--आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।
मुल्लों को शासन चलाने और पुर्ननिर्माण के लिए पैसा कौन देगा? मुस्लिम आबादी और मुस्लिम देश हथियार खरीदने और आतंकी हिंसा के लिए पैसा तो देते हैं पर शांति काल में शासन चलाने और पुर्ननिर्माण के लिए पैसा नहीं देते हैं। आप उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान को देख सकते हैं, लेबनान को देख सकते हैं। अब आप सीरिया को भी देख सकते हैं। मुल्ले आतंक के विशेषज्ञ हो सकते हैं, हिंसा फैलाने के विशेषज्ञ हो सकते हैं, महिलाओं के अधिकारों के दमन के विशेषज्ञ हो सकते हैं, गैर मुस्लिमों के कत्लेआम के विशेषज्ञ हो सकते हैं पर शांति काल में विकास और उन्नति को गतिशील करने के लिए विशेषज्ञता उनके पास हो नहीं सकती हैं, क्योंकि वे विनाश और संहार के सहचर होते हैं। सीरिया के नये शासक और मुल्ला अहमद अल-शरा की बचैनी और चिंता देख लीजिये।
सीरिया का नया नेता मुल्ला अहमद अल-शरा ने एक महत्वपूर्ण बात कही है। उनकी बात यह है कि हम सीरिया को आधुनिक और भव्य जरूर बनाना चाहते हैं लेकिन सीरिया को आधुनिक और भव्य बनाने के लिए पैसा हमें कौन देगा? हमारा खजाना खाली है, हमारे चारो तरफ तबाही ही तबाही है, चारों तरफ विनाश ही विनाश है, कहीं से भी कोई राहत भरी तस्वीर नहीं दिखायी देती है। सिर्फ इतना ही सतोष है कि हमने उस बशर अल असद को भगा दिया जिसने सीरिया वालों के सपनो को कब्र बनाया, सीरिया वालों के भविष्य की उम्मीदों पर पानी फेरा और यहां के लोगों को लूटकर अपने पैसे पश्चिमी देशों में जमा किये, रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूत किये। मुल्ला अहमत अल-शरा की तारीफ इस बात की होनी चाहिए कि उन्होंने सच बोलने का साहस किया और परिस्थितियों को समझने की जरूर कोशिश की है। सच को स्वीकार किये बिना, परिस्थितियों का आकलन किये बिना कोई भी सफल शासक नहीं बन सकता है और न ही किसी विध्वंस, संहार को प्राप्त, खंडहर में तब्दील देश का पुर्ननिर्माण किया जा सकता है।
सीरिया की अभी जरूरत क्या है? सीरिया की अभी जरूरत हिंसा और तबाही की कार्रवाइयों से बाहर निकलने की है, शिया-सुन्नी विवाद और हिंसा से बचने की है, इस्राइल के कोपभाजन बनने से बचने की है, विदेशी समर्थन जुटाने की है, विदेशी प्रतिबंधों की मार को समाप्त कराने की है, संयुक्त राष्ट्रसंघ की मान्यता दिलाने की है। ऐसी चुनौतियों की मांद बहुत ही गहरी है। ऐसी खतरनाक चुनौतियों से लड़ने के लिए साहस की भी जरूरत होती है और चातुर्य की भी जरूरत होती है, एक कदम पीछे हटकर भी लक्ष्य साधना होता है। भूख से तड़पती हई जनता को देखकर शासक को नींद कैसे आयेगी? इसी मर्म की समझ किसी शासक को महान बनाता है। पर इस्लाम के नाम पर पहले आतंक फैलाने वाले और बाद में सत्ता पर कब्जा जमाने वाले आतंकवादी सरगनाएं इस मर्म को समझते ही कहां हैं?
सीरिया के पुर्ननिर्माण के लिए पैसा कौन देगा? मुस्लिम देश तो सीरिया को पैसा देंगे नहीं? मुस्लिम देश की जनता हथियार खरीदने और आतंक फैलाने के लिए पैसा तो जकात के रूप में जरूर देती है पर पुनर्निर्माण के लिए मुस्लिम आबादी पैसा देती नहीं है। यही कारण अफगानिस्तान में तालिबान अपनी सत्ता को प्रेरक नहीं बना पाया, अपनी जनता की भलाई के लिए कोई अच्छा शासन नहीं दे सका, पाकिस्तान जैसा इस्लामिक देश आतंकवाद के रास्ते पर चलकर कंगाल हो गया, दुनिया पाकिस्तान को भीख देने के लिए तैयार नहीं हैं, कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है और उधार भी देने के लिए तैयार नहीं है। फिर सीरिया को कौन उधार देगा, कौन कर्ज देगा और कौन भीख देगा? धन चाहे भीख के रूप में, चाहे कर्ज के रूप में और चाहे उधार के रूप में उस देश को मिलता है जो शांति के रास्ते पर चल रहा हो, जो विफल देश के सिद्धांत से परे हो, जो हिंसा और आतंक से मुक्त हो। अभी सीरिया में शांति की उम्मीद बहुत ज्यादा नहीं है, अभी सीरिया में सर्वानुमति वाली सरकार के गठन और सक्रियता की उम्मीद नहीं है। सिर्फ यही कहा जा सकता है कि सीरिया में बशर अल असद की तानाशाही का पतन हो गया है और वहां पर हिंसक अहमद अल-शरा की सत्ता कायम हो गयी है। अहमद अल शरा की सरकार की मान्यता किसने दी है? सीरिया की जनता ने मान्यता दी है या फिर संयुक्त राष्टसंघ ने मान्यता दी है? मान्यता न तो सीरिया की जनता ने दी है और न ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने मान्यता दी है। अभी तक अमेरिका ने भी मान्यता नहीं दी है।
मानवाधिकार के लिए मुस्लिम देशों में कोई जगह नहीं होती है। मानवाधिकार के नाम पर ये पैसा भी खर्च नहीं करते हैं। मानवाधिकार के नाम पर पश्चिम देश ही गंभीर रहते हैं और समर्थक होते हैं। मानवाधिकार पर पश्चिम देश ही पैसा खर्च कर सकते हैं। सीरिया में जब भूखमरी होगी, जनता तड़प-तड़प कर भूख से मेरेगी तब इसकी रिपोर्ट पढ़कर पश्चिम देशों की मानवता जागेगी। पश्चिम देश ही सीरिया को मानवाधिकार के नाम पर सहायता कर सकते हैं। पर पश्चिम देश भी अमेरिका द्वारा लगाये गये कई प्रतिबंधों के घेरे में हैं। अमेरिका का निजाम बदल गया। अमेरिका में नया निजाम की ताजपोशी हो गयी। डोनाल्ड ट्रम्प बहुत ही कठिन और भड़कीले निजाम हैं। बेकार की दयाशीलता उन्हें पसंद नहीं है, खासकर आतंकी समूहों पर दया करना उन्हें स्वीकार नहीं है। अपने पूर्व के शासन में वे आतंकी समूहों को शांति का पाठ पढ़ाने का काम किया था। सबसे बड़ी बात यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प मुस्लिम देशों की यूनियनबाजी से भड़के होते हैं और मुस्लिम आबादी के जिहाद और विखंडन की मानसिकता पर कड़े प्रहार के लिए जाने जाते हैं। यह सही है कि अहमद अल-शरा रूस विरोधी हैं, ईरान विरोधी हैं फिर उनका संगठन पूरी तरह से शांतिप्रिय नहीं है। अहमद अल शरा का आतंकी संगठन सत्ता में रहने के दौरान कैसा व्यवहार करेगा, देखना भी जरूरी है।
अहमद अल-शरा का संगठन हयात तहरीर अल शाम अभी भी आतंकवादी संगठन ही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन ने हयात तहरीर अल शाम को आतंकवादी सूची में रखा है। यह गुट अलकायदा से निकल कर बना है। अलकायदा का कभी सरगना ओसामा बिन लादेन था। ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने मार गिराया था। हयात तहरीर अल शाम भी कभी ओसामा बिन लादेन का समर्थक था। अभी भी पूरे सीरिया पर हयात ए तहरीर अल शाम का कब्जा नहीं है, कई अन्य आतंकी गुट हैं जिन्हें भी सत्ता चाहिए। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न आतंकी संगठनों का कब्जा है।
सीरिया के पुर्ननिर्माण में सबसे बड़ी बाधा इस्राइल की चिंता है। इस्राइल की चिंता को खारिज कर अगर अमेरिका और यूरोप सीरिया की मदद करता है तो फिर यह आत्मधाती कदम जैसा ही होगा। सीरिया और इस्राइल के बीच सीमा विवाद है। सीरिया के एक क्षेत्र पर इस्राइल का कब्जा है। बशर अल असद सरकार के पतन के बाद इस्राइल की चिंता बढ़ी है। इस्राइल ने सीरिया के हथियारों को नष्ट करने के लिए कई घातक हमले भी किये हैं। इस्राइल का मानना यह है कि बशर अल असद के छोड़े हुए हथियार कहीं आतंकवादी संगठनो के हाथ न लग जायेे। सीरिया के आतंकवादी संगठनों का हमास और हिजबुल्लाह से संपर्क है। ये तीनों का लक्ष्य एक ही है। लक्ष्य इस्लाम विरोधी इस्राइल का संहार करना और विध्वसं करना है। आज न कल सीरिया के आतंकवादी संगठन इस्राइल के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे ही और हमास का साथ देंगे ही। ऐसी परिस्थिति में अमेरिका और यूरोपीय यूनियन सीरिया के पुर्ननिर्माण के लिए धन की वर्षा कैसे कर सकते हैं?
समस्या की जड़ में मुल्ला और आतंकवादी संगठन नहीं बल्कि मुस्लिम जनता ही होती है। मुस्लिम जनता ही आतंकवादियों और मुल्लों को शासक चुनती है और समर्थन देती है। अफगानिस्तान में तालिबान को छिपने के लिए जगह देने वाली मुस्लिम जनता ही थी, ओसामा बिन लादेन की हिंसा के राह पर चलने वाली मुस्लिम जनता ही थी। सीरिया की जनता इस मर्म को समझ सकती है और उदारता पर सवार होगी तो फिर परिणाम सकारात्मक होगा, अन्यथा अफगानिस्तान और लेबनान की तरह सीरिया में भी मानवता लहूलुहान हाती रहेगी और भूख, बेकारी, हिंसा में तड़प-तड़प कर दम तोड़ती रहेगी।