--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■हरदा में करणी सेना पर पुलिस का हमला
■पूरे प्रदेश में सड़कों पर उतरी करणी सेना
■दिग्विजय सिंह ने दिखाई तत्परता, सरकार को कठघरे में खड़ा किया
■विपक्ष का नहीं मिला साथ, जीतू पटवारी की काबिलियत पर उठ रहे सवाल
मध्य प्रदेश के हरदा जिले में करणी सेना के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज और गिरफ़्तारी को लेकर मध्यप्रदेश की राजनीति में जबरदस्त उबाल आ गया है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इसे बर्बर कार्रवाई करार देते हुए राज्य सरकार और प्रशासन पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा ने इस पूरे मामले को कांग्रेस की “सामाजिक विद्वेष फैलाने की साजिश” बताया है। पुलिस ने करणी सेना पर जो सख्ती दिखाई है उससे पूरे प्रदेश में सड़कों पर उतर आयी। प्रदर्शन और नारेबाजी पर सरकार-पुलिस प्रशासन का विरोध जताया। पुलिस ने करणी सेना पर बर्बरता दिखाते हुए पानी की बौछारें मारी, आंसू गैस के गोले दागे और लाठियों की बरसाई। जिससे दर्जनों लोग घायल हुए। इसके साथ ही कई कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया। हालांकि करणी सेना के प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर को सशर्त रिहा कर दिया गया है। उनकी रिहाई गुपचुप तरीके से हुई है। लेकिन 54 लोग सुनील सिंह के साथ अभी भी जेल में हैं।
• क्या है मामला?
करणी सेना के प्रदर्शनकारी पैसे लेकर आरोपी को बचाने का आरोप लगाकर थाने का घेराव करने पहुंचे थे। आरोप था कि पुलिस ने एक ठगी के मामले में पैसा लेकर आरोपी को बचाया है। इसी सिलसिले में करणी सेना के जिलाध्यक्ष सुनील सिंह राजपूत के नेतृत्व में कार्यकर्ता सिटी कोतवाली थाने के बाहर प्रदर्शन करने पहुंच गए। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी बहस हुई, जिसके बाद पुलिस ने बल प्रयोग किया पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछारें, आंसू गैस के गोले और लाठियां चलाईं। पुलिस ने इस मामले में करणी सेना जिलाध्यक्ष सुनील सिंह राजपूत के खिलाफ शांति भंग करने का मामला दर्ज किया और जेल भेज दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जीवन सिंह शेरपुर समेत 50 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। सुनील राजपूत ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने ठगी के मामले में ढाई लाख रुपए लेकर आरोपी को बचाया।
• प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मामले को नही दिया तूल
हरदा में करणी सेना पर हुए हमले पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने ज्यादा तूल नही दिया। सिर्फ बयानबाजी पर मामले को शांत कर दिया। जबकि यह बहुत बड़ा मुददा था। पुलिस प्रशासन की बर्बरता और हिंसा को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। यहां पर जीतू पटवारी की काबिलियत और मंशा पर भी प्रश्नचिंह लगता है। प्रदेश के एक सक्रिय संगठन पर हमला हो जाता है और सैंकड़ों लोगों को निशाना बनाया जाता है लेकिन मजबूत विपक्ष सिर्फ तमाशबीन बनकर देखता रहता है। यह विपक्ष की विफलता है। विपक्ष का काम सत्ता पक्ष को अनैतिक मुददों पर घेरना होता है। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। करणी सेना पूरे प्रदेश में प्रदर्शन कर रही है, विरोध कर रही है पर प्रदेश का विपक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में केवल तमाशा देख रहा है।
• क्या है करणी सेना?
करणी सेना कोई राजनीतिक संगठन नहीं है, लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से इसे लुभाने की कोशिशें लगातार होती रही हैं। राजस्थान सहित कई राज्यों में राजपूत बहुल वाले इलाकों में इसका प्रभाव देखा जाता है। मार्च 2023 में संगठन के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी के निधन के बाद भी यह संगठन सक्रिय बना हुआ है और विभिन्न राज्यों में इसका विस्तार जारी है। करणी सेना तब सबसे अधिक चर्चा में आई जब 2018 में संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के विरोध में इसने राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया। करणी सेना को एक साहसी और निडर संगठन माना जाता है। हिंदी भाषी राज्यों में इस संगठन का काफी प्रभाव है। जो हिंदुत्ववादी विचारधारा को मानता है।
• दिग्विजय सिंह ने दिखाई तत्परता, सरकार को कठघरे में खड़ा किया
हरदा में पुलिस और करणी सेना के बीच हुए विवाद पर दिग्विजय सिंह ने जमकर राज्य सरकार पर निशाना साधा है। दिग्विजय सिंह ने एसपी और कलेक्टर का ट्रांसफर कराने की मांग की है। बीजेपी की राजपूत लॉबी इस मामले में समाज का समर्थन कर रही है। हरदा में राजपूत समाज और पुलिस के आमने-सामने आने के मामले के बाद यहां पहुंचे कांग्रेस के सीनियर लीडर दिग्विजय सिंह ने स्थानीय प्रशासन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पुलिस ने एक बड़े व्यापारी को बचाने के लिए ऐसे लोगों को टारगेट किया, जिनका कोई अपराध नहीं था। क्या एक जगह जमा होना अपराध है? यही नहीं दिग्विजय सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने जाति और नाम पूछकर लोगों को निशाने पर लिया। आरोप लगाया कि राजपूत समाज के लोगों के वाहनों के साथ तोड़फोड़ की।
हरदा में करणी सेना के साथ जो कुछ हुआ है वह प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है। क्योंकि हक की आवाज उठाना कोई गुनाह नहीं है। लेकिन हरदा में तो यही हुआ। वहीं बात विपक्ष की बात करें तो वह बिल्कुल विपक्ष की भूमिका को निष्क्रिय माना जा सकता है। तमाम नेता केवल बयानबाजी तक सीमित रहे। केवल दिग्विजय सिंह ने मामले को जगह-जगह जाकर उठाया। यहां कांग्रेस की बड़ी चूक हो रही है। कांग्रेस चाहती तो इस मामले को बड़े स्तर पर उठा सकती थी। खासकर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने तो पूरी तरह से निष्क्रियता दिखाई। इसी जगह पर बीजेपी होती तो पूरे प्रदेश में हल्ला मचा देती और सरकार को मुसीबत में डाल देती। लेकिन लगता है कि जीतू पटवारी बीजेपी के पैरलर चल रहे हैं और सिर्फ औपचारिकता निभा रहे हैं। प्रदेश में और भी कई मुददे आये हैं जब भी यही देखा गया है कि जीतू पटवारी और उमंग सिंघार ने पूरी ताकत के साथ नही उठाये। ऐसे में तो सरकार को तो कुछ फर्क ही नही पड़ेगा।