--के• विक्रम राव
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
केरल के महामहिम राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बड़े सौम्य, शालीन, शिष्ट, शऊर तथा सलीके से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट सरकार को दुरुस्त कर ही दिया। बांस भी नहीं टूटा, सांप भी मर गया। विधानसभा के बजट अधिवेशन (कल 25 जनवरी 2024) के अपने उद्घाटन भाषण को बस दो मिनट में समाप्त कर दिया। कुल 62 पन्नों का मुद्रित भाषण था जो पिनाराई विजयन काबीना ने लिखा था। राज्यपाल ने केवल पहला और आखिरी अनुच्छेद पढ़ा और राजभवन लौट आए।
कम्युनिस्ट सरकार ने सभी पृष्टों में मोदी सरकार की तीव्र भर्त्सना की थी। केरल को वित्तीय संकट में डाल देने का आरोप लगाया था। भारत के संघीय ढांचे को तोड़ने का भी आरोप लगाया था। केरल सरकार उधार लेने का अधिकार मांग रही थी।
अपने (काबीना की) भाषण को महज चंद मिनटों में आरिफ मोहम्मद खान ने सीमित कर दिया। वर्ना आज के दैनिक में सुर्खियों में छपता कि राष्ट्रपति द्वारा नामित राज्यपाल ने प्रधानमंत्री की तीव्र आलोचना कर दी।
हालांकि माकपा सरकार ने राज्यपाल को कई बार अराजक तरीके से परेशान किया। जहां वे सार्वजनिक समारोह में जाते, माकपा छात्र संगठन उन्हें झंडे दिखाकर नारेबाजी करते रहे।
राजभवन तथा राज्य शासन के बीच मुद्दा सार्वजनिक उधार का है। राज्यपाल जानते हैं कि माकपा सरकार ने व्यय अधिक किया। सब उधारी है। आवक रही नहीं। भला हो राज्यपाल का कि उन्होंने राज्य में वित्तीय संकट घोषित कर माकपा सरकार को अपदस्थ करके राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया। समस्या शुरू हुई थी क्योंकि केंद्र सरकार ने गैर-बजट तरीके से केरल सरकार को संसाधन जुटाने नहीं दिया।
जब केरल विधानसभा में आरिफ मोहम्मद खान निहायत लोकतांत्रिक तरीके से इन सरकारी खर्चों पर लगाम कस रहे थे, ठीक तभी नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में सांसद-वकील कपिल सिब्बल संविधान की धारा 131 के तहत न्यायिक हस्तक्षेप की मांग कर रहे थे। यह पुराने कांग्रेसी मंत्री और अब समाजवादी पार्टी-समर्थित राज्यसभा सदस्य सिब्बल अदालत से दरखास्त कर रहे थे कि केरल सरकार को 262 अरब रूपयों का उधार लेने की अनुमति दे दें ताकि राजकीय भुगतान किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन के समक्ष भारत सरकार के एटोर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि केरल की माकपा सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने की हरकत कर रही है। वेंकटरमणी ने जजों को आगाह किया कि केरल सरकार अपनी याचिका द्वारा मांग कर रही है कि “कृपया हमारी नाकामी को ढकने हेतु हमें पर्दा डालने दीजिए।” ऐसी मांग स्वीकार्य नहीं हो सकती। इस पर वकील सिब्बल ने कहा कि 31 मार्च के पूर्व यदि केरल सरकार को वित्तीय मदद नहीं मिली तो राज्य पर आर्थिक विपदा आ सकती है।
प्रतीत होता है कि माकपा सरकार पर संवैधानिक संकट आ सकता है। नतीजन वित्तीय आपदा स्थिति घोषित कर केंद्र सरकार राज्य का शासन अपने हाथों में ले सकती है। केंद्र सरकार का ऐसा निर्णय करने के लिए तर्क होगा कि राज्य की माकपा सरकार फिजूलखर्ची और मनमानी करके खुद ऐसी दयनीय हालत में फंसी हैं। फिलहाल केरल का उदाहरण अन्य गैरभाजपाई राज्यों को एक चेतावनी होगी कि मुफ्त की रेवड़ियां बांट कर वोट पाने का और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की आदत छोड़ें।