--अभिजीत पाण्डेय,
झारखंड, इंडिया इनसाइड न्यूज़।
बाबूलाल के सहारे भविष्य की राजनीति साधने की तैयारी में भाजपा बाबूलाल को विधानसभा में नेता विपक्ष का पद दे सकती है। बीजेपी के नेता मानते हैं कि बाबूलाल के आने से आदिवासी वोटर पर प्रभाव पड़ेगा। इससे उनकी पकड़ सिर्फ आदिवासी वोटर तक नहीं बल्कि नॉन ट्राइबल वोटर तक हो जाएगी।
बीजेपी अब सूबे की सियासत को साधने के लिए ट्राइबल और नॉन ट्राइबल के बीच बेहतर संतुलन बनाकर ही कोई भी चाल आगे चलना चाहती है। बाबूलाल मरांडी के भरोसे बीजेपी की झारखंड में भविष्य की सियासत है। क्या जुड़ गया है ? ये सवाल इसलिए क्योंकि अब तक झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है और बीजेपी ने अभी तक किसी के नाम का ऐलान नहीं किया है।
वहीं, जेवीएम के बीजेपी में विलय की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है। 25 फरवरी के बाद झारखंड विधानसभा का बजट सत्र भी शुरु होना है। इससे पहले शनिवार को दिल्ली में बाबूलाल मरांडी और बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच गुपचुप तरीके से मुलाकात भी हुई है।
चर्चा है कि 11 फरवरी को जेवीएम केंद्रीय समिति की बैठक में बाबूलाल विलय का प्रस्ताव लाएंगे, जिसे दो-तिहाई बहुमत से पास करना है। इसके बाद विलय का प्रस्ताव बीजेपी को भेजा जाएगा और बजट सत्र से पहले सब कुछ ठीक रहा तो 23 फरवरी को बाबूलाल बीजेपी के हो जाएगें।
बीजेपी के नेता मानते हैं कि बाबूलाल के आने से आदिवासी वोटर पर प्रभाव पड़ेगा। इससे उनकी पकड़ सिर्फ आदिवासी वोटर तक नहीं बल्कि नॉन ट्राइबल वोटर तक हो जाएगी।
वहीं, बीजेपी विधायक बिरंची नारायण की मानें तो बाबूलाल ने झारखंड में बीजेपी को सींचा है, आगे बढ़ाया है। उनके आने से पार्टी मजबूत होगी। दरअसल, बीजेपी अब सूबे की सियासत को साधने के लिए ट्राइबल और नॉन ट्राइबल के बीच बेहतर संतुलन बनाकर ही कोई भी चाल आगे चलना चाहती है।
बाबूलाल को बीजेपी में लाकर सदन में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी देने की रणनीति पर पार्टी आगे बढ़ चुकी है, जबकि किसी नॉन ट्राइबल को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देकर सड़क से सदन तक पार्टी को मजबूती देते हुए सत्ता पक्ष को घेरने की सियासत है।
सूत्रों के अनुसार, दिल्ली में हुए गुपचुप मुलाकात में बाबूलाल ने अमित शाह से भी विलय समारोह में मौजूद रहने का आग्रह किया है। दरअसल, बीजेपी को 28 में से दो ट्राइबल सीट पर जीत मिली है, जबकि 26 सीट उसके हाथ से निकल गई। कोल्हान में सूपड़ा साफ हो गया, जबकि सन्थाल में भी मेहनत के बावजूद परिणाम अनुकूल नहीं रहा। ऐसे में ट्राइबल कार्ड बीजेपी की मजबूरी बन चुकी है और उस खांचे में बाबूलाल फिट बैठते हैं।