वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी के कारण कांग्रेस के हाथ से निकलता मध्यप्रदेश



--विजया पाठक
एडिटर - जगत विजन
भोपाल - मध्यप्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

●कमलनाथ के मैनेजमेंट और दिग्विजय के संपर्क के बिना प्रदेश में कांग्रेस नहीं लहलहा सकती पताका

●क्या पार्टी का अस्तित्व खत्म होने का इंतजार कर रहा है शीर्ष नेतृत्व?

●प्रदेश कांग्रेस नेताओं में अंतर्कलह कहीं प्रदेश अध्यक्ष पटवारी के खिलाफ असंतोष का सूचक तो नहीं

●बेरोजगारी को लेकर जो हल्‍ला मचा है कमलनाथ उस पर पहले ही जता चुके हैं चिंता

एनडीए सरकार के गठन के बाद केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी आगामी दिनों में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है वहीं कांग्रेस पार्टी अभी तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली हार पर मंथन कर रही है। कांग्रेस पार्टी और नेताओं को यह बात अच्छी तरह समझना चाहिए कि आखिर वह क्या वजह है जिसने पार्टी को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार दिलवाई। मेरे लिए यह विषय नया नहीं इससे पहले की पोस्ट में भी मैंने कई बार इस बात का जिक्र किया है कि मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष की कमजोर लीडरशिप, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल का भ्रष्टाचार का आतंक और राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हो रही आपसी रस्साकसी ने कांग्रेस को तीनों ही राज्यों से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब सवाल आता है मध्यप्रदेश का। मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस पार्टी ने एक लंबे समय तक राज किया। न सिर्फ राज किया बल्कि प्रदेश हित में कई प्रमुख फैसले भी किए। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है। प्रदेश में कांग्रेस प्रदेश के सबसे बड़े मुददे बेरोजगारी को लेकर कठघरे में खड़ा नहीं कर पा रही है। जबकि पूर्व सीएम कमलनाथ बेरोजगारी को लेकर कई बार चिंता जता चुके हैं और सरकार से सवाल कर चुके हैं। लेकिन इतने भर से इस महत्‍वपूर्ण मुददों से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता है। कांग्रेस को इस मुददे को बड़े स्‍तर पर ले जाना होगा।

• पुराने लोगों को अनदेखा करना पड़ रहा भारी

कांग्रेस पार्टी ने मध्यप्रदेश में पिछले दो सालों में वरिष्ठ और अनुभवी राजनेताओं को जिस ढंग से अनदेखा करना आरंभ किया वह पार्टी की हार का सबसे प्रमुख कारण है। यह सही है कि नए लोगों को आगे आना चाहिए लेकिन अगर पुराने लोगों को पूरी तरह से अनदेखा करके नए लोगों के हाथ में कमान दी जाती है तो निश्चित ही यह पार्टी की बड़ी भूल साबित हो सकती है। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को जिस ढंग से अनदेखा करके पटवारी को खुला मैदान खेलने के लिए दिया है पटवारी उस मैदान में पहली ही गेंद पर क्लीन बोल्ड हो गए। यही नहीं उपचुनाव में भी वे सफल नहीं हो पाए।

• बेरोजगारी को लेकर गैर जिम्‍मेदार है मोहन यादव सरकार- पूर्व सीएम कमलनाथ

मध्य प्रदेश सरकार बेरोज़गारी की समस्या को लेकर पूरी तरह ग़ैर ज़िम्मेदार है। मध्य प्रदेश की सरकार युवाओं को रोज़गार देने का कोई नया इंतज़ाम नहीं कर रही है और हद तो यह है कि उसके पास रोज़गार देने और बेरोजगारों की बढ़ती संख्या को लेकर सही आंकड़े तक नहीं हैं। विधानसभा में सरकार बेरोज़गारी को लेकर परस्पर विरोधी जवाब दे रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि रोज़गार और नौकरी मोहन यादव सरकार की प्राथमिकताओं में कहीं नहीं है। इसके उलट मध्य प्रदेश में नौकरी और रोज़गार देने के नाम पर घोटाले रोज़ बढ़ते जा रहे हैं। पूर्व कमलनाथ का कहना है कि मैं मुख्यमंत्री से पूछना चाहता हूँ कि प्रदेश के नौजवानों का भविष्य अंधकार में डालकर आख़िर वह और उनकी सरकार क्या हासिल करना चाहते हैं? अगर नौजवान बेरोज़गार रहेंगे तो प्रदेश का भविष्य कैसे उज्ज्वल हो सकता है? कमलनाथ का मानना है कि मध्य प्रदेश और पूरे देश में नौकरियों में कमी आ रही है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन EPFO के आंकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2023-24 में देश में सात लाख नौकरियां कम हुई है और मध्यप्रदेश में 29 हज़ार नौकरी कम हुई हैं। यह अत्यंत चिंताजनक मामला है। प्रदेश में पहले ही बेरोजगारों की बड़ी संख्या है, जो कभी पटवारी भर्ती घोटाले, तो कभी नर्सिंग घोटाले, तो कभी व्यापम घोटाले, तो कभी आरक्षक भर्ती घोटाले से परेशान हैं। अब आंकड़े बता रहे हैं कि निजी क्षेत्र में भी नौकरी घटती जा रही है। सवाल यह है कि अगर सरकार न तो सार्वजनिक क्षेत्र में और न ही निजी क्षेत्र में नौकरी उपलब्ध करा रही है तो आख़िर नौकरियों को लेकर उसकी नीति क्या है? यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि एक तरफ़ नौकरियां घट रही हैं, रोज़गार के अवसर कम हो रहे हैं और सरकारी भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह संदिग्ध होती जा रही है तो दूसरी तरफ़ प्रदेश सरकार सिर्फ़ इवेंटबाज़ी में व्यस्त है और कपोल कल्पित वादे करने में जुटी हुई है। प्रदेश का नौजवान इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगा और कांग्रेस पार्टी हर क़दम पर नौजवानों के साथ खड़ी है।

• अजेय हैं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का यदि राजनीतिक करियर देखा जाए तो उसमें एक नहीं कई उपलब्धियां नजर आती हैं। राज्य में प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री और कई प्रमुख समितियों में बतौर सदस्य शामिल कर सरकार और पार्टी ने अनके अनुभवों का लाभ लिया है। कमलनाथ ही वह व्यक्तित्व हैं जो लंबे समय तक छिंदवाड़ा जिले से अजेय थे और सांसद रहते हुए उन्होंने जिले में विकास का अद्भुत और अविश्वसनीय मॉडल खड़ा किया जो आज पूरे देश के लिए चर्चा का केंद्र है। ऐसे में पार्टी के सदस्यों के बीच हो रहे भितरघात के कारण कमलनाथ को पहले सत्ता से हाथ धोना पड़ा और उसके बाद विधानसभा, लोकसभा और फिर उपचुनाव ने हार का सामना करना पड़ा। सूत्रों के अनुसार यह सब पटवारी और भाजपा आलाकमान की सांठगांठ के बीच हो था है।

• पटवारी और बीजेपी में समन्वय तो नहीं

सूत्रों के अनुसार नर्सिंग घोटाले के प्रमुख याचिकाकर्ता रवि परमार द्वारा एक बहुत बड़े घोटाले की जानकारी सामने लाई गई। लेकिन पटवारी ने प्रदेश अध्यक्ष और विपक्षी दल के प्रमुख नेता होने के नाते भी परमार का साथ उतना नहीं दिया जितनी परमार को अपेक्षा थी। सूत्र बताते हैं कि शायद भाजपा और पटवारी के बीच विद्रोह न करने और शांत रहने संबंधी कोई आपसी समझौता हुआ है जिसके बदले उन्हें बड़ा लाभ दिए जाने की योजना है। सवाल यह है कि अगर पटवारी जैसे विपक्षी दल के प्रमुख नेता ऐसा फैसला करते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस को राज्य में विपक्षी दल से भी हाथ धोना पड़ेगा।

• राज्य में कांग्रेस के खत्म होने का बिगुल बज गया

प्रदेश कांग्रेस पार्टी के नेताओं में जिस तरह से अंतर्कलह चल रही है और सभी अलग-अलग दल ने विभाजित होने का प्रयास कर रहे हैं। यह संकेत पार्टी के राज्य से खत्म होने के हैं। लेकिन पार्टी आलाकमान की आंखों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता जयराम नरेश ने जो पट्टी आंख में बांधी हुई है समय रहते उस पट्टी को राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी को खोलना होगा और एक बार फिर अपने पुराने और अनुभवी नेताओं पर विश्वास कर उन्हें जिम्मेदारी सौंपनी होगी। तभी पार्टी का अस्तित्व बचेगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस पार्टी सिर्फ स्मृतियों में रह जाएगी।

• इंदौर घटना में जो हुआ वह प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी की असफलता है

हाल ही में इंदौर में एक घटना घटी है। यह घटना प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष जीतू पटवारी की असफलता का जीता जागता नमूना है। पहले हम उस घटना का जिक्र करते हैं। पिछले दिनों शहर में 11 लाख पौधे लगाने का निमंत्रण देने इंदौर कांग्रेस कार्यालय पहुंचे थे। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की आवभगत नगर अध्यक्ष सुरजीत सिंह चड्ढा और जिला अध्यक्ष सदाशिव यादव ने की थी। इन दोनों को यह आवभगत काफी भारी पड़ी। दोनों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने निलंबित कर दिया। जबकि सुरजीत सिंह चड्ढा का कहना है कि कैलाश विजयवर्गीय का स्‍वागत उन्‍होंने प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी के कहने पर ही किया है। सुरजीत सिंह चड्ढा ने कहा कि सुबह प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी का फोन आया कि कैलाश विजयवर्गीय आ रहे हैं उनका ठीक से स्‍वागत करना। अब यहां सवाल उठ रहा है कि किसी स्‍थानीय नेता को प्रदेश अध्‍यक्ष का आदेश कैसे ठुकराया जा सकता है। सुरजीत सिंह चड्ढा ने तो वहीं किया जैसा उन्‍हें आदेशित किया गया है। यहां पटवारी की काबिलियत पर भी प्रश्‍नचिंह लग रहा है। आखिर कैसे उनका निलंबन किया गया है। यह पटवारी के दोहरे चरित्र को प्रदर्शित कर रहा है।

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