अंग्रेजों द्वारा उपयोग किये गये इस नाम को बदलकर भारत करना अपनी भाषा का सम्मान बढ़ाने जैसा



--विजया पाठक (संपादक - जगत विजन),
भोपाल - मध्य प्रदेश, इंडिया इनसाइड न्यूज।

● जी-20 की मेजबानी के बीच देश में छिड़ी इंडिया और भारत पर जुबानी जंग

● राजनैतिक नफा-नुकसान से बाहर निकलकर देश के हित में विचार करने की आवश्यकता

एक तरफ जहां देश में जी-20 शिखर सम्मेलन हो रहा है। वहीं, दूसरी तरफ भारत और इंडिया के नाम को लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया है। आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र सरकार द्वारा इंडिया का नाम बदलकर भारत किये जाने की चर्चा के बाद मानो राजनीतिक दलों में हलचल सी मच गई हो। देश में इंडिया का नाम बदलकर भारत करने को लेकर विवादों के बीच जल्द से जल्द इस पर प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। सरकार संसद के 18 सितंबर से शुरू होने जा रहे विशेष सत्र के दौरान इस पर प्रस्ताव ला सकती है। जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र में इंडिया के नाम को बदलकर भारत करने का प्रस्ताव पेश कर सकते हैं। संसद का यह विशेष सत्र 18 सितंबर से लेकर 22 सितंबर तक चलेगा। उल्लेखनीय है कि कुछ महीने पहले विपक्षी दलों द्वारा इंडिया एलायंस नाम से एक राजनैतिक दल तैयार किया गया। इस दल के निर्माण के बाद से ही इस बात का आंकलन लगाया जाने लगा था कि अब केंद्र सरकार इंडिया का नाम बदलकर भारत कर सकती है।

• अंग्रेजों का दिया हुआ प्रतीत होता है नाम

आखिर राजनीतिक दलों को इंडिया से भारत नाम किये जाने पर आपत्ति क्यों होना चाहिए। भारत हमारा है, यहां की संस्कृति, धरोहर, समाज व्यवस्था सब हमारी है। जबकि देखा जाये तो इंडिया नाम तो अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है। ऐसे में अगर मोदी सरकार इस गुलामी के प्रतीक को समाप्त करना चाहती है तो अन्य राजनैतिक दलों को भी इसमें साथ देना चाहिए। अफसोस यह भारत देश है जहां छोटी-छोटी चीजों में राजनीति शुरू हो जाती है। लेकिन अब वो समय आ गया है जब हमें किसी भी राजनैतिक द्वेष के एकजुट होकर आगे आना चाहिए और इंडिया का नाम भारत करने पर समर्थन देना चाहिए।

• अन्य देशों में क्या स्थिति

अगर हम दूसरे देशों पर नजर डाले तो यह देखने में आता है कि हर देश अपनी भाषा में ही अपने देश का नाम रखता है। उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान- उन्होंने कभी भी पीओके नहीं रखा। यही नहीं श्रीलंका, नाईजीरिया, अमेरिका, सहित सभी देश एक ही नाम से जाने जाते हैं। वह उनकी अपनी भाषा में तैयार किया गया नाम है। यूनाइटेड किंगडम को कभी भी ब्रिटेन या ब्रिटिश नहीं लिखा जाता। ऐसे में फिर इंडिया का नाम भारत किये जाने के फैसले को लेकर इतनी गहमा-गहमी क्यों यह बात समझ के परे हैं।

• ऐसे शुरू हुआ यह विवाद

जी-20 समिट को लेकर राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जी-20 समिट के डिनर के निमंत्रण पत्र भेजा गया। इस पत्र में ‘President Of India’ लिखे होने की जगह ‘President Of Bharat’ लिखा है, जिसके बाद से राजनीतिक दलों के बीच इसको लेकर बहस शुरू हो गई। इस निमंत्रण पत्र के सार्वजनिक होने से विपक्ष के दल यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि क्या मोदी सरकार अब इंडिया हटाकर देश का नाम भारत करना चाह रही है? हालांकि, यह विवाद पहले भी उठ चुका है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अपील की थी कि सभी को इंडिया की जगह देश को भारत कहना चाहिए।

• ऐसे पड़ा भारत नाम

महाभारत की एक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि महर्षि विश्‍वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला ने पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के साथ गंधर्व विवाह किया था। इनके बेटे का नाम भरत था। ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया थी कि भरत भविष्‍य में चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भू-भाग का नाम प्रसिद्ध होगा। यह कहानी भारतीय के बीच इतनी लोकप्रिय हो गई कि लोग दुष्‍यंत और शकुंतला के बेटे सम्राट भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ना मानते हैं। यही नहीं पौराणिक युग में राजा दशरथ के पुत्र और श्रीराम के छोटे भाई भरत भी काफी प्रसिद्ध हुए हैं। उन्‍होंने भगवान राम के वनवास के दौरान उनकी खड़ाऊं रखकर शासन किया। इनके अलावा, नाट्यशास्त्र की रचना करने वाले भरतमुनि भी यहीं हुए हैं। मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे। वहीं, मत्स्य पुराण में मनु को भरत कहा गया है। मनु को प्रजा को जन्म देने और उसका भरण-पोषण करने के कारण भरत नाम दिया गया है। उनके अधीन आने वाले भूभाग को भारतवर्ष कहा गया है।

• क्या कहता है संविधान

संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, इंडिया यानी भारत राज्यों का एक संघ होगा। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि मूल मसौदे में भारत नाम का कोई उल्लेख नहीं था, संविधान का मसौदा डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया। 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा में इसे प्रस्तुत किया गया था। लघभग 17 सितंबर 1949 को डॉ. अंबेडकर ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें पहले उप-खंड में भारत नाम सहित संशोधन, इसके अलावा राज्यों से संबंधित दूसरे मामूली बदलाव का सुझाव दिया गया था।

• पहले भी एक बार हो चुकी है संशोधन पर चर्चा

प्रारंभिक प्रावधान पर संविधान सभा में विचार विमर्श दो मुख्य बिंदुओं पर हुआ। जिसमें एक मुद्दा इंडिया और भारत के बीच संबंध का था। नव स्वतंत्र देश को एक के बजाय दो नाम देने के प्रस्ताव के बारे में बात की गई, अन्य विधानसभा सदस्यों द्वारा कई संशोधनों का सुझाव दिया गया, हालांकि इसे स्वीकार नहीं किया गया। तब आयरिश संविधान को देखकर पहले उपखंड के हिस्से को भारत या अंग्रेजी भाषा में इंडिया बदलने का प्रस्ताव करते हुए पहला संसोधन पेश किया गया था।

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