द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी - 'चौमासा'



वाराणसी-उत्तर प्रदेश,
इंडिया इनसाइड न्यूज़।

भारत अध्ययन केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी एवं श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फार ह्यूमन एक्सीलेंस, कलबुरगी, कर्नाटक के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन चतुर्थ सत्र में विषय : प्रकृति का नाम उत्सव : चौमास में वक्ता के रूप में डॉ• ज्योति सिन्हा, स्वतन्त्र लेखक एवं लोक साहित्यकार, जौनपुर से चौमासा पारम्परिक लोकजीवन में श्रम के परिहार का मूल सूत्र है इसमें लोकगीतों के माध्यम से जहाँ विरह है वही संयोग है, चंचलता है, वही खीज भी है इस चार माह में प्रकृत में विशेष परिवर्तन होता रहता है। जब पूरी प्रकृति बिल्कुल धानी दिखाई देती है। इसमें जो गीत मिलते हैं पूरे के पूरे सूत्र वाक्य हैं। कजरी, झूला, देवा गीत आदि के माध्यम से डॉ• सिन्हा ने अपने विषय की प्रस्तुति की। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो• लावण्य कीर्ति सिंह, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा ने मैथिली भाषा में उपस्थित चौमासा के रूप में विद्यापति के पदों में तथा विद्यापति ने चौमासा के रूप में आषाढ़ को प्रथम मास माना है। डॉ• सिंह शास्त्रीय तथा लोक संदर्भ के दिवस की चर्चा की चातुर्मास के विविध पर्व, त्यौहारों के माध्यम से अपनी बात कहीं। इस सत्र की अध्यक्षा लोक साहित्यकार डॉ• विद्या बिन्दु सिंह वक्ताओं के वक्तव्य को समेटते हुए चौमासा पर अपने अनुभव एवं ज्ञान के माध्यम से विविध अवधि लोकगीतों उत्तर भारत की समस्त लोक संस्कृति लोकगीतों के माध्यम से चौमासा के महत्त्व को प्रतिपादित किया। संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ• अमित कुमार पाण्डेय ने किया।

पंचम सत्र विषय : कृषि परम्परा, आयुर्वेद, ज्योतिष और खान-पान में चौमास, प्रो• वी.के.जोशी, आयुर्वेद विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने कहा कि ‘आयुर्वेदो अमृता नाम’ से अपने वक्तव्य की शुरुआत की। आयुर्वेद में आहार एवं विहार का वर्णन मिलता है। काशी को हरिहर क्षेत्र भी कहा जाता है। हरि और हर की उपासना साथ साथ की जाती है। वातानुलोमन भोजन उपयोग करना चाहिए। हरित का चूर्ण एवं घी का सेवन करना चाहिए। सुखा फल में मुनक्का का सेवन करना चाहिए। इस तरह से चौमासा में खान पान एवं रहन सहन किस प्रकार से करने और रहने के लिए आयुर्वेद शास्त्र के आधार पर बताते हुए अपने वक्तव्य को समाप्त किया।

ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से प्रो• विनय पांडेय ने अपने वक्तव्य में ज्योतिष विज्ञान में चौमासा वर्णन एवं उसके महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्योतिष धर्म, अध्यात्म के आधार पर कर्म करने तथा आयुर्वेद स्वस्थ जीवन जीने की कला बताता है। ज्योतिष में सूर्य एवं चन्द्रमा के संयोग चौमासा में आषाढ़ मास से लेकर कार्तिक मास के पहले तक ज्योतिष शास्त्र में विहार एवं आहार का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आचरण एवं आयुर्वेद के अनुसार आहार-विहार करना चाहिए इस प्रकार उन्होंने अपने वक्तव्य को समाप्त किए।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो• श्रीराम सिंह सत्र में उपस्थित वक्ताओं के वक्तव्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए चौमासा में कृषि विज्ञान के आधार पर कौन-कौन सी फसलों की बुवाई के बारे में बात करते हुए कृषि एवं चौमासा के सम्बंध पर विस्तृत चर्चा करते हुए विभिन्न कृषि क्रांतियों से परिचय कराया। कीटनाशक, रोगनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के प्रयोग ने खाद्यान्न में हमें सक्षम बनाया तो जरूर, परन्तु मनुष्य एवं धरती का नुकसान भी हुआ है। रासायनिक दवाओं का असंतुलित प्रयोग से खेती, अनाज और पशु एवं मनुष्य के लिए खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। दलहन की फसलें चौमासा से पूर्व ही बुवाई हो जाती है। मोटांजा अनाजों की बुवाई में कमी आयी है जो धरती एवं किसानों के लिए हितकर होती हैं। फसल चक्र के पालन न करने से धरती के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अनाज के बाद दलहनी फसल, अनाज के बाद तिलहनी फसलों की बुवाई के बाद अनाज की फसल की बुवाई करनी चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग कर कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस प्रकार अपने अध्यक्षीय उद्बोधन को प्रो• श्रीराम सिंह ने समाप्त किया।

षष्ठम सत्र विषय : प्रदर्श कला और साहित्य में चौमासा (व्याख्यान सह प्रस्तुति), मुख्य वक्ता के रूप में डॉ• शेखर सेन, पूर्व अध्यक्ष, संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली ने नाटक, संगीत, कला और शास्त्रों के आधार पर चौमास में पाये जाने वाले विविध लोकगीतों मंच किये जाने वाले नाटकों, नृत्यों, कला के आधार पर चौमासा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। साहित्य और संगीत की प्रस्तुति से स्रोताओं का मनोहार करते हुए चौमास के विविध पक्षों पर तार्किक बात रखीं। उन्होंने बताया चौमास हमें संगठित और सहयोगी संस्कृति की शिक्षा देता है।

प्रो• मालिनी अवस्थी, भारत अध्ययन केन्द्र ने अपने गीतों की प्रस्तुति एवं वक्तव्य के माध्यम से चौमास के सांस्कृतिक एवं सांगितिक पक्ष को रेखांकित किया। जिसमें धोबिया गीत जिसके बोल ‘चार महीना पड़े बरखा के दिनवा हमके सावन के छईयां झूला दा बालमा’, ‘झूला सिया संग झूले बगिया में राम, कहवा से आवे राधा गोरी पड़ेला रिमझिम बूनियाँ, रिमझिम बरसत पनियां आवा चला धान रोपे धनियां, कैसे खेले जइबु सावन में कजरियां बदरियां घेरी आई ननदी आदि गीतों के माध्यम से चौमासा के महत्त्व को रेखांकित किया।

संचालन यतीन्द्र मिश्र, प्रसिद्ध लेखक समीक्षक ने किया। समापन सत्र मुख्य अतिथि के रूप में वी. एन. नरसिम्हा मूर्ति, कुलाधिपति, श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेन्स, कलबुर्गी, कर्नाटक ने चौमासा के महत्त्व को बताते हुए भारत अध्ययन केन्द्र एवं श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेन्स, कलबुर्गी, कर्नाटक का एक ही लक्ष्य है भारत की नई पीढ़ी को अपनी परम्परा, संस्कृति और सभ्यता से परिचय कराते हुए संवेदी मनुष्य बनाना।

भारत अध्ययन केन्द्र के प्रो• कमलेश दत्त त्रिपाठी ने उनका धन्यवाद करते हुए भविष्य में इस प्रकार के आयोजन पर सहमति व्यक्त की तथा चौमासा के बारे में बताया। धन्यवाद करते हुए प्रो• राकेश उपाध्याय ने सभी सत्रों के आये अतिथियों का धन्यवाद किया तथा द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तुति डॉ• अमित कुमार पाण्डेय ने किया।

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