पर्यावरण नहीं, मन बदलिए तभी बचेगी पृथ्वी



--आचार्य प्रशांत
वेदांत मर्मज्ञ, पूर्व सिविल सेवा अधिकारी।

● पर्यावरण का उत्सव या पाखंड?

हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। नेता भाषण देते हैं, स्कूलों में रैली निकलती है, सोशल मीडिया पर "सेव अर्थ" के पोस्ट की भरमार लग जाती है। लेकिन जरा पीछे हटकर सोचिए - क्या ये दिखावटी प्रयास धरती को सच में बचा पा रहे हैं?

● यदि पर्यावरण संकट आज भी गहराता ही जा रहा है, तो क्या यह प्रमाण नहीं कि हम समस्या की जड़ तक पहुंचे ही नहीं हैं?

हम ट्री प्लांटेशन की तस्वीरें खिंचवाकर संतुष्ट हो जाते हैं, पर अपने जीवन में कोई असली परिवर्तन नहीं लाते। आचार्य प्रशांत इस स्थिति पर सीधा सवाल उठाते हैं — “क्या आपने कभी अपने जीवन में यह पूछा है कि आप धरती के लिए एक बोझ हैं या एक आशीर्वाद?”

मनुष्य की लालसा असीमित हो चुकी है। पहले इंसान प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीता था, आज वह प्रकृति को उपभोग की वस्तु मान बैठा है। आज हर इंसान पाँच गुना ज़्यादा संसाधन चाहता है, जितना पृथ्वी दे सकती है। हर साल हम 1.7 पृथ्वी जितने संसाधन खर्च कर रहे हैं। पर्यावरण की कोई समस्या नहीं है, समस्या है मानव का मन। जब तक यह मन लालची है, जब तक जीवन दिखावे और उपभोग का पर्याय बना रहेगा - कोई पर्यावरण सम्मेलन, कोई तकनीकी समाधान धरती को नहीं बचा पाएगा।

● जनसंख्या विस्फोट

सबसे असहज, पर सबसे सच्ची बात जब भी पर्यावरण संकट की बात आती है, लोग कार्बन टैक्स, सोलर पैनल, प्लास्टिक बैन जैसे उपायों की चर्चा करने लगते हैं। लेकिन कोई इस बुनियादी सत्य की बात नहीं करता कि “बच्चे पैदा करना आज पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा बोझ बन चुका है।” भारत में हर दिन औसतन 67,000 बच्चे जन्म लेते हैं। 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ के पार पहुँच सकती है। हर बच्चा जो जन्म लेता है, वह पानी, खाना, ऊर्जा, मोबाइल, गाड़ी, नौकरी, ज़मीन और भविष्य की अपेक्षा करता है। क्या हम इतनी धरती, इतनी हवा, इतनी नदियाँ बचा पाएंगे इन सबके लिए?

● संस्कृति और प्रचार

जन्म को महिमामंडित करने का षड्यंत्र हमारे समाज में विवाह और संतान को जीवन की अनिवार्यता बना दिया गया है। अगर कोई व्यक्ति निःसंतान रहना चाहे, तो समाज उसे अधूरा मानता है। टीवी, फिल्में, विज्ञापन, यहां तक कि इंस्टाग्राम भी यही संदेश दे रहा है “बच्चे जीवन का सबसे बड़ा सुख हैं।” “पहले बांझ स्त्री को अपमानित किया जाता था, अब निःसंतान को ललचाया जाता है। फर्क सिर्फ़ तकनीक और भाषा का है।”

● पर्यावरण बचाने के 5 असली उपाय

• बच्चों का जन्म सीमित कीजिए - कोई भी योजना जनसंख्या नियंत्रण के बिना सफल नहीं हो सकती।

• उपभोग की संस्कृति से अलग हटिए - ज़रूरत और लालच के बीच की रेखा समझें।

• फैशन, ट्रेंड और दिखावे को त्यागिए - यह केवल पर्यावरण ही नहीं, आत्मा को भी प्रदूषित करता है।

• मौन और ध्यान का अभ्यास कीजिए - शांति अंदर होगी, तो बाहर हिंसा नहीं फैलेगी।

• प्रकृति को उपासना मानिए, प्रॉपर्टी नहीं - पहाड़, नदियाँ, वन - ये कमाई नहीं, करुणा के प्रतीक हैं।

● कुछ डरावने आँकड़े

वैश्विक तापमान वृद्धि 1850 से अब तक 1.2°C की वृद्धि हो चुकी है। वनों की कटाई हर साल लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर जंगल खत्म। कार्बन उत्सर्जन (भारत) विश्व में तीसरे स्थान पर (आईईए रिपोर्ट 2023)। जैव विविधता संकट पिछले 50 वर्षों में 69% प्रजातियाँ लुप्त। जल संकट (भारत) 2030 तक 40% आबादी को पानी की कमी होगी।

● टेक्नोलॉजी नहीं, चेतना है समाधान

आज लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों, सोलर पावर और रीसायक्लिंग की बातें करते हैं। पर क्या कोई यह सोचता है कि सोलर पैनल बनाने के लिए जो माइनिंग हो रही है, वह किस कीमत पर है? इलेक्ट्रिक बैटरियों में इस्तेमाल हो रहे खनिजों के लिए कितने जंगल तबाह हो रहे हैं? "ग्रीन एनर्जी" के नाम पर हम किसे धोखा दे रहे हैं - खुद को या धरती को? “आप समस्या की जड़ को नहीं काटेंगे, तो उसका पत्ता-पत्ता काटना व्यर्थ है।”

● वैकल्पिक जीवन दृष्टि: साधना, त्याग और प्रेम

यदि हम सच में पर्यावरण को बचाना चाहते हैं, तो हमें भीतर से बदलना होगा। हमें कम जीने की कला सीखनी होगी - कम उपभोग, कम इच्छा, कम प्रचार। हमें एक ऐसा जीवन जीना होगा जो प्राकृतिक, साधारण और संतुलित हो। जब तक जीवन का उद्देश्य केवल आनंद लेना है, तब तक हम इस धरती का अनादर ही करेंगे। पर जब जीवन साधना बन जाए, तब हर सांस से प्रकृति को प्रणाम होगा।

“सच बोलना पड़ेगा, चाहे वह असहज ही क्यों न हो” “जब तक बच्चे पैदा करना एक व्यक्तिगत अधिकार समझा जाता रहेगा, तब तक पृथ्वी सामूहिक विनाश की ओर ही जाएगी।”

पृथ्वी को नहीं बचाना है - अपने मन को बचाना है। अगर मन स्वच्छ होगा, तो पृथ्वी भी स्वच्छ होगी। यह लेख कोई उपदेश नहीं, एक सत्य की पुकार है। क्या आप में वह साहस है, जो सत्य को देख सके और उसके अनुसार जीवन बदल सके?

ताजा समाचार

National Report



Image Gallery
इ-अखबार - जगत प्रवाह
  India Inside News