चुनौतियों के बीच पटरी पर लौटता 'इंडिया गठबंधन'



--राजीव रंजन नाग
नई दिल्ली, इंडिया इनसाइड न्यूज।

लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का एलान होने से ठीक पहले इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक होता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी के बाद आम आदमी पार्टी के साथ भी कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया है। दोनों पार्टियां दिल्ली और चंडीगढ़ के अलावा तीन अन्य राज्यों में गठबंधन में चुनाव लड़ेंगी। कुल 46 सीटों पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीट शेयरिंग पर बात बनी है। यहां हम बता रहे हैं कि किस सीट पर कौन चुनाव लड़ेगा।

आम आदमी पार्टी 46 में से सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है। गोवा और चंडीगढ़ के लिए भी अरविंद केजरीवाल ने अपने उम्मीदवार को चुनाव लड़ाने की तैयारी की थी, लेकिन गठबंधन के बाद उन्होंने अपना फैसला बदल दिया है। गोवा में एक सीट पर उम्मीदवार का एलान करने के बाद आम आदमी पार्टी ने दोनों सीटें कांग्रेस को दी हैं। दिल्ली में भी पहले आम आदमी पार्टी ने छह सीट पर चुनाव लड़ने की बात कही थी, लेकिन बाद में चार सीटों पर ही समझौता कर लिया। दिल्ली की सात विधानसभा सीटों में एक अनुसूचित जाति के लिए है। इनमें से चार आम आदमी पार्टी और तीन कांग्रेस के खाते में हैं। आम आदमी पार्टीः नई दिल्ली, दिल्ली पश्चिम, दिल्ली दक्षिण, दिल्ली पूर्व कांग्रेसः चांदनी चौक, दिल्ली उत्तर-पूर्व, दिल्ली उत्तर-पश्चिम।

गुजरात- यहां 26 में से दो सीटें अनुसूचित जाति और चार सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। आम आदमी पार्टी दो और कांग्रेस 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टीः भरूच, भावनगरॉ, कांग्रेसः अहमदाबाद पूर्व, अहमदाबाद पश्चिम, अमरेली, आनंद, बांसकंथा, बरदोली, छोटा उदयपुर, दाहोद, गांधीनगर, जामनगर, जूनागढ़, कच्छ, महेसाना, नवसारी, पंचमहल, पाटन, पोरबंदर, राजकोट, सबरकंथा, सूरत, सुरेंद्रनगर, वड़ोदरा, वलसाड।

हरियाणा- यहां 10 में से दो सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। कांग्रेस नौ और आम आदमी पार्टी एक सीट पर चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टीः कुरुक्षेत्र। कांग्रेसः अंबाला, भिवानी-महेंद, फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार, करनाल, रोहतक, सिरसा, सोनीपत। चंडीगढ़- यहां की एकमात्र सीट पर कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ेगी। गोवा-यहां की दोनों लोकसभा सीटों (गोवा उत्तर और गोवा दक्षिण) पर कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ेगी।

जाहिर है लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी धड़े वाला इंडिया गठबंधन पटरी पर लौटता दिखाई दे रहा है। यूपी के बाद शनिवार को इंडिया गठबंधन ने दिल्ली में सीटों के समझौते पर बंटवारे की घोषणा कर दी। विपक्ष के इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस) ब्लॉक की यह दूसरी सफलता है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए दिल्ली, गुजरात और हरियाणा के लिए सीट-बंटवारे की भी घोषणा की। हालांकि, पंजाब को गठबंधन वार्ता से बाहर रखा गया था।

बीजेपी को कितनी चुनौती?

ऐसे में अब देखना है कि यूपी के बाद दिल्ली, गुजरात, हरियाणा और गोवा में समझौते से बीजेपी को कितनी चुनौती मिलती है। हालांकि, पंजाब में गठबंधन नहीं होने भी अपने आप में दिलचस्प बनाता है। यह बीजेपी को विपक्षी धड़े पर पने हमले को तेज करने के लिए मौका देता है। बीजेपी इंडिया गठबंधन को इस मुद्दे पर को एक अवसरवादी गठबंधन कहने का अवसर नहीं गवांएगी। सभी राज्यों में सबसे जटिल और दिलचस्प मामला दिल्ली का है। दिल्ली में 7 लोकसभा सीटें हैं। दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो लोकसभा चुनावों में न तो आप और न ही कांग्रेस दिल्ली की 7 सीटों में से एक भी जीतने में कामयाब रही है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि आप ने लगातार दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी पर बड़ी जीत दर्ज की है। ऐसे में यह देखना होगा कि यह गठबंधन बीजेपी को कितनी चुनौती दे पाएगा।

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ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी को इस गठबंधन से चिंतित होना चाहिए? वास्तव में नहीं। अगर 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों को देखा जाए तो यहीं संकेत मिलता है। 2019 में दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर भाजपा को 50% से अधिक वोट मिले। इसका मतलब है कि अगर कांग्रेस और आप 2019 में एक साथ चुनाव लड़ते तो भी वे राष्ट्रीय राजधानी में बीजेपी को हराने में कामयाब नहीं होते। वोट शेयर एक दिलचस्प फैक्ट पर भी रोशनी डालता है। आप भले ही पार्टी के लिए 4 लोकसभा सीटें बरकरार रखकर राष्ट्रीय राजधानी में बड़े भाई की भूमिका निभाने में कामयाब रही हो, 2019 के चुनावों में अरविंद केजरीवाल की पार्टी का वोट शेयर 7 में से 5 सीटों पर कांग्रेस से कम था। जाहिर है, जब राष्ट्रीय चुनावों की बात आती है, तो कांग्रेस का प्रदर्शन आप से बेहतर होता है।

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आप, कांग्रेस का प्रदर्शन दरअसल, दिल्ली में आप का वोट शेयर 2014 के लोकसभा चुनाव के 32.92% के मुकाबले घटकर 2019 में 18.11% हो गया। दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपने वोट शेयर में 2014 में 15.15% से मामूली वृद्धि दर्ज की। यह 2019 में बढ़कर 22.51% हो गया। गठबंधन की गतिशीलता अक्सर जमीन पर अतिरिक्त गति दे सकती है, लेकिन ऐसा होने के लिए गठजोड़ की भावना होती है। इसे नेताओं और कार्यकर्ताओं तक पहुंचना होगा। दोनों पार्टियों के स्थानीय नेताओं के बीच रिश्ते इतने मधुर नहीं हैं। देखना दिलचस्प होगा कि क्या ऐसा होता है।

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