कांग्रेस भारत बांटने पर फिर आमादा! उत्तर-दक्षिण में!!



--के• विक्रम राव
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।

सौ साल पुरानी मांग थी कि दक्षिण भारतीय प्रदेशों को एक पृथक संप्रभु गणराज्य में गठित किया जाए। वादा लोक सभा में कल (3 फरवरी 2024) एक सोनिया-कांग्रेस के सांसद ने उठाया। हालांकि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि ने इसे दशकों पूर्व खारिज कर दिया था। भले ही 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने इसका पुरजोर समर्थन किया था। कांग्रेसी लोकसभाई और कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डोड्डलहल्ली केम्पेगौड़ा सुरेश कोई ऐरेगैरे नए सांसद नहीं हैं। वे तीन बार लोकसभायी रहे, उनके बड़े भाई कर्नाटक में उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार हैं जो मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे। सुरेश दर्जा दस तक पढ़े, पेशे से किसान हैं। उनका परिवार बड़ा धनाढ्य राजनेताओं का है। जब यह मसला सदन में उठा तो कांग्रेस (दलित) अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुरेश से कन्नी काट ली। हंगामे के बीच संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने लोकसभा अध्यक्ष से यह राष्ट्रद्रोही मसला संसद की नैतिक विषयों की समिति के सिपुर्द करने की मांग की।

यह कांग्रेसी सांसद सुरेश पहले राजनेता नहीं हैं जिन्होंने दक्षिण द्रविडिस्तान की मांग उठाई थी। द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत 1916 में मद्रास में जस्टिस पार्टी की स्थापना से हुई थी। जस्टिस पार्टी अथवा दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन के नाम से जानी जानेवाली इस पार्टी के संस्थापक टी. एम. नायर और पी. त्यागराज चेट्टि थे। ई. वी. के. रामास्वामी 'पेरियार' 1939 में इस दल के अध्यक्ष बने और 1944 में उन्होंने इसे द्रविड़ कज़गम नाम दिया। यह सामाजिक आन्दोलन था। बाद में पेरियार के सहयोगी सीएन अन्‍नादुरै ने इस दल से अलग होकर 17 सितंबर 1949 में द्रविड़ मुनेत्र (प्रगतिवादी) कडगम (डीएमके) की स्‍थापना की। वह भारत समर्थक था। द्रविड़ नाडु एक प्रस्तावित संप्रभु राज्य का नाम है, जिसकी मांग स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक ईवी रामासामी पेरियार के नेतृत्ववाली जस्टिस पार्टी और सीएन अन्नादुरई के नेतृत्ववाली द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने द्रविड़ भाषा बोलने वालों के लिए की थी। प्रारंभ में द्रविड़नाडु समर्थकों की मांग तमिल -भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित थी, लेकिन बाद में इसका विस्तार द्रविड़-भाषी बहुमत वाले अन्य भारतीय राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक) को शामिल करने के लिए हुई। कुछ समर्थकों में सीलोन (श्रीलंका), उड़ीसा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से भी शामिल थे। प्रस्तावित संप्रभु राज्य के अन्य नामों में "दक्षिण भारत", "डेक्कन फेडरेशन" और "दक्षिणापथ" शामिल हैं।

फिर 1940 से 1960 के दशक तक द्रविड़ नाडु के लिए आंदोलन अपने चरम पर था, लेकिन तमिल आधिपत्य के डर के कारण, इसे तमिलनाडु के बाहर कोई समर्थन नहीं मिला। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956, जिसने भाषाई राज्यों का निर्माण किया, ने इस मांग को और कमजोर कर दिया। अन्नादुरई की अनुपस्थिति में 1960 में आयोजित एक बैठक में डीएमके नेताओं ने पार्टी कार्यक्रम से द्रविड़नाडु की अपनी मांग वापस लेने का फैसला किया।

द्रविड़नाडु के कई विकृत आकार पेश आए। तमिल राष्ट्रवाद का रूप मिला। फिर आर्य जाति का दक्षिण पर आक्रमण का खतरा दिखाया गया। रामासामी ने हिंदू महाकाव्य रामायण की व्याख्या एक छिपे हुए ऐतिहासिक विवरण के रूप में की कि कैसे आर्यों ने रावण द्वारा शासित तमिलों को अपने अधीन किया। कुछ द्रविड़ों ने शैव धर्म को एक स्वदेशी, यहां तक कि गैर-हिंदू धर्म के रूप में भी प्रस्तुत किया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसके अधिकांश नेता ब्राह्मण थे, को ब्राह्मण पार्टी के रूप में पहचाना जाने लगा। रामासामी, जो 1919 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, शीघ्र पार्टी के ब्राह्मणवादी नेतृत्व को लेकर उनका मोहभंग हो गया। ब्राह्मणों और कांग्रेस के बीच संबंध बढ़ते तमिल राष्ट्रवाद का निशाना बन गया। ईवी रामासामी ने 1925 में स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया और 1930 तक वह सबसे कट्टरपंथी "आर्यन-विरोध" तैयार कर रहे थे।

एमके करुणानिधि तथा जे. जयललिता के प्रणेता सीएन अन्नादुरई जब तमिलनाडु विधानसभा का चुनाव हार गए तो वे राज्यसभा में पहुंचे। उनके प्रथम भाषण में दक्षिण की अवमानना का नमूना पेश आया। वे बोले कि दक्षिण की उपेक्षा भारत सरकार करती रही। उपहास करती रही। तमिलनाडु ने इस्पात का कारखाना मांगा था। नेहरू सरकार ने इस्पात मंत्री के रूप में सी. सुब्रमण्यम को नामित किया। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल टाइगर्स (LTTE) को डीएमके ने पोषित किया। यह पड़ोसी श्रीलंका में उग्रवादी संगठन बना। अंत में राजीव गांधी की हत्या में शामिल हो गया।

नवगठित विपक्षी एकता के नाम "इंडी" पर द्रमुक ने एतराज किया है। डीएमके के भारत राजनीतिक गठबंधन में शामिल होने के बाद, तमिलनाडु के राजनेता ईवी वेलु ने "इंडिया" शब्द पर कहा : "तमिलनाडु के लोगों पर इस शब्द के कुप्रभाव पर सवाल उठा रहे थे। मानों भारत ही उत्तर भारत में कोई जगह है। हम अलग हैं, क्योंकि हम तमिलनाडु से हैं। यदि संभव हो तो हमें एक द्रविड़नाडु बनाना होगा। हमारी विचार प्रक्रिया उसी दिशा में जा रही थी।"

अंत में कर्नाटक की सत्तारूढ़ कांग्रेसी लोकसभाई डीके सुरेश ने पुराना भयावह सपना रेखांकित कर दिया कि भारत का दूसरा विभाजन होगा। सीमा होगी विंध्याचल पर्वत श्रृंखला। नर्मदा के किनारे भी।

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