्बान होने वाले ऐसे ही याद किए जाते हैं?