खनिज कॉन्क्लेव में 56 हजार करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव हुए प्राप्त



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

■पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ की खनिज नीति निवेशकों को कर रही आकर्षित

■कमलनाथ की दूर‍दृष्टि का मध्‍यप्रदेश को मिल रहा लाभ

मध्यप्रदेश में खनिज विभाग की नीति को लेकर राजनीतिक हलचल एक बार फिर तेज़ है। चर्चा इस बात को लेकर है कि जिस खनिज नीति को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने 18 माह के कार्यकाल में तैयार करवाया था, वही आज प्रदेश को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा हाल ही में आयोजित खनिज कॉन्क्लेव में 56 हजार करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। यह न केवल राज्य के खनिज क्षेत्र की संभावनाओं को दर्शाता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि कमलनाथ सरकार द्वारा तैयार की गई नीति की जड़ें अब भी प्रभावी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशकों को आकर्षित करने की जो बुनियाद कमलनाथ सरकार ने रखी थी वही आज इस उपलब्धि का कारण बनी है। वर्तमान सरकार भी इस बात को नकार नहीं सकती कि नीति ढाँचा वही है, जो 2020 में कांग्रेस शासनकाल में लागू हुआ था। यह इस बात का प्रमाण है कि नीति अगर दूरदर्शिता से बनाई जाए तो उसका लाभ वर्षों बाद भी मिलता है।

● कमलनाथ की सोच निवेशक केंद्रित नीतियों की नींव

कमलनाथ का राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव सदैव व्यावहारिकता पर आधारित रहा है। जब वे 2018 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने सबसे पहले प्रदेश की नीतिगत व्यवस्था की समीक्षा करवाई। उन्होंने पाया कि खनिज विभाग समेत कई विभागों की नीतियाँ निवेशकों के दृष्टिकोण से जटिल और प्रक्रियात्मक रूप से भारी हैं। इसलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में खनिज नीति को पूरी तरह से निवेशक उन्मुख बनाने की दिशा में काम किया। खदानों के लीज़ नवीनीकरण की प्रक्रिया सरल की गई।

● पारदर्शिता के लिए ऑनलाइन टेंडर प्रणाली लागू की गई

छोटे खनन उद्यमों के लिए एकल खिड़की प्रणाली प्रारंभ की गई और सबसे महत्‍वपूर्ण स्थानीय समुदायों की भागीदारी को नीति का अभिन्न हिस्सा बनाया गया। कमलनाथ का मानना था कि “खनिज केवल आर्थिक संपदा नहीं, यह स्थानीय विकास का माध्यम भी है।” यही कारण था कि उन्होंने नीति में ग्राम पंचायतों और जिला खनिज फाउंडेशन को सशक्त करने पर जोर दिया।

● 18 माह में बिछाई गई वह मजबूत बुनियाद

कमलनाथ सरकार का कार्यकाल भले ही 18 माह का रहा, लेकिन इस अवधि में उन्होंने खनिज, उद्योग, ऊर्जा, नगरीय विकास और कृषि जैसे प्रमुख विभागों की नीतियों में व्यापक सुधार किए। खनिज नीति के मामले में उन्होंने न केवल पारदर्शिता लाई, बल्कि निवेशकों को भरोसा दिलाया कि मध्यप्रदेश में खनन कारोबार अब “अनुमति आधारित भ्रष्टाचार” से मुक्त होगा। उन्होंने छोटे और मझोले खननकर्ताओं के लिए कई नियमों में ढील दी, जिससे राज्य में खनिज क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और राजस्व में वृद्धि हुई।

● भाजपा शासनकाल की विफलताएँ और घोटाले

जहाँ कमलनाथ ने नीति में पारदर्शिता का प्रयास किया, वहीं पिछले 18 वर्षों के भाजपा शासनकाल में खनिज विभाग पर घोटालों, अनियमितताओं और आपराधिक घटनाओं के आरोप लगते रहे। राज्य के कई जिलों जैसे सागर, कटनी, दमोह, बालाघाट और छतरपुर में अवैध उत्खनन के मामले सामने आए। स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक मिलीभगत के कारण न केवल राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी प्रभावित हुआ। सबसे चौंकाने वाला उदाहरण कटनी जिले का है, जहाँ भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री संजय पाठक पर खनिज विभाग को 453 करोड़ रुपए की चपत लगाने के आरोप लगे। यह केवल एक मामला नहीं है- यह उस व्यवस्था की पहचान है जिसमें खनिज विभाग “राजस्व सृजन” से अधिक “राजनीतिक कमाई” का माध्यम बन गया था।

● खनिज विभाग की स्थिति अपराध और अराजकता

खनिज विभाग का इतिहास इस बात का साक्षी है कि अवैध खनन प्रदेश की सबसे बड़ी चुनौतियों में रहा है। पिछले 18 वर्षों में खनन माफिया के कारण कई जिलों में हिंसक घटनाएँ हुईं, अधिकारियों पर हमले, पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या और ग्रामीणों के साथ मारपीट के मामले आम रहे। इन घटनाओं ने यह साबित किया कि जब तक नीति निवेशक केंद्रित और पारदर्शी नहीं होगी, तब तक विभाग विकास का नहीं, बल्कि विवाद का केंद्र बना रहेगा। कमलनाथ के 18 महीनों में ऐसी कोई बड़ी आपराधिक घटना सामने नहीं आई। इसका कारण था कठोर नियंत्रण, जवाबदेही और सख्त निगरानी तंत्र।

● खनिज नीति की दिशा और लाभ

कमलनाथ सरकार की खनिज नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसमें स्थायित्व और पारदर्शिता को समान महत्व दिया गया। राज्य के खनिज संसाधनों का दोहन नियंत्रित तरीके से हो, यह सुनिश्चित किया गया। नीति में यह भी प्रावधान था कि खनिज राजस्व का एक निश्चित प्रतिशत स्थानीय विकास जैसे सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं में खर्च किया जाए। यह दृष्टिकोण केवल आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व को भी रेखांकित करता था। यही कारण है कि आज प्रदेश के कई खनन प्रभावित क्षेत्रों में विकास के नए मॉडल उभर रहे हैं।

● वर्तमान सरकार की चुनौती निरंतरता बनाए रखना

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भले ही नई ऊर्जा और पहल के साथ आगे बढ़ रहे हों, लेकिन उन्हें समझना होगा कि किसी भी क्षेत्र की स्थिरता “नीति की निरंतरता” में छिपी होती है। अगर राजनीतिक स्वार्थ में पूर्ववर्ती नीतियों को खारिज किया जाएगा, तो निवेशक विश्वास डगमगा जाएगा। वर्तमान में राज्य को जो निवेश प्रस्ताव मिले हैं, वे नीति के सतत प्रभाव का परिणाम हैं इसलिए इन नीतियों की निरंतरता बनाए रखना ही सबसे बड़ा प्रशासनिक निर्णय होगा।

● नीति की सफलता, राजनीति से परे

कमलनाथ ने अपने अल्प कार्यकाल में जो आधारशिला रखी थी, वही आज प्रदेश की उपलब्धियों की नींव बन गई है। भाजपा सरकार को चाहिए कि इस नीति की सकारात्मक परंपरा को आगे बढ़ाए, न कि उसे केवल राजनीतिक दृष्टि से देखे। प्रदेश को आज नीतियों की राजनीति नहीं, बल्कि नीति की स्थिरता चाहिए। यदि कमलनाथ द्वारा बनाई गई पारदर्शी, निवेशक-उन्मुख और सामाजिक दृष्टि वाली नीति का सतत पालन हुआ, तो मध्यप्रदेश न केवल खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि “मिनरल हब ऑफ इंडिया” के रूप में अपनी पहचान को सशक्त करेगा।

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