--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■मंत्री विश्वास सारंग के संरक्षण से पनपा अपराध और मध्यप्रदेश की राजनीति और मछली कांड का सच
■विश्वास सारंग ने मछली परिवार को बनाया गुनाहों का मगरमच्छ
■सारंग की सरपरस्ती में खड़ा हुआ मछली का साम्राज्य
मध्यप्रदेश की राजनीति में इस समय जिस प्रकरण ने सनसनी मचाई है, वह है सारिक मछली और यासीन मछली कांड। यह मामला केवल अपराधियों की करतूत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे जो राजनीतिक संरक्षण की परतें सामने आ रही हैं, उसने शासन-प्रशासन की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिंह खड़े कर दिए हैं। “बगैर किसी के संरक्षण अपराधी के हौंसले कभी बुलंद नहीं हो सकते।” मछली साम्राज्य का नाम प्रदेश भर में चर्चा का विषय बन गया है। मछली के अपराधों की परतें जिस तरह खुल रही हैं, उससे यह साफ संकेत मिलता है कि अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद किसी कारण से ही हैं। अपराधियों का नेटवर्क, उनकी गतिविधियाँ और उनका प्रभाव– यह सब इस ओर इशारा करता है कि इनके पीछे कोई न कोई बड़ा राजनीतिक सहारा जरूर मौजूद रहा है। प्रदेश की जनता के सामने अब यह सवाल सीधे-सीधे उठ खड़ा हुआ है कि आखिर किसके संरक्षण में इन अपराधियों ने वर्षों तक अपने कारनामों को अंजाम दिया? हकीकत ये है कि ये मछली परिवार सारंग की कृपा से सरसब्ज हुआ। मछली परिवार को यदि किसी का संरक्षण मिला है तो तय है कि वो कोई और नहीं, बल्कि इलाके का विधायक है। विधायक कौन है, किस दल का है ये पुलिस को भी पता है और जनता को भी, लेकिन मछली परिवार पुलिस के जाल में तब फंसा जब पानी सिर के ऊपर हो गया। पुलिस को भी मछली पकडने में लंबा समय लग गया। यानि कोई एक साल 8 महीना रहा।
● विश्वास सारंग पर आरोपों की बौछार
इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा सवाल खेल एवं सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग पर उठ रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि सारिक और यासीन मछली ने जिस क्षेत्र में अपना अपराध साम्राज्य खड़ा किया, वही क्षेत्र विश्वास सारंग का विधानसभा क्षेत्र भी है। जनता का सवाल वाजिब है कि जब क्षेत्र में ऐसी आपराधिक गतिविधियाँ चल रही थीं, तो क्षेत्र के विधायक और मंत्री को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? पुलिस की जांच में भी अब तक जो तथ्य सामने आए हैं, वे लगातार सारंग की ओर ही इशारा कर रहे हैं। जांच रिपोर्ट में एक ही नाम प्रमुखता से सामने आया है कि सारिक और यासीन मछली को यह संरक्षण विश्वास सारंग से मिला।
● मंत्री की बेचैनी और सफाई का सिलसिला
मामले की परतें खुलने के साथ ही मंत्री विश्वास सारंग की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है। सूत्र बताते हैं कि वे लगातार पार्टी के बड़े नेताओं, पुलिस अधिकारियों और कानूनविदों से मिलकर अपनी बेगुनाही का सबूत पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह है कि यदि कोई निर्दोष है, तो उसे बार-बार अपनी सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ रही है? जनता अब इस निष्कर्ष पर पहुँचने लगी है कि सारंग के डर और दबाव से ही इतने लंबे समय तक अपराधियों का साम्राज्य फलता-फूलता रहा।
● मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की चुप्पी
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब प्रदेश में अपराधियों के संरक्षण का मामला सरकार के मंत्री तक जा पहुँचता है, तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल आखिर चुप क्यों हैं? अब तक दोनों ही नेताओं ने न तो मंत्री सारंग से कोई सवाल-जवाब तलब किया और न ही कोई सार्वजनिक बयान दिया। यह चुप्पी अपने आप में बहुत कुछ कहती है। क्या मुख्यमंत्री अपनी सरकार की बदनामी छुपाने के लिए एक विवादास्पद और बदनाम मंत्री पर पर्दा डाल रहे हैं? क्या पार्टी संगठन भी इस अपराध-राजनीति गठजोड़ की सच्चाई सामने आने से डर रहा है?
● जनता का आक्रोश और विश्वास का संकट
मध्यप्रदेश की जनता इस पूरे घटनाक्रम को गहरी नजर से देख रही है। जनता को यह भलीभाँति समझ में आ गया है कि अपराधियों के हौंसले किसी कारण से ही इतने बुलंद रहे हैं। जनता अब सवाल पूछ रही है। क्या सरकार अपराधियों पर कार्रवाई करने में सक्षम है? या फिर सरकार अपने ही मंत्री को बचाने में व्यस्त है? इस प्रकरण ने सरकार और संगठन की विश्वसनीयता पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। यदि समय रहते सरकार ने कठोर कदम नहीं उठाए, तो यह मामला आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है।
● मुख्यमंत्री पर है कार्यवाही की बड़ी जिम्मेदारी
राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की जिम्मेदारी सबसे बड़ी है। जनता उनसे यह उम्मीद करती है कि वे अपने ही मंत्री पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच कराएँगे। लेकिन यदि मुख्यमंत्री भी चुप्पी साधे रहते हैं, तो जनता यह मानने पर मजबूर होगी कि सरकार अपराधियों और उनके संरक्षकों को बचाने में लगी है। मुख्यमंत्री को यह समझना होगा कि अपराध पर पर्दा डालने से अपराध खत्म नहीं होता, बल्कि और अधिक पनपता है।
● सारंग की सरपरस्ती में मछली से मगरमच्छ बना शारिक
राजधानी भोपाल का ये शारिक मछली कैसे मगरमच्छ बन गया। इसकी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। दरअसल शारिक मछली के परिवार ने 42 साल पहले तालाबों से अवैध रूप से मछली पकड़ने का काम शुरू किया था। इस मछली परिवार ने 1983 में सहकारी मछली पालन समिति बनाई। भोपाल के हथाईखेड़ा डैम सबसे पहले इस अपराधी परिवार ने कब्जा किया। वैसे तो ठेका 10 साल के लिए दिया गया था, लेकिन यह काम निरंतर जारी रहा, जबकि कलेक्टर ने इस मछली पालन समिति को अवैध घोषित कर दिया लेकिन सारंग की सरपरस्ती के कारण शारिक मछली का यह अवैध कारोबार निरंतर जारी रहा। इस अपराधी ने कोकता के अनंतपुरा इलाके में छह हजार स्क्वायर फीट की सरकारी जमीन कब्जा करके एक आलीशान कोठी भी बनाई जिसे हाल ही में सरकार ने बुलडोजर से गिराया। सवाल है कि एक मछली पकड़ने वाला इतना बड़ा अपराधी कैसे बन गया?