सुप्रिम कोर्ट की दोहरी नीति ने देश के बहुसंख्यकों को कई बार निराश किया है



--परमानंद पाण्डेय
लखनऊ - उत्तर प्रदेश,
इंडिया इनसाइड न्यूज।

मणिपुर की घटना जब हुई तो वहां की सरकार को और केंद्र की सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर कठघड़े में खड़ा करने का हर प्रयास किया। जब बंगाल में वीभत्स हृदय विदारक घटनाएं हुईं तो सुप्रिम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान तो नहीं ही लिया पर पीआई ल पर भी हाई कोर्ट जाने को कहा। खैर बंगाल की हाई कोर्ट तो कुछ न कुछ कर ही रही है।

सवाल यह है कि सुप्रीम अदालत अपने विवेक का इस्तेमाल बहुसंख्यकों के लिए करने में क्यों हिचकती है। देश दुनिया में स्पष्ट हो चुका है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुसलमानों का पक्ष लेने में हमेशा आगे रहती है। ममता के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण सर्वोपरि है। हिन्दुओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख दिखता है। चारो तरफ से मांग उठती रहती है राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए। किन्तु केन्द्र को पता है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के निर्णय को तुरन्त पलट देगी।

बार बार सुप्रिम कोर्ट के खिलाफ सनातनियों की आवाज उठती है किन्तु मोदी सरकार कुछ कर नहीं पा रही है। अब समय आ गया है कि जनता अपनी आवाज को बुलंद करे। सुप्रिम कोर्ट में जबतक कॉलेजियम रहेगा इसी प्रकार सुप्रिम कोर्ट हिन्दुओं को न्याय देने में नाकाम रहेगा। अब तो हमें मोदी के तृतीय काल का इंतजार करना होगा। सुप्रिम कोर्ट के मनमाने तौर तरीकों को रोकना ही होगा। कॉलेजियम को हटाकर योग्यता के आधार पर जबतक जजों की नियुक्ति की व्यवस्था नहीं की जाएगी तबतक कुछ नहीं बदलेगा उच्च न्यायपालिका में। मोदी को न्यायपालिका को चुस्त दुरुस्त करने के लिए आगे आना ही होगा।

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