--- राज खन्ना, वरिष्ठ पत्रकार।
बेहद सादगी पसंद हैं जाहिल साहब। बेलाग और बेलौस भी। उनके इस मिजाज से उन्हें जानने वाले बखूबी वाकिफ़ हैं। उनका यह मिज़ाज और अंदाज उनके अदबी सफ़र में खूबसूरती से नुमायां है। वह जिंदगी को जैसे जीते हैं। आस-पास ही क्यों दूर तलक जो कुछ देखते- समझते और महसूस करते हैं। वह सुख- दुःख, पीड़ा, शोषण और संघर्ष। वह सब कुछ जो आम आदमी की किस्मत का हिस्सा है। उस सबको ईमानदारी से लफ़्ज़ों में पिरोते हैं। जाहिल जिस आम आदमी की हिमायत में तकरीबन पचास सालों से कलम के जरिये लड़ रहे हैं, वह लड़ाई इसलिए ज्यादा काबिले गौर है, क्योंकि उनकी यह लड़ाई छपे- बोले शब्दों तक महदूद नहीं है। उन्होंने सच के हक में अर्से तक ट्रेड यूनियन लीडर की हैसियत से कामयाब जमीनी लड़ाइयां लड़ी हैं। उन्होंने अभावों के बीच ईमानदारी के पल्लू को कसकर थामा और बुरे हालात में कभी भी नहीं छोड़ा। माली लिहाज से जाहिल साहब कभी सुकून में नहीं रहे। अब्बा का साया जल्दी ही सिर से उठा। परिवहन निगम की मामूली नौकरी और सिर्फ तनख्वाह पर गुजारे की प्यारी जिद जिसे वह रिटायरमेंट तक निभाते रहे। खुद का परिवार और उस समय पढ़ रहे चार भाई और एक बहन। माँ की मामूली पेंशन और गांव में कहने को जमीन। सफ़र कठिन था। लंबा भी। बदले अंदाज में यह आज भी जारी है। हालात बहुत नहीं बदले हैं। लेकिन बुरे हालात भी जाहिल साहब को नहीं बदल पाये। हर हाल में घर- परिवार और दोस्तों की की एक बड़ी दुनिया और जाती जिंदगी के ग़मों को समेटे वह उसी धुन में दूसरों को हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
अवध की सरज़मी उनकी जन्म भूमि और कर्मभूमि भी। इस भूमि से उपजी अवधी जबां ने हिंदी अदब को मालामाल करके ऊंचाइयां दी हैं। जोड़ने- बांधने और अपने में समेटने वाली इस जुबां को सिर्फ बोला नहीं जाता।आबादी का पढ़ा- कम पढ़ा या फिर बेपढ़े सभी इसे जीते हैं और इसमें जीतें हैं। जाहिल साहब जिस मिट्टी में जन्मे उस मिट्टी की लोगों की जिंदगानी उनकी बोली बानी अवधी में बयां करते हैं।
उनकी तीखी नज़र देश-दुनिया और आम आदमी और समाज के हर पहलू को छूती-समेटती हास्य के फ़व्वारे छोड़ती और व्यंग्य के तीख़े नश्तर बींधती है। उन्होंने मुल्क के तक़रीबन सभी हिस्सों में मुशायरों- कवि सम्मेलनों के ज़रिये लोगों को बेचैन करके झकझोरा है। अदबी नशिस्तों को नई ऊंचाइयां दी हैं। उनका पहला काव्य संग्रह ” धरती कै घाव ” में पाठक अपने और समय दोनों के घाव तलाशता है।
ग्रेजुएट जाहिल की अदबी दुनिया काफी बड़ी है। हास्य- व्यंग्य की दुनिया का यह बड़ा नाम खड़ी बोली की ग़ज़लों, नज़्मों, गीतों, दोहों में भी बेजोड़ है। वह ललक के साथ सुने और गौर से पढ़े जाते हैं। एहसास का खजाना और उन्हें खूबसूरत लफ़्ज़ों से सजाने का सलीका-हुनर उनके पास है। पांच दशकों से हिंदी- उर्दू मंचों का यह चिर- परिचित चेहरा अपने लिखे-पढ़े को संजोने में लगा है। रविवार 15 अक्टूबर 2017 को उनका दूसरा काव्य संग्रह ” ढाई आखर” लोकार्पित किया जा रहा है। सुल्तानपुर में उनके तमाम साथी इस मौके पर जुट रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार सत्य देव तिवारी की अगुवाई में ” ललिता तिवारी स्मृति न्यास” उनके अदबी सफ़र के पचास साल पूरे होने पर उनका पूरी गरिमा- उत्साह के साथ सम्मान कर रहा हैं। जाहिल साहब के तमाम चाहने वाले बेहद खुश हैं। मैं और भी। चालीस-पैंतालीस सालों से हर ख़ुशी- गम में हम साथ हैं। एक अच्छे दोस्त। बहुत अच्छे कवि- शायर। और उससे भी अच्छे इंसान। जो दूसरों की ख़ुशी में मुस्कुराना जानते हैं और जिनकी आँखें गैरों के लिए भीग-भीग जाती हैं। शुभकामनाएं।