--के. विक्रम राव,
अघ्यक्ष - इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स।
असम में सभी मदरसे बंद कर दिए जाएंगे, कहा मुख्यमंत्री डॉ हेमंत विश्व शर्मा ने : (18 मार्च 2023 : पायोनियर दैनिक।) कारण? डॉ शर्मा का मानना है कि नए भारत में ये अनावश्यक है। इस सीमावर्ती राज्य को डाक्टरों, इंजीनियरों और अन्य व्यवसायी शिक्षाप्रदों की दरकार है। हालांकि डॉ शर्मा 2014 तक सोनिया-कांग्रेस के नेता रहे थे, मगर इन्हीं के नेतृत्व में भाजपा ने असम में सत्ता हासिल की थी। बाद में उन्होंने ही सोनिया-कांग्रेसियों को “नये मुगल” करार दिया। औरंगजेब को इन्हीं कांग्रेसियों ने संपूर्ण भारत का बादशाह माना था, जबकि पूर्वोत्तर इलाके पूर्णतया स्वाधीन, स्वशासित रहे थे। दस्तावेजी प्रमाण हैं और इतिहास गवाह है कि मुगल बादशाह मोहिउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगीर को असमिया अहोम सेना के सिपाह-सालरे-आजम (बड़फूकन) चाऊ लाचित फुकुनलुंग ने सराईघाट की जंग में (1671) पराजित किया था। तब आमेर के महाराजा जयसिंह के पुत्र राजा रामसिंह को औरंगजेब ने पूर्वोत्तर को मुगल साम्राज्य से मिलाने हेतु बड़ी सेना के साथ भेजा था।
असम में मदरसों पर आरोप है कि वे इस्लामी जेहाद के गढ़ हैं। इसीलिए पिछले वर्ष मोरीगांव (असम) में एक मदरसे पर बुलडोजर चलाया गया था। गत 4 फरवरी 2022 के दिन ही गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया (अब सर्वोच्च न्यायालय में जज हैं) की खंडपीठ ने निर्णय दिया था कि समस्त राज्य-प्रबंधित मदरसों को साधारण विद्यालयों में तब्दील करने वाला (विधानसभा द्वारा दिसम्बर 2020 में पारित) अधिनियम वैध हैं। इस खंडपीठ का निर्णय था कि सेक्युलर गणराज्य में संविधान की धारा 25, 26, 29 तथा 30 के तहत इस अधिनियम द्वारा कोई भी उल्लंघन कतई नहीं हुआ है। न्यायालय का मानना था कि सरकारी शिक्षा संस्थाओं में मजहबी तालीम अवैध है।
एक उदाहरण भी है। यूपी मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ इफ्तिखार अहमद ने एक बैठक में घोषणा की थी कि मदरसों में एनसीआरटी के पाठ्यक्रम लागू किए जाएंगे। (19 जनवरी 2023 को लखनऊ दैनिक की एक रपट)। खुद सुप्रीम कोर्ट ने (14 सितंबर 2022) का एक निर्णय में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा मदरसा सेवा आयोग कानून की धारा 8,10,11,12, को असंवैधानिक ठहराने वाले फैसले को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 30 (1) का उल्लंघन है, जिसमें अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार दिया गया है।
इसी संदर्भ में असम मुख्यमंत्री के मदरसों पर अपनाई गई दृष्टि का विवेचन करें। मदरसों में कुरान की आयातें पढ़ाई जाती हैं। हदीस भी। एक थे अल-रहमान इब्न सरवर अलदाउदी उर्फ अब्बू हुरैरा। वे सुन्नी इस्लाम के (खासकर हदीस) के प्रसिद्ध व्याख्याता थे। तो समीक्षा करें कि कुरान की कुछ आयातों का सेक्यूलर गणराज्य में किशोर छात्रों को पढ़ाना कितना राष्ट्रहित में है? मसलन लिखा है : सूरा आयत 3:85 : इस्लाम के अलावा कोई अन्य धर्म/मजहब स्वीकार नहीं है ! सूरा आयत 3:28 और 9:23 : गैर मुस्लिमों को दोस्त न बनाओ ! सूरा आयत 9:5 : मूर्तिपूजकों को जहां और जैसे पाओ वहां घात लगाकर मार दो! सूरा आयत 21:98 : अल्लाह के सिवाय किसी और को पूजने वाले जहन्नुम का इंधन हैं! सूरा आयत 9:29 : काफिरों को अपमानित कर उनसे जजिया कर लो! सूरा आयत 32:22 : इस्लाम छोड़ने वालों से बदला लो! इत्यादि।
प्रसिद्ध पाकिस्तानी बैरिस्टर लंदनवासी जनाब उमर खालिद ने कहा भी था कि भारत पर इस्लामी आक्रमणों (जिहाद) को ही मदरसों में पढ़ाया जाता है। इससे धार्मिक घृणा व्यापक होती है। अतः भारत में समान शिक्षा कोड रचा जाए। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द वाली गंगा-जमुना तहजीब मजबूत की जाए। याद कीजिए 2009-10 में मनमोहन सिंह वाली कांग्रेस सरकार ने 1138 करोड़ रूपये करीब 21,000 मदरसों को आवंटित किए थे ताकि विज्ञान, गणित, सामाजिक विषय, अंग्रेजी, हिंदी, पढ़ाई जा सके। क्या उपयोग हुआ इस राशि का? अर्थात मदरसों को सेक्युलर बनाना पड़ेगा।
अब कुछ गंभीर और चिंताजनक बिन्दुओं का उल्लेख हो। यूपी शासन द्वारा पंजीकृत मदरसों में कुछ ख्यात संस्थाओं का नाम नहीं है। उदाहरणार्थ देवाबंद का दारुल उलूम, लखनऊ का नदवतुल उलेमा, सहारनपुर का मजाहिर उलूम। (दि हिंदू, 14 सितंबर 2022)। गत कोविड-19 (दिसंबर 2018) में पश्चिम उत्तर प्रदेश के सैकड़ों मदरसों के छात्रों ने टीका नहीं लगवाये। महज अंध विश्वास था। एक बात और यूपी में आज तक अन्य संस्थाओं की भांति मदरसों में आज भी शुक्रवार, न कि रविवार, को अवकाश होता है। क्यों? जवाब चाहिए।