क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव में अस्तित्व खोने की कगार पर खड़ी बिहार में कांग्रेस



--अभिजीत पाण्डेय
पटना - बिहार, इंडिया इनसाइड न्यूज।

बिहार जैसे हिंदी पट्टी राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव में कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व को लेकर जद्दोजहद कर रही है। बिहार में कांग्रेस को लेकर विशेष तथ्य यह है कि स्वतंत्रता के पश्चात और विभाजित बिहार में कांग्रेस के सबसे अधिक सांसद हुआ करते थे, लेकिन वर्ष 1977 में पांव पूरी तरह उखड़ गए। इसके बाद 1984 में बाउंस बैक किया, लेकिन फिर ऐसे उखड़े कि लगभग साफ ही हो गए।

वर्ष 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तब की 44 सीटों में से 36 सीटों पर सफलता प्राप्त की थी। इसके बाद 1957 के अविभाजित बिहार के 45 सीटों में 34 सीटों पर सफलता मिली। वर्ष 1962 की तीसरी लोकसभा चुनाव में 53 सीटों में 41 सीटों पर जीत मिली। वर्ष 1967 के चौथी लोकसभा में 53 सीटों में कांग्रेस घटी और 38 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। वर्ष 1971 में पांचवी लोकसभा चुनाव में 53 सीटों में 40 सीटें प्राप्त कर लीं, लेकिन, कांग्रेस का इसके बाद बहुत बुरा समय आ गया।

छठी लोकसभा में बिहार में कांग्रेस वर्ष 1977 में 0 सीट पर आ गई, तब बिहार के 54 लोकसभा सीटें हो चुकी थी। इसके बाद 1980 में सातवीं लोकसभा चुनाव में 54 लोकसभा सीटों में 32 सीटें जीतने में सफल रही। फिर 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 की आठवीं लोकसभा में 54 में कांग्रेस ने 48 सीटें जीत ली। लेकिन, अपनी इस ऊंचाई को कांग्रेस बाद में बरकरार नहीं रख पाई और लगातार धरातल की ओर गिरती गई। वर्ष 1989 के बाद जब पिछड़ी राजनीति का उभार हुआ तो 9वीं लोकसभा में बिहार की 54 सीटों में से कांग्रेस चार सीटों पर आ गई। बिहार में नालंदा, किशनगंज और झारखंड का सिंहभूम और लोहरदगा सीट ही कांग्रेस के पास रही।

वर्ष 1990 में लालू प्रसाद के दौर में 1991 में दसवीं लोकसभा का आम चुनाव हुआ। तब बेगूसराय सीट से महज कांग्रेस से कृष्णा शाही ही जीत पाईं। 11वीं लोकसभा चुनाव में 1996 में बिहार में कटिहार से तारिक अनवर और झारखंड से राजमहल सीट पर थॉमस हांसदा ही जीत पाए। वर्ष 1998 में 12वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार से 5 सीटें मिलीं, जिनमें मधुबनी, बेगूसराय, कटिहार के साथ सिंहभूम और लोहरदगा सीटों पर जीत हासिल हुई। वर्ष 1999 की 13वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने औरंगाबाद, बेगूसराय, राजमहल और कोडरमा सीटें जीतीं।

वर्ष 2000 में जब झारखंड का गठन हुआ तो 14 सीटें झारखंड में चली गईं और बिहार की 40 लोकसभा सीटें हो गईं। इसके बाद वर्ष 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव में मधुबनी, सासाराम, औरंगाबाद की सीटें जीत पाई। 15वीं लोकसभा चुनाव में 2009 में किशनगंज में मोहम्मद असरार उल हक और सासाराम से मीरा कुमार ने सफलता दिलाई। इसके बाद 16वीं लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस को किशनगंज से मोहम्मद असरार उल हक और सुपौल से रंजीत रंजन ने जीत दिलाई। फिर 17वीं लोकसभा 2019 में कांग्रेस का एकमात्र सांसद किशनगंज से मो जावेद रह गए।

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