--के. विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
एक मीडिया-कर्मी होने के नाते मेरी यह अवधारणा है कि खबर के लिये अनपेक्षित बात होना अनिवार्य है। सामान्य, आम, अमूमन न हों। ध्यान खींचनेवाला हो, खासकर। मसलन यह कदापि खबर नहीं हो सकती कि मुसलमान ने मंदिर हेतु अपनी जमीन दे दी। हिन्दू ने मुस्लिम कुटंब को दंगों में बचाया। अथवा रिक्शेवाले ने यात्री को पर्स लौटा दिया। ऐसी बाते तो मानवीय है। अच्छी हैं, मगर अनूठी नहीं। कर्तव्य पारायणता है।
गत सप्ताह भारत में इस्लामी शिक्षा की बाबत एक सामचार साया हुआ था जो पूर्णतया देशहित में है। गमनीय है। इसीलिये केरल से आई यह रपट मन को भा गयी (दैनिक हिन्दू: चेन्नई: 5 अगस्त 2022, पृष्ठ 7, कालम 2 से 6)। इसमें उल्लेख है कि कैसे रामायण प्रश्नोत्तरी में मुस्लिम बहुल-मल्लपुरम जनपद में स्थित इस्लामिक एण्ड आर्टस कालेज के छात्र मोहम्मद जबीर तथा मोहम्मद बसीथ ने षीर्ष पुरस्कार जीता है। वाल्मीकी रचित ग्रंथ में दोनों पारंगत पाये गये। पूरे मोहल्ले ने उनकी अभूतपूर्व कामयाबी पर बधाई दी। गौरतलब बात यही है कि इसी इस्लामी संस्थान की समन्वय समिति ने बाकी तालीमी कार्यक्रम के तहत अपने 97 मदरसों में मजहबी के साथ लौकिक अध्ययन पाठ भी चलाये है। छह वर्षों का कोर्स है। किसी भी आम शिक्षा संस्था में निर्धारित की मानिन्द है। उसी के समकक्ष होते हैं।
यहां सवाल उठता है कि उत्तर भारत में इतने इस्लामी शिक्षा केन्द्र है, वे क्यों ऐसे पाठ्यक्रम नहीं चलाते हैं? छात्रों को साफ्टवेयर इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट, अर्थशास्त्री बनायें। केवल पेशे-इमाम, कुरान का ज्ञाता ही नहीं।
इस मामले में एक गंभीर चेतावनी आयी है पड़ोसी पाकिस्तान से जहां के शिक्षा मंत्री ने सचेत किया है कि मदरसे इस्लामी देश के शासन के लिये खतरनाक बन गये है। कट्टरवाद और संकीर्णता व्यापक हैं (3 जुलाई 2015: पाकिस्ताननामा)। अमेरिकी सिनेटर क्रिस मर्फी ने कहा भी कि: ‘‘सऊदी अरब असहिष्णुता फैलाने के लिये पाकिस्तान को अथाह धन भेज रहा हैं। वहां 24 हजार मदरसे हैं।
इस बीच भारत कुछ सुधरा है। वोट बैंक की सियासत तज कर। महाराष्ट्र की सरकार ने निर्देश दिया है कि वे मदरसे कदापि स्कूल नहीं माने जायेंगे, जहां गणित, विज्ञान, समाजशास्त्र जैसे विषय नहीं पढ़ाये जाते। यही नियम वैदिक पाठशालाओं, गुरूद्वारों तथा चर्चों के शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होता है। यूपी में यह गत वर्ष से क्रियान्वित हुआ है। इसके अंतर्गत गणित तथा विज्ञान अब मदरसों में अनिवार्य विषय होंगे। एनसीआरटी का सिलेबस भी लागू हो रहा है।
मगर एक कष्टदायक बात यहां पर है। स्वतंत्रता दिवस आ गया। इस बार तो आजादी का अमृत महोत्सव भी है। ‘‘घर-घर तिरंगा‘‘ का कुल-हिन्द नारा हैं तो मदरसों को भी शामिल होना होगा। प्रतिरोध अथवा टालने के गलत मायने लगाये जायेंगे। अतः तिरंगे के साथ राष्ट्रगान भी हो। यह समय की मांग है। दारूल उलूम फिरंगी महली के अध्यक्ष तथा ईदगाह के ईमाम जनाब खालिद रशीद फिरंगी महली ने निर्देश भी दे दिया है। फिरंगी महल में गांधीजी हमेशा लखनऊ यात्रा पर ठहरा करते थे। अतः बापू की परंपरा का खालिद भाई सम्यक पालन करते हैं।
यहां एक गंभीर परामर्श और भी है कि धर्म ग्रंथों में जो कथन और निर्देश, कई सदियों पूर्व के है, को अब आाधुनिक बनाया जाये। इससे सांप्रदायिक तनाव और टकराव नहीं सर्जेगा। जिन सूराओं में दूसरे मतावलंबियों पर विषेषकर भारत जैसा सेक्युलर गणराज्य के हिन्दुओं की निंदा और भर्त्सना की जाती है उनका निवारण हो। उदाहरणाार्थ सूरा 3ः85 में कहा है कि इस्लाम के अलावा अन्य धर्म/मजहब अस्वीकार है। सूरा 3ः118 में निर्दिष्ठ है कि केवल मुसलमान को ही अपना अंतरंग मित्र बनाओ। सूरा 22ः30 में बताया गया है कि मूर्तियां गंदी होती हैं। इत्यादि। लोकतांत्रिक सेक्युलर भारत में सहिष्णुता आवश्यक है यदि आर्थिक प्रगति की गति तेज करनी है तो।