जॉच एजेंसियों को स्‍पष्‍ट निर्देश न होने से जॉच एजेंसियां पसोपेश में



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
रायपुर - छत्तीसगढ़, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● कांग्रेस का जयचंद भूपेश बघेल!

● कांग्रेस के लिये नासूर बने भूपेश बघेल

● कई गंभीर अपराधों और घोटालों में संलिप्‍पता आने के बावजूद गिरफ्तारी नही

छत्‍तीसगढ़ के कई बड़े घोटाले में पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ नामदर्ज एफआईआर के बावजूद गिरफ्तार न होने से जनता हैरान है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने पहले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान अपने भाषणों में साफ किया था कि राज्‍य में बीजेपी और केन्‍द्र में एनडीए के नेतृत्‍व वाली सरकार के सत्‍ता में आने के बाद छत्‍तीसगढ़ के घोटालेबाज नेताओं की खैर नही। चुन-चुनकर हिसाब लिया जायेगा। जो लूटा है वह लौटाना होगा। प्रधानमंत्री मोदी के ऐसे जोशीले भाषण के बाद भ्रष्‍टाचार की मार झेल रही एक बड़ी आबादी बघेल के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस सरकार को सत्‍ता से उखाड़ फेंका था। लेकिन केन्‍द्र और राज्‍य में बीजेपी के सत्‍ता में आने के बावजूद बघेल के गिरफ्तारी को लेकर संसय बना हुआ है। सीबीआई, ईडी, आईटी और ईओडब्‍ल्‍यू बघेल के खिलाफ कई बड़े घोटालों के लेकर जांच में जुटी है। जांच का सिलसिला करीब तीन सालों से बदस्‍तूर जारी है। दिलचस्‍प बात यह है कि घोटालों में सबसे पहले बघेल के गिरोह में शामिल कई बड़े अफसरों और कारोबारियों का नाम सामने आया था। इनके ठिकानों पर छापेमारी के बाद कुछ चुनिंदा आरोपियों के चेहरे देखकर गिरफ्तारियां भी हुई थी और आरोपी जेल की हवा खा रहे हैं। इन्‍हीं आरोपियों की तर्ज पर केन्‍द्रीय जांच एजेसियों ने भूपेश बघेल के पुत्र चेतन्‍य बघेल फिर इसके बाद भूपेश बघेल के ठिकानों पर छापेमारी की थी। एजेंसियों ने प्रेस नोट जारी कर बघेल के कुकर्मों का ब्‍यौरा भी सार्वजनिक किया था। पूर्व मुख्‍यमंत्री के खिलाफ 2100 करोड़ के शराब घोटाले, 1500 करोड़ के महादेव एप घोटाले में नामदर्ज एफआईआर दर्ज हुई थी। घोटालों में भी बघेल की संलिप्‍पता के स्‍पष्‍ट प्रमाण एजेंसियों के हाथों में बताये जाते हैं। बावजूद इसके कानून के हाथ प्रदेश के दागी मुख्‍यमंत्री के गिरेबान तक नही पहुंच पाये हैं। कई बड़े आरोपी हवालात की सैर कर रहे हैं। यहां तक कि बघेल के लिये कमाऊ पुत्र साबित हुये तत्‍कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी जेल की चक्‍की पीसनी पड़ रही है। लेकिन भूपेश बघेल की गिरफ्तारी को लेकर एजेंसियों को सांप सूंघ गया है। ईडी और सीबीआई के सूत्र तस्‍दीक कर रहे हैं कि बघेल की गिरफ्तारी को लेकर कोई स्‍पष्‍ट निर्देश केन्‍द्र और राज्‍य सरकार को प्राप्‍त नही हुये हैं। उनकी यह भी दलील है कि पूर्व मुख्‍यमंत्री ने अपराधों का राजनीतिकरण कर कानूनी दांवपेचों से एजेंसियों की विवेचना को विवादित बता दिया है। सुप्रीम कोर्ट में छत्‍तीसगढ़ के कई बड़े आरोपियों की याचिकाएं कानूनी पटल पर सुर्खियां बटोर रही हैं। बघेल एण्‍ड कम्‍पनियों और उनकी गुर्गों को उनकी पूर्ण विवेचना और कानूनी प्रावधानों की कमजोर कार्यवाही के कारण अदालत कभी ईडी पर सवालियां निशान लगाते हुए ईपीआईआर खारिज कर रही है और जमानत भी दे रही है।

आमजनता के बीच सवाल उठ रहा है इतनी सक्षम जांच ए‍जेंसियां आखिर नियम कायदों का पालन न करते हुए जांच को अदालत के पटल पर क्‍यों रख रही हैं। अदालती कार्यवाही और कानूनी पहलूओं को लेकर कुख्‍यात घोटालेबाजों को मिली राहत अब गली कूचों तक चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक गलियों में आवाज निकलने लगी है कि बघेल को गिरफ्तारी से बचाने और अपराधों से बचाने के लिये नौकरशाही का एक धड़ा सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहा है। यह सब कुछ प्रभावशील आरोपियों को कानून की गिरफ्त से बचाने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। सूत्र यह भी तस्दीक करते हैं कि आबकारी घोटाला या महादेव ऐप घोटाला में लिप्त आरोपियों के बयान सावधानीपूर्वक दर्ज किये जा रहे हैं। इसमें आरोपी सच उगलने और बघेल का नाम तक लेने परहेज कर रहे हैं। घोटालों में लिप्त आरोपियों को बघेल का नाम न लेने की हिदायत देने जाने का मामला भी जांच एजेंसियों के गलियारों में सुर्खियां बटोर रहा है। फिलहाल बघेल की गिरफ्तारी होती या नही इसे लेकर केन्द्र और राज्य सरकार की मंशा भी प्रजातंत्र के तकाजे पर तोली जाने लगी है।

कांग्रेस के कई नेता यहां भी आशंका जाहिर कर रहे हैं कि बघेल बीजेपी के हाथों की कठपुतली बन गये हैं। पहले अपने पुत्र चैतन्‍य को बचाने के लिये अब फिर खुद के बचाव में पार्टी की आंखों में धूल झोंकना भी शुरू कर दिया है। कांग्रेसी नेताओं की आंशका यूं ही नही बनाई जा रही है। वो दावा करने में भी नही चूक रहे हैं कि किसी गोपनीय करार के तहत बघेल ने उत्‍तर प्रदेश चुनावी प्रभारी रहते हुये करीब 32 ऐसे उम्‍मीदवारों को कांग्रेस की टिकट दिलवाई थी, जो बीजेपी उम्‍मीदवारों के सामने बिलकुल टिक नही पाये। नतीजतन उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई थी। कांग्रेस गलियारों में मेरठ विधानसभा की सीट पर अर्चना गौतम की उम्‍मीदवारी का प्रकरण आज भी यूपी के आम कार्यकर्ता नही भूल पाये हैं। बताया जाता है कि मैं लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ, फेम बनाकर कांग्रेस नेता के रूप में अर्चना गौतम की तापपोशी की थी। हालांकि परिणाम पार्टी के सामने रहे। अर्चना गौतम की जमानत जप्‍त हुई और कांग्रेस चौथे नंबा से भी पीछे खिसक कई। इसके उपरांत बघेल की निगरानी में असम, हरियाणा और महाराष्‍ट्र चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। बघेल ने इन राज्‍यों में जिन इलाकों में प्रचार किया था और जिन कांग्रेसियों को टिकट दिलवाई उनका सूपड़ा साफ हो गया।

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