गुजरात,
इंडिया इनसाइड न्यूज़।
■ कच्छ का रण, गुजरात में स्थित हड़प्पा काल के स्थल के रूप में विख्यात धोलावीरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी
कच्छ का रण, गुजरात में स्थित हड़प्पा कालीन स्थल धोलावीरा से संबंधित भारतीय नामांकन को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है। भारत ने जनवरी, 2020 में “धोलावीरा ; एक हड़प्पा कालीन नगर से विश्व धरोहर स्थल तक” शीर्षक से अपना नामांकन जमा किया था। यह स्थल 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल था। हड़प्पाकालीन नगर धोलावीरा दक्षिण एशिया में संरक्षित प्रमुख नगर जीवन स्थलों में एक है और जिसका इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व के मध्य तक का है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया “इस समाचार से बेहद खुश हूं, धोलावीरा एक प्रमुख जीवन स्थल था और यह हमारे अतीत के साथ जोड़ने वाले सबसे प्रमुख संपर्कों में से हैं। जिन लोगों की इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व में रुचि है, उन्हें यह स्थल जरूर देखना चाहिए।”
केन्द्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जी. किशन रेड्डी ने घोषणा के बाद इस समाचार को ट्विटर पर साझा किया। इस घोषणा के कुछ दिनों पहले तेलंगाना के मुलुगु जिले के पालमपेट स्थित रुद्रेश्वर मंदिर “रामप्पा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है” को भारत के 39वें विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था।
जी. किशन रेड्डी ने ट्वीट किया, “देशवासियों के साथ इस समाचार को साझा करके बहुत गर्व का अनुभव कर रहा हूं। धोलावीरा भारत का 40वां स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। भारत के लिए एक और गौरव की बात - हमारा देश विश्व धरोहर स्थल की सूची में सुपर 40 के रूप में शामिल हो गया है।”
इस सफल नामांकन के साथ भारत के पास कुल मिलाकर 40 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित संपत्ति हैं। केंद्रीय संस्कृति मंत्री उन देशों का भी उल्लेख किया जिनके पास 40 या इससे अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें भारत के अलावा अब इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन व फ्रांस शामिल हैं। मंत्री ने अपने ट्वीट में इसका भी उल्लेख किया कि कैसे भारत ने 2014 से 10 नए विश्व धरोहर स्थलों को जोड़ा है और यह भारतीय संस्कृति, विरासत और भारतीय जीवन दर्शन को बढ़ावा देने को लेकर प्रधानमंत्री की दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
जी. किशन रेड्डी ने ट्वीट में लिखा, “आज का दिन भारत के लिए, विशेषकर गुजरात के लोगों के लिए गर्व का दिन है। 2014 के बाद से भारत ने 10 नए विश्व धरोहर स्थल जोड़े हैं जोकि हमारे धरोहर स्थलों की कुल संख्या की एक चौथाई। यह भारतीय संस्कृति, विरासत और भारतीय जीवन दर्शन को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ प्रतिबद्धता को दिखाता है।”
■ धोलावीरा के हड़प्पा नगर के बारे में
धोलावीरा: हड़प्पा संस्कृति का ये नगर, दरअसल दक्षिण एशिया में तीसरी से मध्य-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व काल की चंद सबसे अच्छे से संरक्षित प्राचीन शहरी बस्तियों में से है। अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में छठा सबसे बड़ा और 1,500 से अधिक वर्षों तक मौजूद रहा धोलावीरा न सिर्फ मानव जाति की इस प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन की पूरी यात्रा का गवाह है बल्कि शहरी नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन और विकास, कला, निर्माण, व्यापार और आस्था प्रणाली के संदर्भ में भी अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को प्रदर्शित करता है। अपनी अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धोलावीरा की बड़ी अच्छी तरह से संरक्षित ये शहरी बस्ती, अपनी बेहद खास विशेषताओं वाले इस क्षेत्रीय केंद्र की एक जीवंत तस्वीर दर्शाती है जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।
इस पुरातात्विक स्थल के दो भाग हैं: एक दीवार युक्त नगर और दूसरा, नगर के पश्चिम में एक अंत्येष्टि स्थल। चारदीवारी वाले इस नगर में एक प्राचीर युक्त किला है जिसके साथ प्राचीर वाला अहाता और पूजा-अर्चना का मैदान, और एक सुरक्षित मध्य नगर तथा एक निम्न नगर है। इस किले के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की एक श्रृंखला पाई जाती है। अंत्येष्टि स्थल या श्मशान में अधिकांश अंत्येष्टियां स्मारक रूपी हैं।
धोलावीरा नगर स्वर्णिम दिनों में उसका जो विशिष्ट स्वरूप था वह दरअसल नियोजित नगर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। धोलावीरा नगर में अत्यंत नियोजित ढंग से अलग-अलग नगरीय आवासीय क्षेत्र विकसित किए गए थे जो संभवतः विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों या पेशा और एक वर्गीकृत समाज पर आधारित थे। जल संचयन प्रणालियों, जल निकासी प्रणालियों के साथ-साथ वास्तुशिल्प एवं तकनीकी रूप से विकसित सुविधाओं में नजर आने वाली उत्कृष्ट तकनीकी प्रगति स्थानीय सामग्री के डिजाइन, कार्यान्वयन और प्रभावकारी उपयोग में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के पास स्थित रहने वाले हड़प्पा के अन्य पूर्ववर्ती शहरों के विपरीत खादिर द्वीप में धोलावीरा ऐसे स्थान पर अवस्थित था जो खनिज और कच्चे माल (तांबा, सीप, गोमेद-कार्नीलियन, स्टीटाइट, सीसा, धारियों वाले चूना पत्थर, इत्यादि) के विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल करने और इसके साथ ही मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) एवं मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और बाह्य व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से अत्यंत रणनीतिक था।
धोलावीरा दरअसल हड़प्पा सभ्यता (शुरुआती, परिपक्व और इसके बाद के हड़प्पा दौर वाले) से संबंधित एक आद्य-ऐतिहासिक कांस्य युग वाली शहरी बस्ती का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और वहां तीसरी और दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान एक बहु-सांस्कृतिक एवं वर्गीकृत समाज होने के अनेक प्रमाण या साक्ष्य मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक हड़प्पा चरण के दौरान 3000 ईसा पूर्व के शुरुआती साक्ष्य मिले हैं। यह नगर लगभग 1,500 वर्षों तक खूब फला-फूला जिससे वहां काफी लंबे समय तक लोगों के निरंतर निवास करने के संकेत मिलते हैं। यहां पर उत्खनन के जो अवशेष हैं वे स्पष्ट रूप से बस्ती की उत्पत्ति, उसके विकास, चरम पर पहुंचने और फिर बाद में उसके पतन का संकेत देते हैं जो इस नगर के स्वरूप एवं स्थापत्य तत्वों या घटकों में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ विभिन्न अन्य विशेषताओं में स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होते हैं।
धोलावीरा अपनी पूर्व नियोजित नगर योजना, बहु-स्तरीय किलेबंदी, परिष्कृत जलाशयों और जल निकासी प्रणाली, और निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर के व्यापक उपयोग के साथ हड़प्पा शहरी नियोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ये विशेषताएं हड़प्पा सभ्यता के पूरे क्षेत्र में धोलावीरा की अनूठी स्थिति को दर्शाती हैं।
पानी की उपलब्ध हर बूंद को इकट्ठा करने के लिए डिज़ाइन की गई विस्तृत जल प्रबंधन प्रणाली लोगों की तेज़ भू-जलवायु परिवर्तनों के मुकाबले जीवित रहने की सरलता को दर्शाती है। मौसमी जलधाराओं, अल्प वर्षा और उपलब्ध भूमि से अलग किए गए पानी को बड़े पत्थरों के जलाशयों में संग्रहीत किया गया था जो पूर्वी और दक्षिणी किलेबंदी के साथ मौजूद हैं। पानी तक पहुंचने के लिए, कुछ पत्थर के कुएं, जो सबसे पुराने उदाहरणों में से एक हैं, नगर के विभिन्न हिस्सों में स्पष्ट रूप से मौजूद हैं, और इनमें से सबसे प्रभावशाली एक कुआं नगर में स्थित है। धोलावीरा के इस तरह के विस्तृत जल संरक्षण तरीके अद्वितीय हैं और प्राचीन दुनिया की सबसे कुशल प्रणालियों में से एक मानी जाती हैं।