--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।
● 06 हजार करोड़ रुपये से शुरू हुए प्रोजेक्ट की राशि को भाजपा नेताओं ने पहुंचाया साढ़े आठ हजार करोड़ के पार
● काम की धीमी रफ्तार और गुणवत्तापूर्ण कार्य न होने से अभी मेट्रो की सवारी का करना पड़ सकता है इंतजार
अपनी दूरदृष्टि से मध्यप्रदेश के विकास की धुरी को तेज धार देने की परिकल्पना करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ द्वारा बोए गए बीज आज पेड़ बनकर फल देने की स्थिति में आ गये हैं। लेकिन अपने सौम्य और सरल स्वभाव के लिये विशिष्ट पहचान रखने वाले कमलनाथ ने कभी भी अपने कार्यों को लेकर गुरूर नहीं किया। फिर बात चाहे मध्यप्रदेश में 18 महीने तक रहकर विकास के कार्यों की बुनियाद खड़ी करने की हो या फिर केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए प्रदेश के विकास के लिये योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए फंड रिलीज करने की। बल्कि भाजपा नेताओं में देखा जाये तो यह बात बिल्कुल उलटी दिखाई देती है। वे काम कम करते हैं और काम का ढिंढोरा ऐसे पीटते हैं, जैसे मानो प्रदेश का विकास इनके बिना संभव ही नहीं था। ऐसा ही कुछ देखने को मिला मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के मेट्रो प्रोजेक्ट में। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते हुए खुद इस प्रोजेक्ट में तेजी लाने और शिलान्यास करने के लिये अधिकारियों को निर्देशित किया था। लेकिन कुछ समय बाद जैसे ही कमलनाथ की सरकार गिरी वैसे ही शिवराज सिंह चौहान और भाजपा ने इस पूरे प्रोजेक्ट को अपना बताते हुए पूरा क्रेडिट लेने की योजना बना ली। यही नहीं कमलनाथ ने जिस प्रोजेक्ट को कम बजट में और बेहतर गुणवत्ता के साथ पूरा करने के लिये मंजूरी दी थी, भाजपा नेताओं ने उसी प्रोजेक्ट के बजट को लगभग दोगुना करते हुए गुणवत्ता के सभी मापदंडों को निराधार बताते हुए कार्य पूरा करने की योजना बनाई। विशेषज्ञों के अनुसार प्रोजेक्ट्स की धीमी चाल के साथ ही प्लानिंग और को-ऑर्डिनेशन की कमी की वजह से मेट्रो की लागत 2,500 करोड़ रुपये तक बढ़ चुकी है। यदि प्रोजेक्ट समय से पूरा हो जाता तो मंडीदीप और सीहोर के लिए फंड की कमी नहीं होती।
• इन वजहों से बढ़ी लागत
मेट्रो की लागत बढ़ने के पीछे कई सारी वजह हैं। जिनमें निर्माण सामग्री और लेबर चार्ज महंगा होना है। प्रोजेक्ट में देरी से लोन चुकाने की समय-सीमा भी बढ़ी है। अतिक्रमण आदि से जो काम रुका है, उससे रोज 03 करोड़ रुपये का काम नहीं हो पा रहा है। देरी होने की वजह से प्रोजेक्ट की लागत बढ़ गई है। इस कारण ब्याज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि कमलनाथ ने वर्ष 2019 में भोपाल मेट्रो रेल परियोजना का शिलान्यास किया था। भोपाल मेट्रो के 27 किमी के दो कॉरिडोर होंगे और यह काम दो चरण में करने का निर्णय हुआ था। करीब 06 हजार 941 करोड़ की लागत से भोपाल में मेट्रो प्रोजेक्ट को वर्ष 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था।
• भाजपा क्रेडिट लेने में नहीं हटी पीछे
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव 2023 के ठीक पहले भोपाल में मेट्रो के ट्रायल रन को हरी झंडी दिखाकर क्रेडिट लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शिवराज ने मेट्रो का क्रेडिट लेते हुए कहा था कि हमने गड्ढों वाला मध्य प्रदेश को मेट्रो वाला बनाया है। हालांकि बाद में शिवराज के इस बयान पर काफी विवाद हुआ और कांग्रेस नेताओं ने इसे कमलनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट बताते हुए उसे कांग्रेस और प्रदेश की बड़ी उपलब्धि बताई थी।
• आखिर भाजपा सरकार ने क्यों लेट किया प्रोजेक्ट?
सवाल यह है कि जिस प्रदेश को तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सितंबर 2019 में ही भोपाल के लिए भोज मेट्रो और इंदौर के लिए इंदौर मेट्रो का तोहफा दिया था और दिसंबर 2022 में भोपाल में मेट्रो ट्रेन और अगस्त 2023 में इंदौर में मेट्रो ट्रेन चलनी थी, वह समय पर क्यों नहीं चल सकी। आज जब भोपाल और इंदौर की जनता को मेट्रो ट्रेन का सफर करना था तब उन्हें सिर्फ ट्रायल रन का तमाशा क्यों दिखाया जा रहा है।
यह कमलनाथ ही थे जिन्होंने केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए मध्यप्रदेश के लिए कई नेशनल हाईवे और सड़कों के लिए पैसे स्वीकृत किए। यह कमलनाथ ही थे जिन्होंने स्व. बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्री कार्यकाल में भोपाल मेट्रो की डीपीआर बनाने के लिए धनराशि स्वीकृत की थी। यह कमलनाथ ही थे जिन्होंने मुख्यमंत्री कार्यकाल में मेट्रो ट्रेन का शिलान्यास, मेट्रो ट्रेन के लिए टेक्निकल और मृदा परीक्षण का काम और मेट्रो ट्रेन के लिए कई करोड़ के टेंडर भी स्वीकृत कर दिए थे। राजधानी में चलने वाली मेट्रो रेल जयपुर की मेट्रो रेल जैसी ही होगी, लेकिन वहां 06 कोच की मेट्रो चलती है, यहां तीन की मेट्रो चलेगी। पहला भाग दिसम्बर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था।
• कुल 28 स्टेशन का होना था निर्माण
भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट में एलीवेटेड सेक्शन 26.08 किलोमीटर का होगा। इसमें कुल 28 स्टेशन बनेंगे। अंडर ग्राउंड सेक्शन 1.79 किलोमीटर का रहेगा, जिसमें 02 स्टेशन होंगे। पहला भाग दिसंबर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य था। भोपाल में भी मेट्रो ट्रेन का शेड्यूल दिल्ली की तरह होगा। इसमें कुल 28 सब स्टेशन बनेंगे।
• कुछ ऐसी थी कमलनाथ की परिकल्पना
कमलनाथ की कल्पना ऐसी थी कि जल्द भोपाल एवं इंदौर के लोगों को भी मेट्रो सिटी की तरह परिवहन की सुविधा मिले। इन शहरों का आवागमन सुगम हो। मेट्रो के आने से शहरों की सूरत भी बदले। शायद वह मुख्यमंत्री होते तो अब तक इन शहरों को मेट्रो की सुविधा मिलने लगती। क्योंकि वह मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर काफी गंभीर थे और उनकी प्राथमिकता इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने की थी।