भारत की चरणवंदना क्यों कर रही यूरोपीय यूनियन ?



--आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

यूरोपीय यूनियन के अध्यक्ष उर्सूला वाॅन डेर लेयेन का भारत दौरा काफी चर्चित रहा है। भारत के साथ ही साथ यूरोप में काफी चर्चित रहा और अमेरिका में भी चर्चित रहा। भारतीय मीडिया ने थोड़ा कम महत्व दिया पर यूरोपीय यूनियन मीडिया और अमेरिकी मीडिया में अपने-अपने तरीके से विश्लेषण करने और अवधारणा बनाने की पूरी कोशिश की थी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि यूरोपीय यूनियन मीडिया और अमेरिकी मीडिया के बीच उर्सूला के भारत दौरे को लेकर जंग छिडी थी और एक-दूसरे के हितों के खिलाफ कुठराघात वाली टिप्पणियां भी हो रही थी। उर्सूला की भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठकें भी हुई और वार्ताएं भी हुई। उर्सूला का बयान भी काफी महत्वपूर्ण था। उर्सूला कहती है कि भारत हमारे लिए अति महत्वपूर्ण देश है और हम भारत के विकास और उन्नति को लेकर आश्चर्यचकित है, भारत के पास नरेन्द्र मोदी जैसा कुशल और भविष्य दृष्टि वाला नेता है जो अपने नेतृत्व से दुनिया को चकित भी करते हैं। भारत के पास बाजार की प्रचुरता है, समृद्धि भी है जो पूरी दुनिया के लिए अवसर के सामान है, भारत के बाजार में पूरी दुनिया को मंदी और अस्थिरता के भंवर से निकालने की शक्ति है।

यूरोपीय यूनियन न केवल भारत के साथ व्यापार और साझीदारी को एक नया आयाम देने के लिए तैयार है बल्कि भारतीय के हुनर का यूरोपीय यूनियन अवसर भी देने के लिए तैयार है। इसके साथ ही साथ वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भी यूरोपीय यूनियन भारत के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। वैश्विक कूटनीति में कई ऐसी बाधाएं, अवरोधक हैं और विसंगतियां हैं जो हिंसक है, तानाशाही हैं और सामान अवसर के खिलाफ है। भारत की सहायता से हम ऐसी विसंगतियों और अवरोधकों पर विजयी प्राप्त कर सकते है। यानी कि यूरोपीय यूनियन को न वेवल आर्थिक क्षेत्र में बल्कि कूटनीति क्षेत्र और सामरिक क्षेत्र में भी भारत की सहायता और समर्थन चाहिए।

उर्सूला के सामने डर और दंड की चुनौतियां हैं। यह सही है कि जिन बातों को लेकर उर्सूला चिंतित है और संकट में खड़ा है उन बातों के प्रति खुलकर बोल नहीं सकी, पर अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होने उल्लेख तो जरूर कर दिया है। डर और दंड किस बात का। डोनाल्ड ट्रम्प का डर और दंड। डोनाल्ड ट्रम्प डर और दंड जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प कहते हैं कि हम अपने विरोधियों को दंड भी देंगे और डर भी दिखायेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प ने डर भी दिखाया है और दंड भी दिखाया है। यूरोपीय यूनियन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया डोनाल्ड ट्रम्प की इस थ्योरी और चाबूक से हलकान है, परेशान है और भयभीत है। टैरिफ वार से यूरोपीय यूनियन भी हलकान है। डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन, कनाडा, मैक्सिकों पर भारी टैरिफ वार किया है और यूरोपीय यूनियन को भी धमकी दी है कि वे अमेरिकी हितों को सुरक्षित रखें और समृद्ध करें अन्यथा टैरिफ दंड भोगने के लिए तैयार रहें। यूरोपीय यूनियन को भी अमेरिका अपने हितों के आधार पर मदद देने या फिर समृद्ध करने के लिए तैयार नहीं है। डॉलर के सामने यूरों को रूग्न रखने की अमेरिकी चाल भी बहुत तेज है। यूरों का संकट भी बढने की आशंका है। सबसे बडी बात यह है कि नाटो को लेकर अमेरिका अब पैंतरेबाजी पर पैंतरेबाजी दिखा रहा है, नाटो का प्रभुत्व यूरोपीय देशों पर है। यूरोपीय देशों का रक्षाकवच नाटो है। नाटो के साथ अमरिका का सहयोग और समर्थन भी प्रमुख रहा है। नाटो के देश यूक्रेन को सदस्यता देने के पक्षधर रहे हैं। इसी आधार पर यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया और यूक्रेन को अपना प्रदेश बनाने के लिए रूस ने यूक्रेन के साथ भयानक युद्ध और हिंसा की विभत्स कहानी लिख डाली। नाटो रूस के खिलाफ यूक्रेन की मददगार है। जो बाइडेन के समय में अमेरिका भी यूक्रेन की एकता और अखंडता को अक्षुण रखने के लिए अडिग था। पर अब डोनाल्ड ट्रम्प ने ब्लादमीर पुतिन के साथ दोस्ती बढा डाली। यूक्रेन से कीमत वसूलने की चौधराहट भी दिखानी शुरू कर दी। यही कारण है डोनाल्ड ट्रम्प और जलेस्की के बीच वार्ता वाकयुद्ध में तब्दील हो गया, जलेस्की सीधे तौर ट्रम्प के साथ उलझ गये और झुकने से भी इनकार कर दिया। यूक्रेन में रूस को किसी तरह का लाभ मिला तो फिर यह नाटो और यूरोपीय यूनियन के लिए अच्छा या पक्षधर नहीं हो सकता है। क्योंकि यूरोपीय यूनियन अपने अस्तित्व के लिए ब्लादमीर पुतिन और रूस की अराजक और हिंसक शक्ति को खतरनाक और अमानवीय मानता है।

दोपक्षीय साझेदारी के मुद्दे क्या-क्या है जिन पर यूरोपीय यूनियन और भारत का आगे बढ़ना है। द्विपक्षीय फी ट्रेड एंग्रीमेंट पर अभी समझौता नहीं हुआ है। कई दौर की बातचीत के बावजूद यह मुद्दा अभी भी लंबित है। लेकिन इस पर सहमति बढ रही है और एक-दूसरे के हितों के प्रति भी गंभीर मंथन भी हुआ है। उर्सूला का कहना है कि कुछ रूकावटें हैं जिस पर हम काम कर रहे हैं और उन रूकावटों को दूर कर लिया जायेगा। इस वर्ष के अंत तक यह उम्मीद की जा रही है कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हो जायेगा। अगर भारत और यूरोपीय यूनियन के बीच फी ट्रेड एग्रीमेंट हुआ तो फिर यह बहुत बड़ी सफलता होगी और यूरोपीय यूनियन-भारत के बीच व्यापार का नय इतिहास बनेगा। इसी प्रश्न को लेकर अमेरिका, चीन और रूस की नजरे लगी हुई हैं, ये तीनों शक्तियां यह नहीं चाहती हैं कि यूरोपीय यूनियन और भारत के बीच फ्री ट्रेड एग्रीेमेंट संबंध बने। फ्री ट्रेड एगीमेंट से खासकर भारत को कुछ ज्यादा ही लाभ होगा। अमेरिका और रूस तो कम प्रभावित होंगे बल्कि चीन की परेशानी बढ़ेगी और चीन की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित होगी। चीन अभी भी यूरोपीय यूनियन के बाजार का सर्वाधिक लाभ उठा रहा है और यूरोपीय यूनियन के निवेशक भी चीन के सस्ते श्रम शक्ति और संरक्षण मुक्त चीनी तानाशाही के कारण लाभार्थी होते हैं। पर भारत भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। भारत भी अपने संसाधनों और दक्ष श्रम शक्ति के बल पर विदेशी निवेशकों के लिए पंसदीदा जगह है। चीन में निवेशक कपंनियां हाल के दिनों में अपना बोरिया-विस्तर समेट कर बाहर निकल रही हैं। निवेशकों के लिए चीन अब नीरस और कम उपयोगी, लाभकरी देश बन गया है।

रक्षा के क्षेत्र में भी दोनो पक्ष साझेदारी करने के इच्छुक है। भारतीय नेवी और ईयू मैरीटाइम सेक्योंरिटी एंटीटीज के बीच साझा अभ्यास हो चुके हैं। भारत ईयू के साथ स्थायी तौर पर स्ट्रक्चर्ड कोऑपरेशन प्रोजेक्ट से जुड़ना चाहता है। हिंसा और आतंकवाद पर भी दोनों पक्ष गंभीर है। मुस्लिम आतंकवाद को लेकर अब यूरोपीय यूनियन के देशों में भी चुनौतियां बढ़ी हैं और शांति पर संकट खडा हुआ है। यूरोपीय देशों में मुस्लिम कट्टरपंथियों की हिंसा भी बढ़ी है। यूरोपीय यूनियन के कई देश मुस्लिम शरणार्थियों की समस्याओं से जूझ रहे हैं और इन्हें शरणार्थी नहीं बल्कि मुस्लिम हिंसक गिरोह के तौर पर देखते हैं। यूरोपीय यूनियन अब मुस्लिम आतंकवाद को संरक्षण देने वालों के खिलाफ कठोर नीति रखती है। भारत भी मुस्लिम आतंकवाद से पीड़ित है। इसलिए इस प्रश्न पर दोनों पक्ष एक-दूसरे के लिए लाभकारी बन सकते हैं।

यूरोपीय यूनियन को अपने व्यापारिक घाटे से बाहर निकलने के लिए भारत का साथ चाहिए। डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों और टैरिफ वार से बाहर निकलने के लिए यूरोपीय यूनियन को भारत का साथ चाहिए। चीन और रूस की अराजक और हिंसक आर्थिक नीतियों से भी लड़ने के लिए यूरोपीय यूनियन को भारत का साथ चाहिए। नये भारत में दुनिया का नेतृत्व करने की शक्ति निहित है। इसी कारण यूरोपीय यूनियन भारत की चरणवंदना कर रही है।

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