---राज खन्ना, वरिष्ठ पत्रकार।
जीएसटी में राहत की घोषणाओं का संदेश साफ है। मोदी-शाह की जोड़ी को खतरे की घंटी सुनाई देने लगी है। देश भर के व्यापारियों को खासतौर पर गुजरात के व्यापारियों का आभार जताना चाहिए। उन्होंने जीएसटी लागू होने के साथ ही इसकी खामियों के ख़िलाफ़ जबरदस्त प्रतिरोध प्रारम्भ कर दिया था। गुजरात चुनाव ने उनका काम आसान किया। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव की भी मजबूरी थी। सत्ता का अहंकार अभी टूटा नहीं है। दरका जरूर है। हालांकि गुजरात की जीत हुई तो फिर पुराने तेवर वापस आ सकते हैं। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि 2018 में कई राज्यों में चुनाव हैं। फिर 2019 पास होगा। हम अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली के शुक्रगुजार हैं, जिसके चलते नजदीक आते चुनाव सत्ता का गुरूर कम करते हैं। ये चुनाव कम वक्त के लिए ही सही सत्ताधारियों को जनता की आवाज सुनने के लिए मजबूर करते हैं। विपक्षियों को भी जनता के गुस्से की आग में घी डालने का मौका देते हैं।टैक्स मामलों में विरोध का कोई सुर उठते ही उसे टैक्स चोरी की कोशिश से जोड़ दिया जाता है। फौरी जबाब यही मिलता है कि चोरी पर प्रहार के चलते यह खीझ है। जी एस टी लागू करने की हड़बड़ाहट से लेकर अब तक उसे लेकर बीते दुर्दिन इसका सबूत हैं। मोदी राज में अकेले अरुण जेटली को जीएसटी को दुःस्वप्न बना देने का जिम्मेदार ठहराना कुछ अधिक होगा। लेकिन इस छीछालेदर के वह प्रमुख किरदार हैं। जीएसटी का ड्रॉफ्ट कानून सामने आते ही कानून के जानकारों और व्यापारिक संगठनों के सुझावों-आपत्तियों की अनदेखी में जेटली की सबसे बड़ी भूमिका रही है। बाजारों में मची अफ़रातफ़री और रोजी-रोजगार को हुआ भारी नुकसान इसी जिद की देन है। जीएसटी को लागू करने की करने की जल्दबाजी का किस्सा पुराना पड़ चुका है। उसके दोषपूर्ण नेटवर्क के सुधार और टुकड़ों में राहत सब सुधार देंगे इसकी जल्दी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। पटरी पर गाड़ी आने तक हुए नुक्सान की भरपाई शायद ही मुमकिन हो। जी एस टी की अनुपालन प्रक्रिया स्थानीय सच्चाइयों की अनदेखी करती है। सम्पूर्ण अनुपालन और यहाँ तक कि कर अदायगी की ऑनलाइन व्यवस्था करते समय न ही ढांचागत सुविधाओं और न ही उन्हें अपनाने की व्यापारियों की कूबत को समझा गया। जीएसटी काउन्सिल में राज्यों की हिस्सेदारी के बाद भी इसे लागू करते समय सिर्फ केंद्र और उसकी मशीनरी की चली। ताजुब्ब की बात यह है कि जेटली ने अपने ही अधीन चलने वाले आयकर विभाग से भी ऑनलाइन अनुपालन को लेकर फीडबैक लेना जरूरी नहीं समझा। आयकर विभाग पिछले एक दशक से करदाताओं से ऑनलाइन अनुपालन छोटे-छोटे चरणों में आगे बढ़ा रहा है। वहां भी यह कार्य अभी शतप्रतिशत पूरा नहीं हुआ है। वहां अनेक मामलों में अभी भी मैनुअल कार्य चल रहा है। वहां आप फोटोस्टेट की दुकान चालान खरीदकर बैंक में अपने चेक से जमा कर सकते हैं। जी एस टी में यह चालान भी डीलर के नम्बर-बैंक सहित ऑनलाइन जेनरेट होगा। आपके शहर में घंटों बिजली न आये तो उस दिन टैक्स जमा करने का इरादा मुल्तवी रखें। खुद या बैंक की वजह से उस दिन काम न बने तो ब्याज-लेटफीस सहित दूसरे चालान के लिए फिर पुरानी प्रक्रिया दोहराइए। आयकर कानून दो करोड़ तक के सालाना टर्नओवर के डीलर्स की आठ फीसद मुनाफा दिखाने पर हिसाब किताब की जटिलताओं से मुक्ति देता है। ट्रक और अन्य कुछ मालवाहक वाहनों के सम्बन्ध में तय आमदनी प्रदर्शन पर हिसाब की जटिलताओं से छूट है। जीएसटी ने इसकी शुरुआत पचास लाख से की और देश भर में मची हायतौबा के बाद भी कम्पोजिशन स्कीम डेढ़ करोड़ तक पहुंच पाई। जीएसटी लागू करते समय राज्य सरकारों के अनुभवों का लाभ न उठाया जाना ऐसी चूक है, जिसकी भरपाई में अभी और चुनावों का इन्तजार करना होगा। सरकार को समझना होगा कि टैक्स कानून की जटिलताएं टैक्स चोरी को बढ़ावा देती है।उसे समझना होगा कि इन्हें सरल करना सरकारी खजाने को मालामाल करता है। उत्तर प्रदेश का उदाहरण देखिए। अब राज्य कर ( उसके पहले बिक्री कर, व्यापार कर और वाणिज्य कर) ने 1988-89 में पहली बार ईंट भट्टों के लिए उनकी क्षमता के आधार पर समाधान योजना पेश की। 1988 -89 के सीजन वर्ष में 19 पावे के जिस भट्टे से सरकार ने पन्द्रह हजार वसूले थे। जीएसटी लागू होने के ठीक पहले के सीजन वर्ष 2016-17 में उस क्षमता का भट्ठा सरकार को साढ़े तीन लाख रुपया दे रहा था। 1986-87 में सिविल कांट्रेक्टर के लिए लागू समाधान योजना में सकल भुगतानों पर एक फीसदी की दर से लिया जाने वाला समाधान शुल्क चार फीसदी पहुंच चुका है। अब जीएसटी में पूरी ठेकेदारी ठप है।उनसे जुड़े तमाम मजदूर-कारीगर बेरोजगार हैं। क्यों? ऑनलाइन टेंडर के तमाम दावों के बीच फंड रिलीज होने से लेकर विभिन्न स्तर की कमीशनखोरी भुगतान-लागत के अंतराल को बढ़ा रही है। इस बंदरबांट का हिसाब लिया जाएगा तो जीएसटी भी गर्दन पकड़ेगी और बीच की अदृश्य रकम पर आयकर अलग से बरबाद कर देगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी प्रकार बिजली के ठेकों, टेंट , बुलियन कारोबारियों और खाण्डसारी उद्योग आदि के लिए तमाम समाधान योजनाएं पेश करके एक ओर उससे जुड़े डीलर्स का व्यापार आसान किया और साथ ही अपना राजस्व बढ़ाया। हाल की जीएसटी की राहतों को समझिये। इसमें सुधार तभी शुरू हुआ जब राज्यों के वित्तमंत्रियों की समिति की सिफारिशें केंद्र को समझ आना शुरू हुईँ । राहत अभी क्यों? विपक्षी ही क्यों, जिनका राजनीति से सीधा वास्ता नहीं वह भी एकराय है कि गृह राज्य गुजरात की टेढ़ी नजर ने कस बल ढीले किए। यानी चुनाव पास हो तो सत्ता सुगबुगाहट भी सुन लेती है। तय है कि मोदी सरकार की अर्थनीतियां इस सुगबुगाहट को 2019 करीब आने तक शोर में बदलने में मददगार होंगी !