--के. विक्रम राव,
अध्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
एक 27 साल के नवविवाहित दलित युवक बिल्लुपुरम नागराज की हैदराबाद के सरुरनगर राजमार्ग पर (4 मई 2022) सिर कूटकर हत्या कर दी गयी। स्कूटर पर बैठी उसकी नयी नवेली बीवी 25-वर्षीया सैय्यद अस्रीन सुलताना की कातर चीखें सुनकर भी कोई राहगीर मदद में नहीं आया। हत्यारे भाग गये। उसके सगे भाई सैय्यद मोबीन अहमद और जीजा मो. मसूद अहमद हैं। फिलवक्त दोनों हिरासत में हैं। इस जघन्य अंतर्धार्मिक हादसे पर लोकल सांसद मियां असदुद्दीन ओवैसी ने कहा : ''इस्लाम में कत्ल करना गुनाह है।'' बस! दलित-मुस्लिम निकाह पर कुछ भी नहीं बोले। राष्ट्रीय सियासी विकल्प के रोल में उभर रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने कहा : ''कानून अपना काम करेगा।'' बड़ा उपकार कर दिया। हैदराबाद में विशाल मुस्लिम वोट बैंक जो है। दलित मसीहा बहन कुमारी सुश्री मायावती अविचलित रहीं। इसीलिये शायद कि उनके माल एवेन्यू (लखनऊ) आवास से घटनास्थल तेरह सौ किलोमीटर दूर है। स्थानीयता नहीं है।
युवा विधवा अस्रीन ने कहा: ''मैं मैके नहीं जाउंगी। अपनी दलित वृद्धा सास की सेवा में जीवन गुजारुंगी।'' गांव में बाल्यावस्था से ही नागराज के पूरे परिवार को अस्रीन जानती थी। स्कूल में नागराज के वह साथ थी। तब दोनों को मजहब की क्रूरता का आभास नहीं हुआ था।
सड़क पर पड़े पति के शव पर रोती अस्रीन को याद आया किताबों का पैकेट मोटर साइकिल में ही रखा है। नागराज ने बीती शाम उसके प्रतियोगात्मक परीक्षाओं की तैयारी के लिये खरीदी थी। उसके मियां ने उसको बताया था कि वह सरकारी अफसर का शौहर बनना चाहता है। अभी वह स्टेट बैंक में कार्यरत है। अस्रीन अपने सगे भाई और जीजा के हाथों को पकड़ कर इल्तिजा करती रहीं : ''मुझे मार डालो। मैंने शादी कर ली है। शौहर नागराज को छोड़ दो।'' मगर विगत माहभर रोजा रखने वाले, बीती शाम को ईद मनाने वाले, यह दोनों शैतान नहीं पसीजे। शायद यजीद भी लजा गया होगा!
इस युगल की शादी भी दिलचस्प है। अस्रीन ने आर्यसमाज मंदिर में हिन्दू धर्म अपनाया था। तब विवाह संस्कार हुआ। हालांकि नागराज कलमा पढ़ने के लिये तैयार था। प्रेम ऊपर है धर्म से। अस्रीन ने इसके लिये मना कर दिया था। अवश्यक नहीं समझा। सवाल था कि क्या एक छत तले इबादत और पूजा साथ-साथ नहीं हो सकते हैं? मगर मुद्दा था कि नागराज दलित था। अब अस्रीन के जाहिल कुटुम्ब को कौन समझाये कि एक बार कलमा पढ़ते ही सभी इंसान समान हो जाते है। इस्लाम विश्व का महानतम समतामूलक धर्म है। भले ही मौलाना मोहम्मद हामिद मियां अंसारी अपने को बाकी अंसारियों से काफी ऊंचा तथा ऊपर समझते हो। वे सब जुलाहे हैं। दस साल तक ऐशो आराम से रहे उपराष्ट्रपति का मौज जो उठाया। अपने को निचले वर्ण का नहीं मानते। लगता है कि अब हिन्दुओं के जातिवादी कैंसर से भारतीय मुसलमान भी ग्रस्त हो गये। यदि नागराज विप्र वर्ण का होता तो? कलमा पढ़ लेता तो?
मगर पीड़ा होती है कि यह त्रासदी हैदराबाद जैसे इश्कप्रधान नगर में घटी। तेलुगुभाषियों के गौरवशाली इतिहास में हैदराबाद श्रृंगार के लिये जाना जाता है। मैं अरसे तक यही रहां हूं।
आज भले ही हैदराबाद दंगाग्रस्त हो गया हो, पर एक दौर था जब यह अलबेला शहर था। यह एक रिझावना रंगरूप का चमन रहा, जिसमें नफीस लखनऊ की जवानी है, तवारीखी दिल्ली की रवानी भी। देश का पांचवा नम्बरवाला यह शहर कैसे बना, यह एक रूमानी दास्तां है। उर्दू और तेलुगू के माने हुए कवि नवाबजादा मोहम्मद कुली कुतुबशाह का तैलंग तरूणी भाग्यवती से इश्क हो गया। मूसा नदी को घोड़े से पार कर वे अपनी महबूबा से मिलने जाते थे। रियासती गद्दी पर नवाब साहब के महल में आते ही भाग्यमती हैदरमहल बनी। प्रेम की निशानी में नये शहर का नाम भाग्यनगर, बाद में हैदराबाद रखा गया। चार मीनारवाले इस स्थान को इतिहासकार फरिश्ता ने हिन्दुस्तान का सुन्दरतम नगर कहा था।
तुलना में जहां मुम्बई और कलकत्ता फीके लगते हैं, हैदराबाद तेलंगाना का नखलिस्तान है। पड़ोस से सटे सिकन्दराबाद के साथ यह जुड़वां शहर एक मिसाल है। दोनों शहरों में फासला रहा नहीं, फिर भी दो विश्वविद्यालय, दो भाषाएं, दो सम्प्रदाय और दो औषधि प्रणालियां हैं। लिबास भी भिन्न है। एक में रंगीन अचकन और पायजामा है, तो दूसरे में धोती व कुर्ता। इस प्रथम भाषावार राज्य ने भाषा को वैमनस्य का कारण कभी नहीं बनाया। प्रथम आन्ध्र प्रदेश विधान सभा में छह भाषाएं मान्य थीं: उर्दू, हिन्दी, मराठी, कन्नड, अंग्रेजी और तेलुगू। इनके अलावा तमिल, मलयालम, पंजाबी, फारसी और तुर्की भी बोली जाती रही। कई दफ़ा मराठी साहित्य सम्मेलन हैदराबाद में सम्पन्न हुआ।
अपनी आंखों के सामने पति की हत्या पर अस्रीन ने अपनी शिकायत में राहगीरों को क्रूर उदासीनता और उपेक्षा पर ग्लानि तथा आक्रोश व्यक्त किया। तमाशबीन लोग मोबाइल से हत्या की फोटो और वीडियो बना रहे थे। तब दो मुस्तण्डे एक दुबले दलित को कूट रहे है। इन सबका पुरुषत्व और शौर्य कहां गया? अगर कहीं युवती अस्रीन के बजाये आशा होती और पति बजाये नागराज के नईम खां होता तो?