--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
■मध्यप्रदेश भाजपा को मिला नया प्रदेशाध्यक्ष, हेमंत खंडेलवाल की नियुक्ति से संगठन में लौटी ऊर्जा
■क्या पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी, संगठन के भीतर के असंतोष, क्षेत्रीय असमानता, पद और टिकट वितरण जैसे विषयों पर संतुलन साध पायेंगे हेमंत खंडेलवाल?
मध्यप्रदेश भाजपा में लंबे समय से प्रतिक्षारत प्रदेश अध्यक्ष पद पर आखिरकार निर्णय हो ही गया। पार्टी नेतृत्व ने हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी है। खंडेलवाल की नियुक्ति को लेकर बीते कई दिनों से चर्चाओं का दौर जारी था। उनका नाम संगठन और राष्ट्रीय नेतृत्व के स्तर पर मजबूत दावेदारों में गिना जा रहा था। खंडेलवाल वर्तमान में आदिवासी क्षेत्र से विधायक हैं और पार्टी के प्रति उनके समर्पण, लंबे राजनीतिक अनुभव, क्षेत्रीय समीकरण तथा संगठन क्षमता को देखते हुए यह नियुक्ति तय मानी जा रही थी। प्रदेश भाजपा कार्यालय में जैसे ही उनके नाम की घोषणा हुई, कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ गई। खंडेलवाल ने भी कहा कि वे पार्टी के विश्वास पर खरा उतरने का हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा पार्टी ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, मैं उसे पूरी निष्ठा से निभाऊंगा। कार्यकर्ताओं का सम्मान और संगठन का विस्तार ही मेरी पहली प्राथमिकता रहेगी।
• वर्ष 2028 विधानसभा चुनाव की रणनीति होगी चुनौतीपूर्ण
प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी हेमंत खंडेलवाल के कंधों पर 2028 के विधानसभा चुनाव की रणनीति को लेकर होगी। भाजपा की रणनीति हमेशा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के सामंजस्य पर टिकी रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व को मजबूत करते हुए उन्हें कार्यकर्ताओं की नाराजगी, संगठन के भीतर के असंतोष, क्षेत्रीय असमानता, पद और टिकट वितरण जैसे कई विषयों पर संतुलन साधना होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2028 का चुनाव कांग्रेस के लिए भी अस्तित्व की लड़ाई जैसा होगा, ऐसे में भाजपा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। खंडेलवाल को बूथ स्तर तक संगठन को और मजबूत करना होगा। ‘बूथ जीता तो चुनाव जीता’ का मंत्र उनका भी मार्गदर्शन करेगा, लेकिन यह काम कहने में जितना आसान है, उतना करने में नहीं।
• नगरीय निकाय और नगर पालिका परिषद चुनाव में दिखानी होगी सूझबूझ
प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर खंडेलवाल के सामने निकटतम चुनौती नगरीय निकाय और नगर पालिका परिषद चुनाव होंगे। यह चुनाव सीधे-सीधे कार्यकर्ताओं की नाराजगी और जनता के मूड को दर्शाते हैं। टिकट वितरण में कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं, संगठन की अनुशासन नीति और जनता की पसंद का संतुलन बिठाना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता। पूर्व के अनुभव बताते हैं कि नगरीय निकाय चुनावों में हुए निर्णय ही विधानसभा चुनावों के रुझान तय करते हैं। हाल ही में कई जिलों में भाजपा नेताओं ने खुलेआम पार्टी प्रत्याशी के विरोध में काम किया था। खंडेलवाल को ऐसे असंतुष्ट नेताओं को भी साधना होगा।
• जिला अध्यक्ष से लेकर संगठन स्तर पर सही व्यक्ति का चयन जरूरी
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर खंडेलवाल के सामने सबसे बड़ी परीक्षा जिला अध्यक्षों की नियुक्ति और संगठन में सही व्यक्ति को सही जिम्मेदारी देने की होगी। पूर्व के अनुभव बताते हैं कि जिला अध्यक्ष संगठन का आधार स्तंभ होता है। यदि यहां गलत व्यक्ति बैठा तो संगठनात्मक काम ठप हो जाते हैं। यही नहीं, विधानसभा और लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी चयन से पहले जिलाध्यक्षों की राय अहम होती है। खंडेलवाल को ऐसे लोगों को चुनना होगा, जो संगठन के प्रति समर्पित हों, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर उठकर पार्टी हित में काम करें और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चल सकें। संगठन में गुटबाजी, असंतोष और अंदरूनी संघर्ष भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती रही है।
• राजनीतिक अनुभव देगा प्रदेश भाजपा को नई उड़ान
हेमंत खंडेलवाल का राजनीतिक जीवन बेहद समृद्ध रहा है। वे पूर्व सांसद स्व. विजय कुमार खंडेलवाल के पुत्र हैं। परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ उन्होंने स्वयं भी जमीनी स्तर पर संगठन में लंबे समय तक कार्य किया है। छात्र राजनीति से लेकर विधानसभा चुनाव तक उनका सफर संघर्ष से भरा रहा है। संगठन की कार्य पद्धति, कार्यकर्ताओं के मनोविज्ञान और वरिष्ठ नेताओं की कार्यशैली पर उनकी मजबूत पकड़ है। यही अनुभव प्रदेश भाजपा के लिए 2028 के मिशन में निर्णायक साबित हो सकता है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि उनकी नियुक्ति से संगठनात्मक संतुलन भी बेहतर होगा। पूर्व अध्यक्ष वीडी शर्मा के लंबे कार्यकाल के बाद प्रदेश भाजपा को ऐसे चेहरे की तलाश थी, जो कार्यकर्ताओं के बीच सहज स्वीकार्य हो और प्रदेश तथा दिल्ली, दोनों जगह के नेताओं के साथ सामंजस्य बैठा सके।
• आदिवासी क्षेत्र से विधायक होने का मिला लाभ
हेमंत खंडेलवाल वर्तमान में मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से विधायक हैं। भाजपा नेतृत्व ने आदिवासी समुदाय में पैठ मजबूत करने की दिशा में यह बड़ा कदम उठाया है। जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश में लगभग 21 प्रतिशत आदिवासी आबादी है, जो विधानसभा की 47 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है। हाल के चुनावों में कांग्रेस ने इन्हीं क्षेत्रों में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। ऐसे में खंडेलवाल की नियुक्ति से पार्टी को आगामी चुनावों में नया समीकरण साधने में मदद मिलेगी।
राजनीति में कहा जाता है कि नेतृत्व वही सफल होता है, जो हर परिस्थिति में अपने धैर्य और समझदारी से फैसले ले। खंडेलवाल के पास समय भी है और अवसर भी। पार्टी ने उन्हें ऐसे समय में प्रदेशाध्यक्ष बनाया है, जब भाजपा सत्ता में है और केंद्र तथा प्रदेश, दोनों जगह मजबूत नेतृत्व मौजूद है। यदि खंडेलवाल टिकट वितरण, संगठन में समन्वय, कार्यकर्ता सम्मान और चुनावी रणनीति में सफलता हासिल कर पाते हैं तो वे प्रदेश भाजपा में लंबी रेस का घोड़ा साबित हो सकते हैं। इससे न केवल उनका कद बढ़ेगा, बल्कि संगठन में उनकी स्वीकार्यता भी मजबूत होगी। प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता भी मानते हैं कि उनकी नियुक्ति कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करेगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि हेमंत खंडेलवाल अपने कार्यकाल की शुरुआत किन प्राथमिकताओं से करते हैं, कौन से निर्णय लेते हैं और किस तरह संगठन में सामंजस्य बैठाकर मिशन 2028 को आगे बढ़ाते हैं।