नई दिल्ली
इंडिया इनसाइड न्यूज।
■एडीबी ने नवीनतम रिपोर्ट में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 85 प्रतिशत कटौती पर जोर दिया
•परिचय
दुनिया जीवाश्म ईंधन की गिरफ्त में जकड़ी है। ऐसे में भारत ने एक अलग रास्ते की ओर कदम बढ़ाए हैं। भारत ने वर्ष 2070 के लिए एक साहसिक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस प्रकार यह राष्ट्र ऊर्जा के प्रति अपने दृष्टिकोण की फिर से परिकल्पना कर रहा है। एशियाई विकास बैंक ने अपनी हालिया एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर अपनी अव्यवहार्य निर्भरता से स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारत ने "हटाएं, लक्ष्य बनाएं और बदलाव करें" रणनीति द्वारा निर्देशित लगातार अपने जीवाश्म ईंधन के प्रति समर्थन को कम किया। इससे सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और एक मजबूत ऊर्जा ग्रिड में नए निवेश के द्वार खुल गए। ईंधन सब्सिडी में सुधार करने का भारत का संकल्प परिवर्तनकारी साबित हुआ है। इसके परिणामस्वरूप 2014 और 2018 के बीच सब्सिडी में उल्लेखनीय कमी हुई है।
यह बदलाव कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। इसे सावधानीपूर्वक उठाए गए कदमों के माध्यम से हासिल किया गया। इसके तहत 2010 से 2014 तक पेट्रोल और डीजल सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करना और उसके बाद 2017 तक इन ईंधनों पर करों में मामूली बढ़ोतरी शामिल है। ये साहसिक कदम अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए राजकोषीय राहत प्रदान करने के लिए उठाए गए थे। इन उपायों से सरकार को अभूतपूर्व पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा पहलों में धन लगाने की सुविधा मिली। सौर पार्कों, वितरित ऊर्जा समाधानों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के लिए सब्सिडी में अब लगातार वृद्धि के साथ, भारत का आगे का रास्ता स्वच्छ ऊर्जा के प्रति इसके उद्देश्य और प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो अधिक लचीले ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ने की चाह रखने वाले अन्य लोगों के लिए एक मजबूत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
•एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट
एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की एक ज्ञान आधारित नई पहल है। इसका उद्देश्य लक्षित नीति सुधारों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने में एशिया और प्रशांत क्षेत्रों की सहायता करना है। प्रारंभिक अंक क्षेत्र के विकसित होते जलवायु परिदृश्य का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करता है। इसमें जलवायु संकट के महत्वपूर्ण आयामों को लेकर समाधान प्रस्तुत किया गया है। इसमें गर्मी के मौसम में लू चलने के बढ़ते मामलों से जुड़ी गंभीरता और बढ़ती आर्थिक और सामाजिक लागत शामिल हैं। रिपोर्ट अनुकूलन उपायों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। इसके अलावा क्षेत्र की सबसे कमजोर आबादी का समर्थन करने के लिए संसाधनों को जुटाने के महत्व पर जोर देते हुए यह सुनिश्चित करती है कि वे जलवायु परिवर्तन द्वारा लाई गई चुनौतियों का सामना करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हों। यह रिपोर्ट हाथ में मौजूद दबाव वाले मुद्दों को समझने और क्षेत्र में जलवायु के अनुकूल प्रभावी कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में कार्य करती है।
•रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
रिपोर्ट में तेल और गैस क्षेत्र में राजकोषीय सब्सिडी को 85 प्रतिशत तक कम करने में भारत के "हटाएं, लक्ष्य बनाएं और बदलें" दृष्टिकोण की प्रभावशीलता पर जोर दिया गया है। निष्कर्षों से यह भी पता चलता है कि कोयला उत्पादन पर उपकर सहित कर से जुड़े रणनीतिक उपायों ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार की प्रक्रिया को कैसे वित्तपोषित किया है। कुल मिलाकर, ये अंतर्दृष्टि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान करते हुए अधिक टिकाऊ ऊर्जा भविष्य की ओर संक्रमण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
•भारत का जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार
2010 से, भारत ने "हटाएं, लक्ष्य बनाएं और बदलें" दृष्टिकोण को अपनाते हुए अपनी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में लगातार सुधार किया है। इस संरचित दृष्टिकोण में खुदरा कीमतों, कर की दरों और चुनिंदा पेट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी को सावधानीपूर्वक समायोजित करना शामिल था। इसने सामूहिक रूप से तेल और गैस क्षेत्र में राजकोषीय सब्सिडी को 85 प्रतिशत तक कम कर दिया, जो 2013 में 25 बिलियन डॉलर के शिखर से 2023 तक 3.5 बिलियन डॉलर हो गया।
इस यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम पेट्रोल और डीजल सब्सिडी को धीरे-धीरे समाप्त करना था, साथ ही करों में वृद्धि भी की गई। इन सुधारों ने अक्षय ऊर्जा पहलों, इलेक्ट्रिक वाहनों और महत्वपूर्ण बिजली इन्फ्रास्ट्रक्चर में अधिक सरकारी समर्थन के लिए राजकोषीय स्थान बनाया। 2014 से 2017 तक, पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर कर राजस्व को और बढ़ाया गया। इसे वैश्विक तेल की कम कीमतों की अवधि के दौरान रणनीतिक रूप से लागू किया गया। फिर अतिरिक्त राजस्व को लक्षित सब्सिडी की ओर पुनर्निर्देशित किया गया। इसने ग्रामीण समुदायों के लिए तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) तक पहुंच का विस्तार किया, जिससे पर्यावरणीय लक्ष्यों और सामाजिक कल्याण दोनों का समाधान किया गया।
भारत के जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार एक निर्णायक बदलाव को चिह्नित करते हैं, जो संसाधनों को व्यवहार्य ऊर्जा की ओर ले जाते हैं और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की नींव रखते हैं।
•स्वच्छ ऊर्जा का समर्थन करने में कराधान की भूमिका
2010 से 2017 तक, भारत सरकार ने कोयला उत्पादन और आयात पर उपकर लागू किया, जो स्वच्छ ऊर्जा पहलों के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण था। इस उपकर से प्राप्त होने वाली राशि का लगभग 30 प्रतिशत राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण कोष को आवंटित किया गया, जो विभिन्न स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं और अनुसंधान का समर्थन करता है। इस कर ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के बजट को महत्वपूर्ण रूप से मजबूत किया, जिससे ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर योजना और राष्ट्रीय सौर मिशन जैसी पहलों के लिए आवश्यक धन उपलब्ध हुआ। ये कार्यक्रम उपयोगिता-स्तरीय सौर ऊर्जा की लागत को कम करने और कई ऑफ-ग्रिड नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को वित्तपोषित करने में सहायक थे।
हालांकि, 2017 के बाद भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के साथ ही परिदृश्य बदल गया। कोयला उत्पादन और आयात पर उपकर को जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर में शामिल कर दिया गया, जिससे इन निधियों के प्रवाह को राज्यों को नई कर व्यवस्था से जुड़े राजस्व घाटे की भरपाई करने के लिए पुनर्निर्देशित किया गया। यह बदलाव भारत के कराधान ढांचे में चल रही चुनौतियों और समायोजनों को उजागर करता है, क्योंकि यह अपने राजकोषीय परिदृश्य की जटिलताओं को नेविगेट करते हुए स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करने का प्रयास करता है।
•प्रमुख सरकारी योजनाएं और कार्यक्रम
भारत राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, पीएम-कुसुम योजना और पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना जैसी पहलों के साथ एक स्थायी ऊर्जा भविष्य की ओर बढ़ रहा है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना, ऊर्जा पहुंच को बढ़ाना और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए किसानों को सशक्त बनाना है। साथ में, वे एक स्वच्छ ऊर्जा परिदृश्य के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
•निष्कर्ष
निष्कर्ष के तौर पर, एशियाई विकास बैंक द्वारा एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट में प्रस्तुत अंतर्दृष्टि से एक स्थायी ऊर्जा भविष्य की ओर बदलाव के लिए भारत की प्रतिबद्धता को बल मिलता है। रिपोर्ट जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा निवेश को सुविधाजनक बनाने में भारत के “हटाओ, लक्ष्य बनाओ और बदलाव करो” दृष्टिकोण की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालती है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, पीएम-कुसुम और उत्पादन से प्रेरित विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं जैसी प्रमुख पहलों के माध्यम से, भारत न केवल 2070 तक अपने महत्वाकांक्षी नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास कर रहा है, बल्कि एक सशक्त और समावेशी ऊर्जा परिदृश्य को भी बढ़ावा दे रहा है। स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने वाले जीवाश्म ईंधन सब्सिडी और अभिनव कराधान उपायों में महत्वपूर्ण कटौती देश की सक्रिय रणनीति का उदाहरण है। अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के ये निरंतर प्रयास जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और रोजगार के अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण हैं। जैसे-जैसे भारत इस परिवर्तनकारी यात्रा पर आगे बढ़ रहा है, यह अन्य देशों के लिए एक शक्तिशाली उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत यह दर्शाता है कि स्थायित्व के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता पर्यावरणीय और आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ा सकती है। एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट में इन्हीं बिंदुओं पर जोर दिया गया है।