कांग्रेस अपने गिरेबां में भी तो झांके



---लोकेन्द्र सिंह (लेखक विश्व संवाद केंद्र, भोपाल के कार्यकारी निदेशक हैं।)

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाषण-शैली पर आपत्ति दर्ज कराई है। कर्नाटक के हुबली में दिए गए भाषण को आधार बनाकर पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वह प्रधानमंत्री को कांग्रेस नेताओं या अन्य किसी पार्टी के लोगों के खिलाफ अवांछित और धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल करने से रोकें। इसके साथ ही डॉ. मनमोहन सिंह और अन्य नेताओं ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी का व्यवहार प्रधानमंत्री पद की मर्यादा के अनुकूल नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह लोकतांत्रिक व्यवस्था में भाषा की मर्यादा और संयम पर चिंतित हो रहे हैं, यह अच्छी बात है। राजनेताओं को अपने प्रतिद्वंद्वी नेताओं के प्रति मर्यादित भाषा का उपयोग करना चाहिए। देश का सामान्य व्यक्ति भी यही मानता है और चाहता है कि हमारे नेता भाषा में संयम बनाएं। किंतु, विचार करने की बात यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेसी नेताओं को अब जाकर यह चिंता हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाषण-शैली पर आपत्ति दर्ज कराने वाले पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेसी नेता क्या अपने वक्तव्यों के लिए खेद प्रकट करेंगे? कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध जिस प्रकार के अपशब्दों को उपयोग किया है, क्या उन सबके लिए मनमोहन सिंह खेद प्रकट करेंगे?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इतना ही तो कहा है कि 'कांग्रेस के नेता कान खोल करके सुन लीजिए, अगर सीमाओं को पार करोगे, तो ये मोदी है, लेने के देने पड़ जाएंगे...।' पूर्व प्रधानमंत्री को यह धमकी इतना बेचैन कर गई कि उन्होंने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख दी, कांग्रेसी नेताओं के हस्ताक्षर करा लिए और कांग्रेस नेताओं ने पत्र को ट्वीट कर इस विमर्श को सार्वजनिक कर दिया। जिस तरह से कांग्रेसी नेता व्यवहार और भाषा की सीमा लांघ रहे हैं, उस हिसाब से तो इसे एक सामान्य चेतावनी ही मानना चाहिए। संवैधानिक पद की गरिमा की दुहाई देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नरेन्द्र मोदी पर अंगुली उठाने से पहले कांग्रेस के गिरेबां में झांक कर देख लेना चाहिए था। कांग्रेस के नेताओं ने स्वयं संवैधानिक पदों की गरिमा का कितना ध्यान रखा है और संवैधानिक पद (गुजरात के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री) पर बैठे एक व्यक्ति के प्रति किस स्तर की भाषा का उपयोग किया है, यह किसी से छिपा नहीं है।

नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 'मौत का सौदागर' कहा, बाद में उनके उत्तराधिकारी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री को 'खून का दलाल' कहा। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर और राहुल गांधी की बहन प्रियंका ने प्रधानमंत्री मोदी को 'नीच' कहा। संप्रग सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए जयराम रमेश ने मोदी को 'भस्मासुर', बेनी प्रसाद वर्मा ने 'पागल कुत्ता', सलमान खुर्शीद ने 'बंदर' कहा, तो कांग्रेसी नेता राशिद अल्वी ने मोदी को 'मोस्ट स्टूपिड प्रधानमंत्री' बताया। कांग्रेस के एक प्रत्याशी ने तो नरेन्द्र मोदी के टुकड़े-टुकड़े करने की धमकी तक दे दी। खुलकर किसी के टुकड़े करने की बात कहना क्या धमकी नहीं है? कांग्रेस नेता के इस बयान पर तो उनके विरुद्ध जानलेवा धमकी देने का मामला दर्ज होना चाहिए था। क्या डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने उस नेता के लिए पार्टी अध्यक्ष को ही चिट्ठी लिखी? संप्रग सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे मनीष तिवारी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए गाली ही ट्वीट कर दी थी।

देश के एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस के नेता और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग यह सब कहते रहे, लेकिन कभी भी डॉ. मनमोहन सिंह ने अपना मौन नहीं तोड़ा। अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'अदब' से रहने का इशारा क्या कर दिया, पूर्व प्रधानमंत्री वाचाल हो उठे। उन्हें संवैधानिक पद की गरिमा ध्यान आने लगी। डॉ. मनमोहन सिंह तो उस समय भी चुप बैठे रहे, जब नरेन्द्र मोदी का वीजा रोकने के लिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेता एक चिट्ठी लेकर अमेरिका दौड़े थे। उस दिन सिर्फ संवैधानिक पद की ही गरिमा तार-तार नहीं हुई थी, अपितु देश की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो गई थी।

बहरहाल, अभी बात सिर्फ भाषा की मर्यादा तक ही सीमित रखनी चाहिए। जिस समय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषा पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख रहे हैं, उसी समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माणक अग्रवाल मर्यादा की फुटबॉल बनाकर लात मार रहे हैं। माणक अग्रवाल ने भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों पर ही आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं की है, बल्कि अग्रवाल ने भारत की 'ब्रह्मचर्य' साधना को लांछित करने का प्रयास किया है। माणक अग्रवाल जब यह कह रहे थे कि भाजपा और संघ के लोग शादी नहीं करते, इसलिए बलात्कार करते हैं, तब वह भूल गए कि देश में 'ब्रह्मचर्य' का पालन करने वाले महापुरुषों की महान परंपरा भी है। वह यह भी भूल गए कि उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अभी तक विवाह नहीं किया है। बहरहाल, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेसी नेता यह भूल गए कि वह जिस व्यक्ति के भाषण पर आपत्ति दर्ज करा रहे हैं, उसे कांग्रेस की ओर से कितनी गालियों और कितने प्रकार के अपशब्दों से संबोधित किया गया है। वह यह भूल गए कि इस मामले में कांग्रेस का दामन बहुत काला है। अब जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बोलना लगे हैं, तो उन्हें अब पहले अपने आंगन की सफाई करनी चाहिए। जब तक वह अपना घर साफ नहीं कर लेते, उन्हें किसी और पर अंगुली नहीं उठानी चाहिए। कम से कम उस व्यक्ति पर तो कतई नहीं, जिसके लिए कांग्रेसी नेताओं ने नये-नये अपशब्दों की खोज की हो।

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