कैंसर की बीमारी को मात देकर सीता बनी आइकॉन



--प्रदीप फुटेला,
रुद्रपुर - उत्तराखंड, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● एक पैर कट जाने के बावजूद नही हारी हिम्मत

● एक पैर से ही बनी नेपाल की सफल डांसर जीते देश विदेश में कई अवॉर्ड

सीता सुबेदी नेपाल के तराई क्षेत्र में स्थित चितवन जिले में पली-बढ़ी। अपने परिवार में सबसे बड़ी बेटी के रूप में, उसने अपनी सबसे जरूरी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए डांसर बनने के अपने सपने को ताक पर रख दिया। सीता का कहना था कि "मैं अकादमिक रूप से नृत्य करना चाहती थी, लेकिन मेरे माता-पिता उस समय इसे समझ नहीं पाए"। छोटी उम्र में ही कैंसर हो गया था तथा एक पैर कट गया था, और उसका सपना टूटने की स्थिति में आ गया लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी।

"कुछ लोगों के प्रोत्साहन के माध्यम से, मैंने सुधा चंद्रन जैसी नर्तकियों के बारे में सुना, जो एक पैर से नृत्य करना जारी रखती हैं,"। "मुझे तब दृढ़ विश्वास था कि मैं अभी भी नृत्य कर सकती हूं।" सीता शिक्षा व्यवस्था में सुधार की वकालत करती हैं। उनका मानना ​​है कि सभी शिक्षार्थियों को पाठ्यक्रम और विश्वविद्यालयों तक पहुंचने में सक्षम होना चाहिए और सरकारों को सक्षम वातावरण बनाना चाहिए - उस भेदभाव से मुक्त जिसका उन्होंने कभी सामना किया था।

सीता ने बताया कि"मैंने कत्थक सीखना शुरू किया क्योंकि मेरा मानना ​​था कि यह मेरे शरीर के लिए बेहतर है, लेकिन मुझे इसे इन संस्थानों के बाहर करना पड़ा, वह ज़्यादा दर्द पहुँचाता है"। किसी अन्य व्यक्ति को अकादमिक रूप से नृत्य करने के अपने सपने को हासिल करने के लिए समान कठिनाइयों से नहीं गुजरना चाहिए,” वह आगे कहती हैं। "ये कठिन था। मैंने एक साल से अधिक समय तक सिर्फ ततकार (फुटवर्क) का अभ्यास किया"। “कथक का अभ्यास करने पर पुनर्विचार करने के लिए पूरे समय गुरुओं या शिक्षकों का दबाव था। उन्होंने महसूस किया कि डांस करने के लिए मुझे दोनों पैरों की जरूरत है और मेरी हरकतें शास्त्र के खिलाफ गईं।” भारत में इलाहाबाद की प्रयाग संगीत समिति से संबद्ध ललितपुर के कलानिधि इंदिरा संगीत महाविद्यालय में सीता अपने गुरु, रवि राणा मागर से मिलीं। वह कहती हैं, 'मैं आज जो कुछ भी हूं उनकी और उनकी शिक्षाओं की वजह से हूं।' जबकि कई लोगों ने अपने शिष्य में गुरु के विश्वास को चुनौती दी, लेकिन इससे उनका संकल्प नहीं डिगा। “जब मैंने यहां पहली बार घुंघरू पहने, तो मुझे लगा कि घुंघरू मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं”। अब 150 पीतल की घंटियों के साथ एक जोड़ी पहनती हूँ और एक स्थानीय अकादमी में नृत्य सिखाती हूँ।

वह कहती हैं कि हर दिन उनके सपने के करीब होना उन्हें याद दिलाता है कि वह वर्षों तक कुछ भी छोड़ सकती हैं लेकिन अपने नृत्य के प्रति अफने प्यार को कभी नहीं छोड़ सकतीं। अक्टूबर 2019 में दक्षिण कोरिया के इक्सान शहर मे "वन वर्ल्ड वन फेमिली" फेस्टिबल मे नेपाल की तरफ से प्रतिनिधित्व किया। इस कार्यक्रम मे 26 देशो ने अपने अपने कला और संस्कृति के लिए भाग लिया था।

जब मैं 12 साल की थी उस समय मेरे पैर में कैंसर हो गया काफी इलाज किया लेकिन डॉक्टर ने पैर काटने का निर्णय लिया एक बार तो लगा अब मेरा कैरियर समाप्त हो गया लेकिन मैंने अपने अंदर के हुनर को मरने नही दिया तथा संघर्ष करने का फैसला किया जिसमें मेरी जीत भी हुई। अब मैं 35 वर्ष की उम्र में भी इस क्षेत्र में सक्रिय हूँ। मैंने दक्षिण कोरिया में विभिन्न चरणों में नेपाल का प्रतिनिधित्व किया। प्रवासी अरिरंग सांस्कृतिक महोत्सव (एमएएमएफ) दक्षिण कोरिया में बौद्ध अनुष्ठान "सोदास लास्य नृत्य" नेपाल बौद्ध परिवार के लिए। अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस 2022 (3 दिसंबर 2022 को) नेपाल का प्रतिनिधित्व किया है। यह एक "फूल उत्सव" था जिसका नारा था "बियॉन्ड द लिमिट"। हाल ही में मैंने "सत्यम शिवम सुंदरम" बैंड के रूप में एक गैलेक्सी उत्कृष्टता पुरस्कार का प्रदर्शन किया। फिर से हम बड़े मंच "नेपाल पर्यटन महोत्सव / कॉन्क्लेव" का प्रदर्शन करते हैं जो पर्यटन वर्ष मनाने के लिए काठमांडू दरबार स्क्वायर बैसाख 1 या 2 में आयोजित किया जाता है। मैं सरकार के पर्यटन विकास कार्यक्रम के लिए प्रदर्शन करके बहुत धन्य महसूस कर रही हूं। अभी 12 अप्रैल को मुझे ग्लैक्सी एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। सीता का कहना है कि मेरा एक सपना है। कला के माध्यम से समाज में सकारात्मक उर्जा को शिक्षा के माध्यम से आगे करना। "सीता सुवेदी क्लासिक नेपाल फाउंडेशन" के माध्यम से इसे आगे बढ़ाना चाहती हूँ।

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