--- लोकेन्द्र सिंह (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
लोकतंत्र और सभ्य समाज में हत्या के लिए किंचित भी स्थान नहीं है। किसी भी व्यक्ति की हत्या मानवता के लिए कलंक है। चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो या फिर लेखक, पत्रकार और राजनीतिक दल का कार्यकर्ता। हत्या और हत्यारों का विरोध ही किया जाना चाहिए। लोकतंत्र किसी भी प्रकार तानाशाही या साम्यवादी शासन व्यवस्था नहीं है, जहाँ विरोधी को खोज-खोज कर खत्म किया जाए। लोकतंत्र में वामपंथी कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या का विरोध ही किया जा सकता है, समर्थन नहीं। किंतु,जिस तरह से लंकेश की हत्या के तुरंत बाद पूरे देश में एक सुर से भाजपा, आरएसएस और हिंदुत्व को हत्यारा ठहराया गया, क्या यह उचित है? यह पत्रकारिता का धर्म तो कतई नहीं है। अनुमान के आधार पर निर्णय सुनाना कहाँ जायज है? पत्रकारों को तथ्यों के प्रकाश में अपने सवाल उछालने चाहिए। पत्रकारों का यह काम नहीं है कि न्यायाधीश बन कर या बिना जाँच-पड़ताल तत्काल किसी मामले में निर्णय सुना दें। आखिर किस आधार पर पत्रकारों ने एक सुर में भाजपा और आरएसएस को लंकेश की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया और देश में राष्ट्रीय विचारधारा के प्रति घृणा का वातावरण बनाने का प्रयास किया? क्या सिर्फ इसलिए कि वह कम्युनिस्टों की घोर समर्थक थीं और स्वयं को कॉमरेड कहती थीं? क्या सिर्फ इसलिए कि गौरी लंकेश अपने फेसबुक-ट्वीटर अकांउट और अपनी पत्रिका 'लंकेश पत्रिके' में ज्यादातर भाजपा, आरएसएस एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लिखती थीं ?
गौरी लंकेश के इस प्रकार लिखने के आधार पर यदि आप मान कर बैठ गए हैं कि उनकी हत्या राष्ट्रीय विचारधारा ने की है, तब आप निपट नासमझ हैं। क्योंकि, ऐसा लिखने-बोलने वाले और भी बहुत लोग हैं, जिनकी लोकप्रियता एवं प्रभाव लंकेश से कहीं अधिक है। एक बात और, मानहानि प्रकरण में लंकेश का दोष सिद्ध होने पर भाजपा तो लोकतंत्र में नैतिक लड़ाई जीत ही गई थी। माननीय न्यायालय ने लंकेश को तथ्यहीन और मानहानिकारक लिखने का दोषी पाते हुए छह माह कारावास की सजा सुनाई थी। वह जमानत पर जेल से बाहर चल रही थीं। भाजपा और आरएसएस के लोग तो लंकेश के कहे-लिखे के बरक्स न्यायालय में मिली अपनी विजय को रख कर उन्हें बार-बार कठघरे में खड़ा कर सकते थे। यदि किसी के पास अपने विरोधी को हर बार झूठा सिद्ध करने का हथियार हो, तब भला वह क्यों बंदूक का इस्तेमाल करेगा? इसलिए हमें अपनी आँखों पर पड़े पर्दे को हटा कर लंकेश की हत्या के दूसरे एंगल भी देखने चाहिए। उन्हें न्याय दिलाना है, उनके कातिलों को पकड़वाना है और उनकी हत्या के वास्तविक कारणों का खुलासा करना है, तब अन्य पहलुओं की पड़ताल करनी ही चाहिए। यदि'हत्या पर सियासत' ही करनी है, तब किसी कुछ और सोचने की जरूरत नहीं।