--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने समाधान के खोजे थे कई तरीके
■मध्यप्रदेश सरकार को शिक्षित बेरोजगारों के लिए तलाशने होंगे अवसर
त्यौहारी सीज़न में जब गाँव और कस्बे रौनक से भर जाने चाहिए, तब मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में घर सूने दिखाई देते हैं। कारण है युवाओं और श्रमिकों का पलायन। खासतौर पर आदिवासी और ग्रामीण समाज से जुड़े लाखों लोग रोज़गार की तलाश में गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों का रुख करते हैं। यह केवल आर्थिक असुरक्षा का संकेत नहीं, बल्कि प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने पर भी गहरी चोट है। मध्यप्रदेश में बेरोजगार युवाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। उन्हें रोजगार के अवसर ही नहीं बन रहे हैं। मजबूरी में युवाओं को प्रदेश से बाहर रोजगार के लिए जाना पड़ता है। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में तकनीकि शिक्षा या कौशलवान युवाओं की कमी है। लेकिन जिस स्तर के रोजगार इन्हें मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहे हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश के युवाओं के बेरोजगारी के समाधान खोजने के प्रयास किये थे। अपने 18 माह के शासनकाल में कमलनाथ ने बेरोजगार शिक्षित युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए पहलें शुरू की। कमलनाथ सरकार ने विरासत में मिले खाली खजाने और बदहाल व्यवस्था को सुधारने में अपनी साफ नियत और नीति बनाई। हर क्षेत्र में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए नई सोच और दृष्टिकोण के साथ काम किया। मध्यप्रदेश के किसानों को राहत पहुँचाई।
● रोजगार की दिशा में कमलनाथ ने उठाए थे कदम
रोजगार के लिए कमलनाथ सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे जिनको विजन डाक्यूमेंट में और आगे बढ़ाया गया। कौशल उन्नयन के तहत युवाओं को ट्रेंड कर काम में लगाया गया। मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना के तहत भी युवाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी गई। निवेश के जरिए भी सरकार रोजगार पर फोकस किया था। सरकार ने 70 फीसदी स्थानीय युवाओं को नौकरी देने का नियम भी बनाया। खासतौर पर सरकार ने ग्रामीण रोजगार पर फोकस कर पलायन रोकने की तरफ कदम बढ़ाया। श्रम ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो देश की तुलना में मध्यप्रदेश में बेरोजगारों की संख्या कम थी। यानी यहां के लोगों के हाथों में ज्यादा काम है। श्रम ब्यूरो के मुताबिक देश में 47 फीसदी लोगों के पास काम है जबकि 53 फीसदी बेरोजगार हैं। प्रदेश में 54 फीसदी लोगों के पास रोजगार है जबकि 46 फीसदी बेरोजगार हैं। प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या बढ़ी। यानी महिलाओं को ज्यादा रोजगार मिला। इन आंकड़ों से उत्साहित सरकार ने विजन डाक्यूमेंट में ग्रामीण रोजगार पर खास ध्यान दिया था।
● रोजगार सृजन कार्यक्रम में प्रदेश आगे: पीएमईजीपी में मध्यप्रदेश ने बहुत बेहतर प्रदर्शन किया था। रिपोर्ट में प्रदेश ने पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा रोजगार पैदा किए। साल 2017-18 में 14,432 लोगों को रोजगार मिला था जबकि 2018-19 में ये संख्या बढ़कर 20,208 पर पहुंच गई। साल 2019-20 में अब तक इस योजना के तहत 5552 लोग काम पर लग गए।
● ग्रामीण कौशल्या योजना में बढ़ा रोजगार: दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना में मध्यप्रदेश आगे रहा। साल 2017-18 में प्रदेश में इस योजना के तहत 1823 लोगों को रोजगार हासिल हुआ था जबकि 2018-19 में ये संख्या बढ़कर 2098 पर पहुंच गई है।
*शहरी आजीविका मिशन में तीन गुना इजाफा:* प्रधानमंत्री शहरी आजीविका मिशन के तहत प्रदेश में ट्रेंड वर्कर्स यानी कुशल श्रमिकों की संख्या तीन गुना तक बढ़ी। साल 2017-18 में 3039 लोगों को इस योजना के तहत रोजगार मिला था जबकि 2018-19 में ये संख्या तीन गुना तक बढ़ी। मिशन के तहत प्रदेश सरकार 31,633 लोगों को काम पर लगाया।
● पलायन और युवाओं की बेरोज़गारी
अगस्त–सितंबर 2025 के हालात बताते हैं कि मध्यप्रदेश से बड़े पैमाने पर युवा अब भी बाहर जा रहे हैं। उद्योग और रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण न केवल गरीब तबका, बल्कि शिक्षित युवा भी महानगरों की ओर रुख कर रहे हैं। यह पलायन प्रदेश की ऊर्जा और प्रतिभा को कमज़ोर करता है। मध्यप्रदेश के लगभग 4 लाख मजदूर दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं, जिनमें से लगभग 2 लाख मजदूर दिल्ली में हैं।
● कमलनाथ का दृष्टिकोण
कमलनाथ जैसे अनुभवी नेता का योगदान यहाँ महत्वपूर्ण हो सकता था। उनके कार्यकाल में प्रदेश में उद्योग आधारित रोजगार को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस पहलें शुरू की गई थीं। निवेश आकर्षित करने और स्थानीय स्तर पर छोटे–मझोले उद्योगों (SMEs) को खड़ा करने की योजना उनके विज़न का हिस्सा थी। उनका मानना था कि यदि रोजगार के अवसर गाँव और कस्बों तक पहुँचेंगे तो न केवल पलायन रुकेगा, बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था भी मज़बूत होगी।
● शिक्षा और कौशल विकास
कमलनाथ की सोच हमेशा युवाओं को केंद्र में रखकर रही है। वे मानते थे कि केवल डिग्री से रोज़गार संभव नहीं, बल्कि कौशल आधारित शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण से ही युवाओं को नए अवसर मिल सकते हैं। आज जब डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे राष्ट्रीय अभियान सक्रिय हैं, तब कमलनाथ जैसे अनुभवी नेतृत्व की भूमिका यह हो सकती थी कि इन योजनाओं को प्रदेश के युवाओं तक वास्तविक रूप से पहुँचाया जाए।
● आदिवासी समाज और स्थानीय संसाधन
पलायन की सबसे बड़ी मार आदिवासी समाज पर पड़ रही है। त्यौहार के समय जब उन्हें अपने परिवार और परंपराओं के साथ होना चाहिए, तब वे दूसरे राज्यों में मज़दूरी करने को मजबूर हैं। कमलनाथ का दृष्टिकोण यहाँ भी अलग रहा है। वे हमेशा यह मानते रहे कि प्रदेश की प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदा को ही रोजगार और विकास का आधार बनाया जाए। वन-उत्पाद, हस्तशिल्प और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देकर वे आदिवासी समाज को आत्मनिर्भर बनाने का विज़न रखते थे। आज जब मध्यप्रदेश युवाओं के पलायन, बेरोज़गारी और अवसरों की कमी से जूझ रहा है, तब कमलनाथ जैसे नेता का अनुभव और दृष्टिकोण और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उनका नेतृत्व यह संदेश देता है कि- यदि उद्योग, शिक्षा और कौशल विकास को स्थानीय स्तर पर जोड़ा जाए तो न केवल पलायन रुकेगा, बल्कि प्रदेश अपने युवाओं की ताकत से आत्मनिर्भर भी बनेगा।